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रोजा सिर्फ खाने-पीने और ख्वाहिश छोड़ने का नाम नहीं “

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रोजा सिर्फ खाने-पीने और ख्वाहिश छोड़ने का नाम नहीं “
यूनुस अलवी 
नूह,
रोजा सिर्फ खाने पीने और जायज ख्वाहिश छोड़ देने का नाम नहीं हैं, बल्कि रोजा के दौरान मनुष्य का अपनी इच्छाओं पर काबू रखना होता है। जिसके जरिए अल्लाह हमें पाक और साफ सुथरा करना चाहता है। सब्र अल्लाह को बहुत पसंद हैं। कुरान शरीफ में एक जगह फरमाया है तुम सब्र और नमाज से मदद चाहो। अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है। कई लोग अक्सर खाने पीने और जायज ख्वाहिश से रुक जाने के अमल को ही समझते हैं। वे सारे काम करना नहीं छोड़ते जो वे दूसरे दिनों में करते हैं। ऐसे लोग गफलत में हैं। उन्हें अपने रोजे पर नजरेशानी करनी चाहिए। पूरे दिन भूखा प्यासा रखकर तथा तमाम जायज ख्वाहिश से रुककर अल्लाह ताला अपने बंदों को किसी मशक्कत में नहीं डालना चाहता। अल्लाह तो अपने सभी बंदों से बहुत प्यार करता है। रमजान के दौरान जज्बात, खैर, सब्र, हमदर्दी, गमखोरी, मसाबात, अल्लाह के अहतमाम, वक्त पर सारा काम निपटाने, तहज्जुत के लिए उठने, गुनाहों से बचने, नेकी करने, तिलावत कुरान, इबादत, रियाजत, रूहानियत, गरीबों लोगों के दुख और दर्द महसूस करने, भूख प्यास के अहसास के अलावा कई अनेक प्रकार के अहसास कराए जाते हैं।
“इमाम मोहम्मद तलाह रेवाड़ी”
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