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आओ राजनीति करें : महिलाओं को बराबर का स्पेस और संसाधनों पर मिले आधिपत्य

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महिलाएं विश्व की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं। किंतु वैधानिक निकायों में ही महिलाओं का प्रतिनिधित्व हाशिए पर है। संसद, पंचायतों, स्थानीय निकाय किसी जगह महिलाएं राजनीति तब करेंगी जब पुरुष (पति) करने देंगे। गिनती की महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने अपनी डोर अपने हाथों में पकड़ी है। इस सम्बंध में महिला आरक्षण विधेयक के सम्बंध में हमारी राजनीतिक पार्टियों का रूख क़ाबिले ग़ौर है।इतिहास समाज निर्माण में महिलाओं के योगदान को साफ़ दर्ज नहीं करता। इसलिए यह जानने के लिए आपको आंखें खोलनी होंगीं, मेहनत करनी पड़ सकती है कि ख़ुशहाल दिनों और संकटकाल में भी औरतों ने देश समाज दुनिया को बनाए रखा और उबारा है। अपने जिस गौरवपूर्ण इतिहास की हम दुहाई देते हैं उसी के वैदिक काल का महिलाओं को अबला बनाने में विशेष हाथ रहा है। सती प्रथा, जौहर, पर्दा देवदासी प्रथा की जकड़न को तोड़ने में सदियों लग गए। हालांकि विगत वर्षों में शिक्षा में महिलाओं का अनुपात बढ़ा है। तथापि महिलाओं का एक बड़ा तबक़ा रोटी, पानी, सड़क, शौचालय, सुरक्षा स्वास्थ्य के सिस्टम से ही जूझता नज़र आता है। हमारा मंतव्य पुरूषों को सिंहासन से हटाना नहीं है अपितु लिंग भेद, जाति भेद से परे एक समतामूलक समाज कैसे बने, इसके लिए नए नए प्रश्नों के नए जवाब तलाशने होंगे।

हमारा ये मानना है कि राजनीति में नारी की बारी तभी आएगी जब हम कुछ मूलभूत बातों पर कार्य करें। उनमें पहला है – शिक्षा। दूसरा-स्वास्थ्य। तीसरा- सुरक्षा। चौथा रोज़गार और आत्मनिर्भरता। बिना शिक्षा के कोई बालिका बड़ी होकर अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती। अर्थात बेसिक स्कूलों के स्तर से ही उन्हें समान अवसर मुहैया कराए जायं। स्वास्थ्य सुविधाएं और सुरक्षा कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। इनके अतिरिक्त रोज़गार और आर्थिक आत्मनिर्भरता आर्थिक आज़ादी चाहिए ही चाहिए। इनके बिना हम महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो सकतीं। इतिहास में क्या पढ़ाया जा रहा है क्या लिखा जा रहा है, उसका विश्लेषण करने की स्थिति में पहुंचने के मौक़े मिलने चाहिए फिर देखिए महिलाएं ख़ुद अपना इतिहास लिख लेंगी। लोकतंत्र की मूलभूत इकाई व्यक्ति है। जाति, धर्म, देश, भाषा, लिंग से ऊपर उठकर जब महिलाओं को बराबर का स्पेस और संसाधनों पर बराबर का आधिपत्य हासिल होगा तभी सही मायनों में व्यक्ति की अवधारणा सिद्ध होगी। पुरूषों के दबदबे पर आधारित राजनीति में, नीति निर्माताओं में महिलाओं की संख्या हर हाल में बढ़नी ही चाहिए।

डॉ. नूतन सिंह, प्रोफेसर, युवराज दत्त महाविद्याल

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