॥ चौधरी सरदार ख़ान ॥ यौम-ए-वफ़ात ॥
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा..
आंख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा..!!!
बिछड़ा कुछ इस तरह की रुत ही बदल गई..
इक शख़्स सारे जहान को वीरान कर गया…!!!
एक मसीहा ने यूं जाकर ग़मज़दा कर दिया…यूं तो मौत का मुक़र्रर वक्त किसी को पता नहीं होता…लेकिन कुछ बेहद अज़ीम शख़्सियात का अचानक चले जाना हैरान कर जाता है…हरियाणा के डिप्टी होम मिनिस्टर रहे ख़ादिम-ए-मेवात चौधरी सरदार ख़ान साहब का भी 19 दिसंबर 1992 को अचानक चले जाना बेहाल कर गया…मेवात के अवाम को ना तो यक़ीन आ रहा था ना ही लोग यक़ीन करना चाहते थे कि चौधरी सरदार ख़ान साहब इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए..बहरहाल यक़ीन करना पड़ा कि मौत बरहक़ है…
बाबरी मस्जिद इन्हेदाम के बाद मौत की दस्तक से एक दिन पहले ही अपने अवाम की तकलीफ़ों को अपनी आंखों से देखकर लौटे थे…यक़ीनन उनके आख़री अल्फ़ाज़ यादगार रहेंगे, जो उनकी बेमिसाल हुब्बुल वतनी के साथ साथ क़ौमी यक़जहती की उनकी सोच और जिंदादिली की बानगी थे…चौधरी सरदार ख़ान साहब चाहते थे कि हालात कुछ भी हों लेकिन आपसी भाईचारा ख़राब ना हो…क़ौम के लोगों पर ज़ुल्म,ज्यादती ना हों…
और इसी ख़्वाब को आंखों में लेकर शानदार ख़ूबियों का मालिक वो सादा सा इंसान ख़ुद को ख़ास बनाकर हमें अलविदा कह गए..वो इंसान जो रिश्तों के क़द्रदान थे..जिसे ओहदे का गुमान नहीं था,जो इमानदारी का पैक़र थे.. मदद के लिए दोस्त और दुश्मन तक में फर्क नहीं करते थे..अपने दौरे इक्तेदार में माली तौर पर कमज़ोर मेवात के नैजवानों को अपने ख़र्चे पर नैकरियों के लिए इंटरव्यू देने भेज दिया करते थे..उनकी मौत ने हर किसी को झकझोर दिया..
चौधरी साहब ने तक़रीबन हर किसी की मदद कर गज़ब की मिसाल कायम की.. मदद के इस हुनर ने हर किसी को उनका क़ायल बना दिया। अपने तमाम वर्कर्स को नाम से जानते थे…चेहरों से पहचाना करते थे..
ऐसे जंदादिल , हरदिल अज़ीज़, जज़्बाती, हस्सास और हमेशा मुस्कुराते रहने वाले दबंग चेहरे का यूं चले जाना इलाक़ा-ए-मेवात का कभी ना भर पाने वाला ज़ख़्म है…बड़ा ख़सारा है…!!!
19 दिसंबर, 1992 को वफ़ात पाए मरहूम चौधरी सरदार ख़ान साहब के जस्दे ख़ाकी को 20 दिसंबर 1992 को 60-70 हज़ार डबडबाई आंखों ने सुपुर्दे-ख़ाक़ किया…!!!
और उस बेरहम वक्त की गवाह हर भरी हुई आंख सिर्फ़ ये सोच कर बरस रही थी कि…
नब्ज़-ए-बीमार जो ऐ रश्क़-ए-मसीहा देखी ।
आज क्या आपने जाती हुई दुनिया देखी ॥
लेकिन ये सिर्फ़ चौधरी सरदार ख़ान साहब की ज़िंदगी का इख़्तेताम था..उनके नज़रियात और उनके ख़्वाबों का नहीं…अल्लाह रब्बुल आलमीन ने चाहा तो चौधरी सरदार ख़ान साहब के अधूरे ख़्वाबों को मुकम्मल करने का हौसला कभी धीमा नहीं पड़ेगा…कभी हिम्मत नहीं हारेंगे ..इंशाअल्लाह…!! यही तो सिखाया था चौधरी साहब ने कि
सफ़र में मुश्किलें आएं तो जुर्अत और बढ़ती है..
कोई जब रास्ता रोके तो हिम्मत और बढ़ती है..
बुझाने को हवा के साथ गर बारिश भी आ जाए..
चराग़-ए-बेहक़ीक़त की हक़ीक़त और बढ़ती है..
आज उनकी बरसी पर अपने बेहद बेहद बेहद प्यारे नानाजी, बेहद मुख़लिस और महब्बतों से लबरेज़ ,ज़िंदादिली की बानगी,इमानदारी की मिलाल…अपनाईयत से भरपूर और क़ौम की ख़िदमत के हवाले से फ़र्ज़ शनासी में मिसालें क़ायम करने वाली शानदार हस्ती मरहूम जनाब चौधरी सरदार ख़ान साहब को ख़िराजे-अक़ीदत पेश करती हूं….
काम ऐसे जो करते हैं वो मरते नहीं हरग़िज़..
ऐसे जो जिऐं मौत से डरते नहीं हरग़िज़..
दुनिया से गए दिल से ग़ुज़रते नहीं हरग़िज़..
इस सफ़े से ये नक़्श उतरते नहीं हरगिज़…!!!
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त मरहूम जनाब चौधरी सरदार ख़ान साहब को जन्नतुल फ़िरदौस में आला से आला मुक़ाम नसीब फ़रमाए…उनके दरजआत बुलंद फ़रमाएं…हमें उनके ख़्वाबों को मिुकम्मल करने के लायक़ बनाएं…उनकी ज़िंदगी को आने वाली नस्लों के लिए यूं ही क़ाबिले-मिसाल बनाएं रखें…!!!
आमीन!
लेखिका,
मुमताज़ ख़ान
वरिष्ट पत्रकार TV एंकर
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