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लोगों की अपील का हुआ असर, बिछोर गांव में करीब 150 साल में पहली बार नहीं निकाले ताजिया

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 लोगों की अपील का हुआ असर, बिछोर गांव में करीब 150 साल में पहली बार नहीं निकाले ताजिया

हिंदू समाज की बृज 84 कोस परिक्रमा को लेकर नहीं निकाले गए ताजिया।

मोहर्रम के मौके पर गांव बिछोर में हर साल ताजिया निकाले जाते रहे हैं।

 

फोटो, गांव बिछौर की थड़ी (चोपाल) पर तयार रखे ताजिया

 

यूनुस अलवी मेवात:

 

नूंह जिला के उपमंडल पुनहाना के गांव बिछोर, नीमका आदि गावो से गुजर रही बृज 84 कोस परिक्रमा को लेकर गांव बिछोर के प्रमुख लोगों द्वारा की अपील का असर हुआ है। इस्लाम धर्म के पैगंबर हजरत मुहम्मद साहेब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत की याद में करीब 150 साल से बिछोर गांव में निकाले जा रहे ताजिया पहली बार शनिवार को नहीं निकाले गए। इस फैसले का हिंदू मुस्लिम धर्म के प्रमुख लोगो ने अच्छा कदम बताते हुए मेवात में हिंदू मुस्लिम भाई चारा की मिसाल बताया है। मोहर्रम के मौके पर गांव बिछोर में हर साल ताजिया निकाले जाते रहे हैं।

गांव बिछोर निवासी इकबाल जेलदार, मोहम्मद शरीफ ने बताया की करीब 50 साल पहले तक नूंह जिला के 70 से अधिक गांवों में मोहर्रम के मौके पर ताजिया निकलते रहे। बिछौर गांव को छोड़कर नूंह जिला के सभी गांवों में ताजिया निकलने काफी समय पहले बंद हो गए थे। लेकिन करीब पिछले करीब 150 से उनके गांव में ताजिया निकलते आ रहे है। उनका कहना है की किसी कारणवश ही कभी कभार ही गांव में ताजिया नही निकले होने पर उन्हें लगता है की जब से गांव में ताजिया निकाले जा रहे हे आज पहली बार नही निकले हैं।

उन्होंने बताया की मोहर्रम का महीना गम का महीना होता है, उसे बिना ताजिया निकाले और गरीबों, यतिमों की मदद कर मनाया जा सकता है।

उनका कहना है की गांव बिछोर सहित कई गांव बृज क्षेत्र में आते है इसी वजह से हर साल उनके गांव से करीब 20 दिन तक हर रोज लाखो लोग बृज की 84 कोस परिक्रमा करते हुए जाते हैं। उनका कहना है की जिस रास्ते से परिक्रमा निकल रही है उसी रास्ते से ताजिया निकलते है। ताजिया के मौके पर लगने वाले मेले में दूर दराज से हजारों लोग देखने आते हैं। उनका कहना है की मेले में हर सोच के लडके होते है, जो बृज 84 कोस की परिक्रमा करने वाली महिलाओं के साथ छेड़छाड़ आदि कर सकते थे। इसकी को लेकर इस बार ताजिया न निकलने का फैसला लिया गया था। जो कामयाब रहा।

आपको बता दें कि समूची मेवात में करीब 40-50 साल पहले तक पुन्हाना, बिछोर, नगीना, शाह चोखा, टांई, नूंह, साकरस सहित 70 से अधिक गांवों में मोहर्रम के मौके पर ताजिया निकाले जाते थे, जो अब केवल बिछौर गांव तक ही सिमट कर रहे गए हैं। मोहर्रम के अवसर पर मेवात जिला में निकाले जाने वाले ताजियों के अवसर आयोजित मेलो की संख्या घटने का मुख्य कारण मेला देखने आने वाली महिलाओं के साथ छेड-छाड और शराब पीकर युवाओं का हुडदंग करना है। यही कारण हे की आज गांव बिछोर को छोड़कर मेवात के सभी गांवों में ताजिया निकलने बंद हो चुके है।

आपको बता दें कि इस्लाम धर्म के पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हसन की शहादत के मौके पर उनकी याद में मुस्लिम समाज का एक तबका हर साल ताजिये निकालता हैं। ताजिया निकालने के मौके पर लगने वाले मेलों में आसपास के गांवो के बच्चे, युवा, बुजुर्ग और महिलाएं ताजिया देखने बडे शौक से जाते थे। इस मौके पर लोगों द्वारा तलवारबाजी, पटटेबाजी आदी हुनर के अपने जलवा भी दिखाते थे। जहां इमाम हुसैन की शहादत के मौके पर गमगीन गाने मरसिया गाए जाते हैं वहीं महिलायें इमाम हुसैन की शहादत के गम में अपनी छाती पीटकर हब्दा देती थी। लेकिन कुछ धार्मिक लोग इसे इस्लाम के खिलाफ भी बताते हैं।

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