अधिवक्ता संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ नूंह के वकीलों का प्रदर्शन,
• कार्य बहिष्कार कर दी अनिश्चितकालीन हड़ताल की चेतावनी
• नूंह जिला उपायुक्त को सौंपा ज्ञापन
(फोटो के साथ खबर)
यूनुस अलवी,
नूंह/हरियाणा
देशभर में अधिवक्ता संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ विरोध तेज हो रहा है, और अब इस काले कानून के खिलाफ जिला बार एसोसिएशन नूंह ने भी खुलकर मोर्चा खोल दिया है। शुक्रवार को नूंह जिला अदालत के अधिवक्ताओं ने कार्य पूरी तरह ठप कर दिया और न्यायिक कार्यवाही का बहिष्कार करते हुए जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। अधिवक्ताओं ने नूंह उपायुक्त को ज्ञापन सौंपकर इस अधिनियम को अधिवक्ताओं के मौलिक अधिकारों पर हमला करार दिया और इसकी तत्काल वापसी की मांग की। बार एसोसिएशन ने इस कानून को “अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता खत्म करने और उन्हें सरकारी नियंत्रण में लाने की साजिश” करार देते हुए सरकार को स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि यह कानून वापस नहीं लिया गया, तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे, जिससे न्यायिक प्रक्रिया पूरी तरह ठप हो सकती है।
जिला अदालत नूंह बार प्रधान जाकिर गोलपूरी, पूर्व प्रधान ताहिर रूपडिया, कमालुद्दीन मालब, हारून खान, इरशाद, नसीम सीरोली, ताहिर देवला, अनीक मालब, अकरम रजा, जावेद मालब, मकसूद नगली, कुलवंत भकोलिया, निसांत गुप्ता, घनश्याम तंवर, अजीज अख्तर, जफर इकबाल सहित दर्जनों अधिवक्ताओं ने सीधा संदेश दिया कि यह सिर्फ वकीलों का मामला नहीं, बल्कि पूरे समाज और न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता का सवाल है। यदि यह कानून लागू हुआ, तो आम नागरिकों को न्याय दिलाना मुश्किल हो जाएगा।
क्या है अधिवक्ता संशोधन अधिनियम 2025 और क्यों है विरोध?
अधिवक्ता संशोधन अधिनियम 2025 को सरकार कानूनी सुधार का हिस्सा बता रही है, लेकिन अधिवक्ता इसे अपनी स्वतंत्रता और न्यायपालिका की निष्पक्षता के लिए खतरा मान रहे हैं। इस कानून में कुछ ऐसे प्रावधान शामिल किए गए हैं, जो सीधे वकीलों के अधिकारों, स्वतंत्रता और न्यायिक प्रणाली के संतुलन को प्रभावित करते हैं।
कौन-कौन से प्रावधान विवादों में हैं?
1. हड़ताल और बहिष्कार पर रोक (धारा 35A), अधिवक्ताओं की आवाज़ दबाने की कोशिश
इस अधिनियम के धारा 35A के तहत अधिवक्ताओं को हड़ताल और बहिष्कार करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। यह प्रावधान सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
अधिवक्ताओं का कहना है कि हड़ताल और बहिष्कार उनके लिए एक प्रभावी माध्यम है, जिससे वे न्याय प्रणाली में खामियों को उजागर कर सकते हैं और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकते हैं। अगर यह अधिकार छीन लिया गया, तो न्यायिक प्रक्रिया पूरी तरह सरकार और प्रभावशाली लोगों के नियंत्रण में आ जाएगी।
2. अधिवक्ताओं पर भारी जुर्माना (धारा 35), आर्थिक रूप से कमजोर करने की साजिश।
इस कानून की धारा 35 के तहत अधिवक्ताओं पर 3 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह जुर्माना “व्यावसायिक कदाचार” के आधार पर लगाया जाएगा, लेकिन इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है।
अधिवक्ताओं का आरोप है कि यह प्रावधान सरकार और प्रभावशाली लोगों के खिलाफ बोलने वाले वकीलों को डराने और चुप कराने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। मनमाने जुर्माने के डर से वकील स्वतंत्र रूप से अपने मुवक्किलों का बचाव नहीं कर पाएंगे और कमजोर वर्गों को न्याय दिलाना मुश्किल हो जाएगा।
3. झूठे आरोपों पर कोई सुरक्षा नहीं (धारा 35)
इस कानून में यह प्रावधान किया गया है कि अगर किसी अधिवक्ता के खिलाफ शिकायत झूठी पाई जाती है, तो शिकायतकर्ता पर केवल 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। लेकिन अगर किसी अधिवक्ता पर झूठा आरोप लगाया जाता है, तो उसे किसी भी प्रकार की सुरक्षा नहीं मिलेगी।
इससे अधिवक्ताओं को झूठे आरोपों के कारण मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान और पेशेवर बदनामी का शिकार होना पड़ेगा। अधिवक्ताओं ने इस प्रावधान को एकतरफा और अन्यायपूर्ण करार दिया है।
4. अधिवक्ताओं के निलंबन की शक्ति (धारा 36), मनमाने फैसलों का खतरा
धारा 36 के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया को यह शक्ति दी गई है कि वह किसी भी अधिवक्ता को बिना उचित जांच के तुरंत निलंबित कर सकती है।
अधिवक्ताओं का कहना है कि यह प्रावधान सरकार विरोधी मामलों को लड़ने वाले वकीलों को डराने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। जो वकील सरकार या प्रभावशाली लोगों के खिलाफ केस लड़ेंगे, उन्हें निलंबन की धमकी देकर चुप कराया जा सकता है।
न्याय प्रणाली पर गंभीर संकट
अधिवक्ताओं ने चेतावनी दी कि यदि यह अधिनियम लागू होता है, तो इसका सीधा असर न्याय प्रणाली पर पड़ेगा।
वकीलों को स्वतंत्र रूप से काम करने की आज़ादी नहीं मिलेगी।
न्यायपालिका पर सरकारी नियंत्रण बढ़ जाएगा।
आम जनता को न्याय दिलाने में कठिनाई होगी।
गरीब और कमजोर वर्गों को सशक्त अधिवक्ता नहीं मिल पाएंगे।
अब देखना होगा कि सरकार इस विरोध को कैसे संभालती है और क्या इस विवादित अधिनियम में बदलाव किया जाता है या नहीं।

No Comment.