– आज के दिन (19 नवंबर 1857) को अकेले रूपडाका गांव के 425 लोग शहीद हुऐ थे
-1857 के संग्राम में मेवात के करीब 10 हज़ार बहादुर शाहिद हुये थे।
-संग्राम की आग भले ही अन्य इलाकों में बंद हो गई लेकिन मेवात में एक साल तक चला नरसंहार
-अग्रेंजो ने 8 नवंबर 1857 से 7 दिसंबर 1858 मेवात के सैंकडों गांवों में खून की होली खेलकर 10 से अधिक को शहीद किया
-मेवाती 19 नवंबर को मनाते हैं शहीदी दिवस
यूनुस अलवी
मेवात/हरियाणा
1857 देश की आजादी के पहले संग्राम में मेवाती बहादुरों ने जहाँ बढ़चढ़ कर भाग लिया वहीं फ्रेजर जैसे कई बडे अंग्रेज अधिकारियों को कत्ल भी किया। 19 नवंबर 1857 को अकेले रूपडाका गांव में अंग्रेजो ने 425 बहादुरों को शहीद कर पूरे गांव में आग लगा दी थी।
मेवाती वीरों द्वारा अंग्रेजो के बडे-बडे अफसरों को कल्त करने से गुस्साऐं अंग्रेजों ने पांच दर्जन से अधिक गावों में आग लगाकर तहस नहस कर दिया। अंग्रेजों ने इसी प्रतिशोध के चलते मेवात में 8 नवंबर 1857 से 7 दिसंबर 1858 तक सैंकडों गांवों में खून की होली खेली। जिसमे मेवात में करीब 10 हजार बहादुर शहीद हुये। इतना ही नही लोगो से गावों की जमीनें छीन कर उनको बेदखल कर दिया, अंग्रेजो द्वारा छीनी गई जमीने आज तक लोगों को वापिस नहीं मिली हैं।
मेवात के इतिहास पर करीब 10 किताबे लिख चुके इतिहासकार सद्दीक मेव ने बताया कि पहले संग्राम में देश के जांबाजों में आपसी तालमेल न होने और देश के गद्दार लोगों की वजह से अंग्रेजों ने दुबारा से दिल्ली पर 20 सितंबर 1857 को अपना अधिकार जमा लिया था। दिल्ली के नजदीक होने के कारण अंग्रेजों को सबसे ज्याद खतरा केवल मेवातियों से ही था। मेवातियांे को मिटाने की खातिर अंग्रेजों ने सबसे क्रूरता के लिये माने जाने वाले फोजी अफसरान सावर्ज, डूमंड, हडसन, केप्टन रामसे, किली फोर्ड, होर्सेज, लेफ्टिनेंट रांगटन को भारी फौज, गोला बारूद और तोपखानों के साथ मेवात भेजा गया।
19 नवंबर 1857 को मेवात के बहादुरों को कुचलने के लिये बिग्रेडियर जनरल स्वराज, गुडगावं रेंज के सहउपायुक्त कली फोर्ड और कॅप्टन डूमंड के नेतृत्व में टोहाना, जींद बलाटिनों अलावा भारी तोपखाना सेनिकों के साथ मेवात के रूपडाका, कोट, चिल्ली, मालपुरी पर जबरजस्त हमला बोल दिया। इस दिन शहीद हुऐ करीब 600 लोगों में से अकेले रूपड़ाका गांव के 425 मेवाती बहादुर थे। जिनको बेरहमी से कत्ल कर दिया गया।
अंगेजों की इस दमनकारी योजना का कहर मेवात में 8 नवंबर 1857 को घासेडा में 157 को शहीद करके शुरू हुआ जो 7 दिसंबर 1858 तक चला। अंग्रेजी फोज ने 19 नवंबर को रूपडाका में 425, पहली जनवरी 1858 को होडल गढ़ी में किशन सिंह और किशन लाल जाठ सहित 85, दो जनवरी 1858 को हसनपुर में चांद खां, रहीम खां, 6 जनवरी को सहसोला में फिरोजखा मेव सहित 12, बडका में खुशी खां मेव सहित 30, नूंह में 18, ताऊडू में 19, जनवरी 1858 को महूं तिगांव में बदरूदीन सहित 73 लोगों को शहीद कर दिया था।
इसी तरह 9 फरवरी 1858 में अडबर, नंगली के धनसिंह मेव सहित 52 लोगों को पेडों पर लटकाकर फांसी दे दी गई थी। फरवरी में गांव कोंड़ल, गहलब और अहरवा में 85 को, 16 फरवरी को गांव तुसैनी के मलूका नंबरदार सहित उसके परिवार के 11 सदस्य और 22 फरवरी को आकेडा के हस्ती सहित 3 लोगों को शहीद कर दिया गया।
मार्च 1858 में अंग्रेजों ने मेवात के गावं घाघस, कंसाली, सेल, नगीना, पुन्हाना, फिरोजपुर झिरका, मांडीखेडा, बल्लभगढ में जमकर कहर बरपाया। 24 मार्च को पुन्हाना के घीरी मेव सहित 283 और 29 मार्च को गांव घाघस कंसाली में गरीबा मेव सहित 61, सेल गांव में हननु सहित 5, फिरोजपुर झिरका में इसराईल, केवल खां सहित 24, मांडीखेडा, नगीना में उदय सिंह, शावंत सहित 91, बल्लभगढ में 35 सहित सैंकडों को शहीद कर दिया गया।
देश के कुछ गद्दारों ने दिल्ली में सूचना भिजवाई की हजारों मेवाती हथियारों के साथ गांव पिनगवां, महूं, बाजीदपुर और सोहना में मौजूद हैं तो अंग्रेजो ने मेवातियों के समंभलने से पहले ही इन गावों पर भारी तोपखाने के साथ हमला बोल दिया। 27 नवंबर 1858 को कस्बा पिनगवां में 27 और महूं के सदरूदीन सहित आसपास के 170 को शहीद कर दिया गया। दिसंबर सात को बाजीदपुर के आसपास के 161 और सोहना के 34 लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
अखिल भारतीय शहीदाने मेवात सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरफूदीन मेवाती का कहना है कि उपर दिए गऐ जो शहीदों की सूचि है उनहोने अपनी टीम के साथ मिलकर बड़ी मेहनत और इतिहासकारों को साथ लेकर तैयार की है। भले ही हरियाणा के रिकोर्ड में इनकी संख्या कम है लेकिन शहीद होने वालों की संख्या कहीं दस हजार से ज्यादा है।
सरफूदीन का कहना है कि हरियाणा सरकार को चाहिये की 1857 के हजारों गुमशुदा शहीदों को निकाला जाये और सभी शहीदों की याद में सभी गावों में शहीदी मिनार बनाई जायें और मेवात के स्कूलों और सडको का नामकरण शहीदों के नाम से किया जाये जिससे आने वाली नसलें उन बहादुरों से प्रेरणा ले सकें। उन्होने कहा मेवात विकास अभिकरण के सहयोग से नगीना, नूंह, महूं आदि गावों में शहीदी मिनार तो बनी है लेकिन उनकी देखभाल करने वाला कोई न होने से आज वे खंडहर होती जा रही है।
Author: Khabarhaq
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