मेवात के छोटे से गांव काटपुरी में पहली मई 1935 को जन्मे चौधरी सरदार खान का आज योमे पैदाइश का दिन है। प्रदेश में गृहमंत्री रहते हुए भी मेवात के लोग उन्हें चौधरी साहेब कहने से ज्यादा मास्टर जी कहकर बोलते थे क्योकि मंत्री बनने से पहले वह दिल्ली के स्कूल में अध्यापक रहे। अपनी मंत्रित्व काल मे चौधरी सरदार खान ने मेवात के लोगो को अफसरों से ज्यादा तरजी देने का काम किया। अगर माना जाए तो मेवात के युवाओ को पुलिस और अन्य महकमो में सबसे ज्यादा नोकरी दिलाने वाले नेताओ में वह पहले नम्बर पर आते है। ख़बरहक़ टीवी की टीम और चेयरमैन यूनुस अलवी की ओर से चौधरी सरदार खान को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते है।
:-यूनुस अलवी
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चौधरी सरदार खान की नवासी और नेशनल टीवी चैनल की एंकर मुमताज़ परवीन ने अपने नाना मरहूम चौधरी सरदार खान को कुछ इस तरह याद किया है।
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मेवात की बड़ी सख्सियत मरहूम पूर्व मंत्री व सांसद चौधरी खुर्शीद अदमद, मरहूम पूर्व मंत्री चौधरी शकरुल्लाह के साथ बैठकर मेवात के तरक्की पर गुफ्तगू करते हुए मरहूम पूर्व मंत्री चौधरी सरदार खान
सूरज हूं ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊंगा..
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊंगा..
रह-रह के तुम मुझको पढ़ोगे वर्क़-वर्क़..
मैं मुहब्बत के इतने सबक़ छोड़ जाऊंगा..
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा..
आंख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा..!!!
आज 1 मई को इलाक़ा-मेवात के बेहतरीन और बेमिसाल नुमाईंदे आंजहानी चौधरी सरदार ख़ान साहब की यौमे-पैदाईश है..चौधरी साहब की आमद 1935 में इस फ़ानी दुनिया में हुई और तमाम उम्र अपने उसूलों और ज़िंदगी जीने के तरीक़ा-ए-कार
से क़ौम और अवाम की ख़िदमत की…दरअसल मरहूम चौधरी सरदार ख़ान साहब के बारे में तफ़सीलात बताने की शायद ज़रूरत नहीं है कि वो मेवात की उन शख़्सियात में शुमार होते रहे कि जिनके उनके सियासी मुख़ालफ़ीन भी क़सीदे पढ़ा करते हैं…आज चौधरी साहब की यौमे-पैदाईश है और मैं अपने नानाजी मरहूम को ख़िराजे-अक़ीदत पेश करती हूं..
मैं उन्हे याद कर रही हूं कि चौधरी साहब ने…
हिकमत हमें दी शऊर की सहबा में डुबोकर..
हक़ पेश किए सोज़ निहानी में समोकर..
जिस नस्ल का दुनिया में गया बीज तू बोकर..
इक रोज़ रहेगा वो फलक़बोस ही होकर…!!
मगर अफ़सोस कि फ़रिश्ता सा ये मसीहा ज़्यादा तवील उम्र लेकर नहीं आया…19 दिसंबर, 1992 को अलविदा कह गए इस फ़ानी दुनिया को…और इसी के साथ मेवात का और मुल्क का नाक़ाबिले-लताफ़ी नुकसान हो गया…
बिछड़ा कुछ इस तरह की रुत ही बदल गई..
इक शख़्स सारे जहान को वीरान कर गया…!!!
फिल्मी दुनिया के महान एक्टर रहे मरहूम यूसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार के साथ मरहूम पूर्व मंत्री चौधरी सरदार खान
एक मसीहा ने यूं जाकर गमजदा कर दिया…यूं तो मौत का मुक़र्रर वक्त किसी को पता नहीं होता…लेकिन कुछ बेहद अज़ीम शख़्सियात का अचानक चले जाना हैरान कर जाता है…हरियाणा के डिप्टी होम मिनिस्टर रहे ख़ादिम-ए-मेवात चौधरी सरदार ख़ान साहब का भी 19 दिसंबर 1992 को अचानक चले जाना बेहाल कर गया…मेवात के अवाम को ना तो यक़ीन आ रहा था ना ही लोग यक़ीन करना चाहते थे कि चौधरी सरदार ख़ान साहब इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए..बहरहाल यक़ीन करना पड़ा कि मौत बरहक़ है…
बाबरी मस्जिद इन्हेदाम के बाद मौत की दस्तक से एक दिन पहले ही अपने अवाम की तकलीफ़ों को अपनी आंखों से देखकर लौटे थे…यक़ीनन उनके आख़री अल्फ़ाज़ यादगार रहेंगे, जो उनकी बेमिसाल हुब्बुल वतनी के साथ साथ क़ौमी यक़जहती की उनकी सोच और जिंदादिली की बानगी थे…चौधरी सरदार ख़ान साहब चाहते थे कि हालात कुछ भी हों लेकिन आपसी भाईचारा ख़राब ना हो…क़ौम के लोगों पर ज़ुल्म,ज्यादती ना हों…
और इसी ख़्वाब को आंखों में लेकर शानदार ख़ूबियों का मालिक वो सादा सा इंसान ख़ुद को ख़ास बनाकर हमें अलविदा कह गए..वो इंसान जो रिश्तों के क़द्रदान थे..जिसे ओहदे का गुमान नहीं था,जो इमानदारी का पैक़र थे.. मदद के लिए दोस्त और दुश्मन तक में फर्क नहीं करते थे..अपने दौरे इक्तेदार में माली तौर पर कमज़ोर मेवात के नैजवानों को अपने ख़र्चे पर नैकरियों के लिए इंटरव्यू देने भेज दिया करते थे..उनकी मौत ने हर किसी को झकझोर दिया..
चोधरी साहब ने तक़रीबन हर किसी की मदद कर गजब की मिसाल कायम की.. मदद के इस हुनर ने हर किसी को उनका क़ायल बना दिया। अपने तमाम वर्कर्स को नाम से जानते थे…चेहरों से पहचाना करते थे..
ऐसे जिंदादिल, हरदिल अज़ीज़, जज़्बाती, हस्सास और हमेशा मुस्कुराते रहने वाले दबंग चेहरे का यूं चले जाना इलाक़ा-ए-मेवात का कभी ना भर पाने वाला ज़ख़्म है…बड़ा ख़सारा है…!!!
19 दिसंबर, 1992 को वफ़ात पाए मरहूम चौधरी सरदार ख़ान साहब के जस्दे ख़ाकी को 20 दिसंबर 1992 को 60-70 हज़ार जबजबाई आंखों ने सुपुर्दे-ख़ाक़ किया…!!!
और उस बेरहम वक्त की गवाह हर भरी हुई आंख सिर्फ़ ये सोच कर बरस रही थी कि…
नब्ज़-ए-बीमार जो ऐ रश्क़-ए-मसीहा देखी..
आज क्या आपने जाती हुई दुनिया देखी…!!!
लेकिन ये सिर्फ़ चौधरी सरदार ख़ान साहब की ज़िंदगी का इख़्तेताम था..उनके नज़रियात और उनके ख़्वाबों का नहीं…अल्लाह रब्बुल आलमीन ने चाहा तो चौधरी सरदार ख़ान साहब के अधूरे ख़्वाबों को मुकम्मल करने का हौसला कभी धीमा नहीं पड़ेगा…कभी हिम्मत नहीं हारेंगे ..इंशाअल्लाह…!! यही तो सिखाया था चौधरी साहब ने कि
सफ़र में मुश्किलें आएं तो जुर्अत और बढ़ती है..
कोई जब रास्ता रोके तो हिम्मत और बढ़ती है..
बुझनाने को हवा के साथ गर बारिश भी आ जाए..
चराग़-ए-बेहक़ीक़त की हक़ीक़त और बढ़ती है..
आज उनके यौम-ए-पैदाईश पर अपने बेहद बेहद बेहद प्यारे नानाजी, बेहद मुख़लिस और महब्बतों से लबरेज़ ,ज़िंदादिली की बानगी,इमानदारी की मिसाल…अपनाईयत से भरपूर और क़ौम की ख़िदमत के हवाले से फ़र्ज़ शनासी में मिसालें क़ायम करने वाली शानदार हस्ती मरहूम जनाब चौधरी सरदार ख़ान साहब को ख़िराजे-अक़ीदत पेश करती हूं….
काम ऐसे जो करते हैं वो मरते नहीं हरग़िज़..
ऐसे जो जिऐं मौत से डरते नहीं हरग़िज़..
दुनिया से गए दिल से ग़ुज़रते नहीं हरग़िज़..
इस सफ़े से ये नक़्श उतरते नहीं हरगिज़…!!!
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त मरहूम जनाब चौधरी सरदार ख़ान साहब को जन्नतुल फ़िरदौस में आला से आला मुक़ाम नसीब फ़रमाए…उनके दर्जआत बुलंद फ़रमाएं…हमें उनके ख़्वाबों को मुकम्मल करने के लायक़ बनाएं…उनकी ज़िंदगी को आने वाली नस्लों के लिए यूं ही क़ाबिले-मिसाल बनाएं रखें…!!!
आमीन !!!!!
कॉपी- मुमताज़ परवीन की फेसबुक वॉल से
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