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मेवात से 23 छात्र एमबीबीएस की पढ़ाई को कजाकिस्तान रवाना, नए साल की पहली सुबह नावाज़ गाइडेंस की सरपरस्ती में रवाना

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मेवात से 23 छात्र एमबीबीएस की पढ़ाई को कजाकिस्तान रवाना,

नए साल की पहली सुबह नावाज़ गाइडेंस की सरपरस्ती में रवाना
-मेडिकल पढ़ाई में अमेरीकन पद्धति और कम खर्चा के चलते लिया फैंसला

यूनुस अलवी
मेवात-हरियाणा

डॉक्टर को पृथ्वी पर ईश्वर के रूप में जाना जाता है। लोग इस पेशे को सम्मान से देखते हैं। यही कारण है कि डॉक्टर बनने का स्वप्न हर युवा देखता है। अभिभावक भी चाहते हैं कि बच्चे चिकित्सक बने, लोगों की सेवा करे और प्रसिद्धि पाए। लेकिन यह सपना पूरा होने में भारत में उपलब्ध सीटों की कमी बड़ी बाधक है।

वहीं एमबीबीएम का पूरा कोर्स कराने के लिए निजि कॉलेज 70 लाख से एक करोड रूपये तक मांगते हैं जो गरीब परिवार के बसकी बा नहीं है। कड़ी प्रतिस्पर्धा, कम सीटों और अत्यधिक फीस के कारण भारतीय एंव मेवाती छात्र एमबीबीएस (मेडिकल शिक्षा) के लिए विदेश का रुख कर रहे हैं। षनिवार को मेवात के गांव पाडला से मोहम्मद साद, रायपुर पुन्हाना से मोहम्मद दिलषाद, पुन्हाना से मोहम्मद सुहैल, धीवरी से मुषर्रफ हुसैन, अकबरपुर से तालिब हुसैन व अकील अहमद सहित करीब 23 छात्र कजाकिस्तान से एमबीबीएस की पढ़ाई करने रवाना हुये। कजास्तिान में जहां अमेरिकन पद्धति पर आधारित पढ़ाई है वहीं एमबीबीएस बनने में खर्चा भी कम आता है।


मेवात के षिक्षाविद्ध सरफराज नावाज का कहना है कि भारत में उपलब्ध सीटों की कमी बड़ी बाधक ळें पिछले वर्ष 16.3 लाख से अधिक छात्रों ने 42,300 सीटों के लिए परीक्षा दी। मतलब मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सफलता का प्रतिशत केवल 0.6 प्रतिशत है, 99.4 प्रतिशत बच्चे मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सीट पाने में असफल हुए। सरकारी क्षेत्र में, 200 कॉलेजों में 40 हजार सीटें हैं। इनमें कम लागत में बेहतर शिक्षा मिलती है, लेकिन यहां नामांकन पाना कठिन है। बाकी की सीट निजी कॉलेजों में होती हैं। जिनकी फीस काफी अधिक है। कई कॉलेजों में तो फीस 12 लाख प्रति वर्ष से 25 लाख प्रति वर्ष तक है। अगर हम प्रबंधन कोटा की बात करें तो अधिकांश निजी कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स के लिए 70 लाख रुपए से एक करोड़ रुपए के बीच मांग करते हैं।


कजाकिस्तान में मेडिकल की पढ़ाई अमेरिकन पद्धति पर चलती है। यहां पूरी पढ़ाई पांच साल चलती हैं। एक साल की मेडिकल इंट्रेंसिप होती हैं। कजाकिस्तान में मेडिकल शिक्षा पूरे पांच साल का खर्च भारतीय रुपए में लगभग 18 लाख से 22 लाख तक पड़ता है। इस खर्च को 11 इंस्टॉलमेंट में दिया जा सकता है। मुख्यतः प्रथम साल में कॉलेज 3 इंस्टालमेंट में फीस लेते हैं, बाकी साल में बचे हुए फीस 8 इंस्टालमेंट में जमा करना होता है। कॉलेज फीस को अपने कॉलेज के अकाउंट में ही जमा करते हैं, जिससे सब कुछ पारदर्शी रहता है। काज़िकस्तान में भारत से जाने वाले छात्रों की संख्या को देखते हुए कॉलेजों ने यहां के छात्रों के लिए अलग मेस की सुविधा भी दी है। जिसमें बच्चों को भारतीय मासालों के साथ भारतीय खाना मिलता है।


नावाज़ गाइडेंस कंसल्टेंसी के निदेषक अरसलान प्रवेज का कहना है कि कजाकिस्तान और बांग्लादेश है नया ठिकाना। कठिनाइयोंको देखते हुए कजाकिस्तान और बांग्लादेश मेडिकल शिक्षा का नया ठिकाना बना है। काज़िकस्तान और बांग्लादेश के कॉलेज  मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में सबसे अच्छा माना जा रहा है। कजाकिस्तान एक एशियाई देश है, जहां की मुख्य भाषा अंग्रेजी कज़ाक है। भारत की तरह वहां भी शिक्षा के सभी स्तरों में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता है। काज़िकस्तान की जलवायु ऊष्णकटिबंधीय है, पिछले कुछ वर्षों में कजाकिस्तान में मेडिकल की शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा रखने वाले भारतीय की संख्या में इजाफा हुआ है। मुख्यत दक्षिण भारत राजस्थान, हरियाणा और गुजरात से काफी संख्या में लोग कजाकिस्तान में मेडिकल की पढ़ाई करना पसंद कर रहे हैं। मेडिकल की पढ़ाई के लिए बाहर के देशों में मुख्य रूप से रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंग्लैंड, उक्रेन, आर्मेनिया, जॉर्जिया, फिलीपींस आदि हैं। भारत से मेडिकल की शिक्षा के लिए लोग कई वर्षों से इन देशों में जा रहे हैं और कई लोग वापस आकर भारत में प्रैक्टिस भी कर रहे हैं। पारंपरिक तौर पर हमारे यहां से लोग रूस और इंग्लैंड काफी संख्या में मेडिकल की शिक्षा प्राप्त किए। करीब एक दशक पहले जब भारत में नामांकन पाना काफी कठिन हो गया तो मेडिकल स्टूडेंट्स ने कई दूसरे देशों की तरफ भी रुख किया है।

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