• एक हजार साल से बढ़कर है शब-ए-कद्र की एक रात
• शब-ए-कद्र की तलाश में हजारों लोग एक कप में बैठे
यूनुस अलवी,
मेवात।
शब-ए-कद्र कदर की तलाश और अल्लाह को राजी करने के लिए में मेवात के लोग हजारों मस्जिदों में एतिकत में बैठे। रमजान महीने में एक रात शब-ए-कद्र कहलाती है। इस रात में इबादत करने का सवाब (पुण्य) एक हजार महीने की इबादत से बढ़कर है। रमजान का आखिरी अशरा (10 दिन) जहन्नुम से खुलासी का है। इस अवधि में मस्जिद में एकाग्र मन से इबादत व एकांतवास को एतकाफ कहते हैं। एतकाफ वाले शख्स को शब-ए-कद्र हासिल होने की उम्मीद रहती है। उलेमाओं का कहना है कि शब-ए-कद्र की इबादत एक हजार महीने की इबादत से बढ़कर है। यह वर्ष में कभी भी हो सकती है, लेकिन इसके रमजान में होने की ज्यादा उम्मीद है।
उलेमाओं का कहना है कि शब-ए-कद्र रात को रमजान के अंतिम अशरे की ताक़ (अक्रमागत) रातों में होने का इमकान जताया है। कुछ उलेमानों ने शब-ए-कद्र को रमजान के 21वें, 23वें, 25वें, 27वें और 29वें रोजे की रात में तलाश करने को बेहतर बताया है जबकि कई उलेमानो ने 22 वे 24 वे, 26वे, 28 वे की रातों में भी शब-ए-कद्र देखना बताया है। एतिकाफ में बैठने वाले ज्यादातर दसों रातों को जगाते हैं
नूंह बड़े मदरसा के संचालक एवं मुफ्ती जाहिद हुसैन ने बताया कि रमजान का एतकाफ सुन्नते मौअक्कदा अलल किफाया है। हर मोहल्ले की मस्जिद में एतकाफ करना बेहतर है। शहर या बस्ती की मस्जिद में एक व्यक्ति द्वारा एतकाफ करने से एतकाफ की सुन्नत अदा हो जाती है। इसके लिए 20वें रोजे का सूरज छिपने से पहले एतकाफ की नीयत करके मस्जिद में बैठना जरूरी है। औरतें अपने घरों में एतकाफ कर सकती हैं। रमजान का आखिरी अशरा जहन्नुम से छुटकारे का है। अपने गुनाहों से माफी के लिए इस अशरे में ज्यादा से ज्यादा इबादत की जानी चाहिए। शब-ए-कद्र की रात को पौशीदा रखा गया है, ताकि इस रात की बरकतें हासिल करने के लिए ज्यादा रातों में जागकर इबादत की जा सके। ईद का चांद दिखने के बाद की रात (चांद रात) में इबादत करने का बहुत सवाब है।
शब-ए-कद्र की तलाश में मेवात के पुनहाना, नगीना, नूंह, फिरोजपुर झिरका, तावडू शहरों के अलावा शाह चोखा, सिंगार, बीछोर, जमलगढ़, घासेड़ा, सकरास, नई सहित नूंह जिला की हजारों मस्जिदों में लोग एतकाफ में बैठे। एतकाफ में बैठने वाले केवल खुदा की इबादत करते हैं, नमाज और कुरान पढ़ते हैं। मस्जिद से बाहर जब भी किसी जरूरत के लिए निकलते हैं तो वे किसी से बात नही करते अगर किसी ने बात कर ली तो एतकाफ टूट जाता है। इसलिए जिन मस्जिदों में शौचालय आदि नही होते तो लोग कोशिश करते हैं की रात के समय निकले।
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