• पत्नी की हत्या कर झूठी लूट की कहानी रची थी दोषी खालिद ने
• दोषी खालिद तभी से ही जेल में बंद है।
यूनुस अलवी,
नूंह, – नूंह के बहुचर्चित नजमा हत्याकांड मामले में अदालत ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए आरोपी खालिद पुत्र शाहरून निवासी पलडी रोड वार्ड नंबर 1, नूंह को उम्रकैद और 55 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। यह फैसला जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुशील कुमार की अदालत ने सुनाया। सरकार की ओर से सरकारी वकील मोहित कुमार ने और पीड़िता की ओर से ताहिर हुसैन रूपड़िया ने मजबूती से पैरवी की।
मामले का घटनाक्रम
यह मामला 5 जून 2021 का है, जब थाना शहर नूंह में सूचना मिली कि नजमा पत्नी खालिद की संदिग्ध हालत में मौत हो गई है और उसका पति घायल अवस्था में नलहड़ मेडिकल कॉलेज में दाखिल है। मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने देखा कि मृतका की गर्दन और शरीर पर चोट के गहरे निशान थे और कोई परिजन वहां मौजूद नहीं था।
मृतका के पिता फारूख निवासी गांव मलाई, जिला पलवल ने दरखास्त देकर आरोप लगाया कि उनकी बेटी को दहेज की मांग पूरी न होने पर उसके पति खालिद और परिवार वालों ने मिलकर मार डाला। फारूख के अनुसार, शादी 2017 में हुई थी और तभी से नजमा को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा था।
पुलिस जांच में सामने आया कि खालिद को नजमा के चरित्र पर शक था और वह अक्सर मारपीट करता था। 4-5 जून 2021 की रात खालिद ने चाकू से हमला कर और चुन्नी से गला दबाकर नजमा की हत्या कर दी। हत्या के बाद आरोपी ने पत्नी के गहने छुपा दिए और घर का सामान बिखेरकर खुद को घायल दिखाकर लूट की झूठी कहानी गढ़ दी।
पुलिस की कार्रवाई
ASI अली हुसैन की अगुवाई में मामले की बारीकी से जांच की गई। खालिद को गिरफ्तार कर पूछताछ की गई, जिसमें उसने अपना जुर्म कबूल किया। उसकी निशानदेही पर नजमा के जेवरात और खून से सनी टी-शर्ट बरामद हुई। हत्या में प्रयुक्त चुन्नी और चाकू भी आरोपी ने पुलिस को सौंपे। आरोपी तभी से ही जेल में बंद था।
घटनास्थल से लिए गए खून के सैंपल, CCTV फुटेज और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत जुटाए गए। हालांकि जांच में आरोपी के परिवार के अन्य सदस्यों की संलिप्तता नहीं पाई गई और अदालत ने उन्हें मामले से डिस्चार्ज कर दिया।
न्याय की जीत
करीब चार साल तक चली सुनवाई के बाद अदालत ने आरोपी खालिद को धारा 302, 201, 203 IPC के तहत दोषी करार दिया और आजीवन कारावास व 55 हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनाई। यह फैसला पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ है।







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