जाने कितकू चम्पत होगी, पींडी और सुहाली ! नो दो ग्यारह बनवारे, और खो गये लोटा थाली !! बटणा और बाखलीन की, ना दीखे खुश हाली ! कहीं सुनाई ना देवे, अब बरातीन कू गाली !! नहीं गिरे कहीं रंग प्यार को, ना है छाप लगाई ! सब कुछ होगो खतम, बखत ने कैसी पलटी खाई !!
मेवात के मशहूर कवि फैजी उस्मानखां की ये कविताए हमारे पुरखों की तहजीब और रिवायतों को जिंदा रखे हुए जमीदारा के कामों के नाम और