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डाबड़ी क़ब्रिस्तान के मुक़दमें को 3 तारीखों में ही ख़ारिज करवाकर जीत दिलाने वाले एडवोकेट रईस अहमद सम्मानित।*

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*डाबड़ी क़ब्रिस्तान के मुक़दमें को 3 तारीखों में ही ख़ारिज करवाकर जीत दिलाने वाले एडवोकेट रईस अहमद सम्मानित।*

*4 साल से चल रहे इस मुक़दमे के अलावा इस वक़्फ़ क़ब्रिस्तान में नाजायज़ कब्ज़ों के ख़िलाफ़ पिछले महीने 22 अप्रैल को स्टे भी दिलाया था।*

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नई दिल्ली,

दिल्ली के द्वारका में पचासों साल पुराने डाबड़ी क़ब्रिस्तान के प्रबंधन के लिए वक़्फ़ बोर्ड की इजाज़त से बनाई गई छोटे क़ब्रिस्तान की कमिटी पर बड़े क़ब्रिस्तान पर अवैध रूप से क़ब्ज़ा करने की कोशिश करने वाली फ़र्ज़ी कमिटी द्वारा डाले गए मुक़दमे को कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया। इस सिलसिले में कब्रिस्तान वेलफेयर एसोसिएशन डाबड़ी की कमिटी व अन्य शख्सियतों ने दिल्ली हाई कोर्ट के वकील रईस अहमद को सम्मानित किया।

गौरतलब है कि अभी कुछ रोज़ पहले रमज़ान के महीने में कुछ शरारती तत्वो नो इस क़ब्रिस्तान के सामने क़र्बला की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने की नीयत सैकड़ो साल पुरानी क़ब्रो व कुआंनुमा ट्यूबवेल को नष्ट करके अवैध क़ब्ज़ा करने की कोशिश की थी तो, तुरन्त तमाम शरारती तत्वो के ख़िलाफ़ पुलिस कार्यवाही करवाते हुए, एडवोकेट रईस अहमद ने पिछले माह 22 अप्रैल को पहली ही तारीख़ पर कोर्ट स्टे दिलाया।

एडवोकेट रईस ने अपने बयान में कहा कि दरअसल डाबड़ी व आसपास के इलाकों जिसमें सीतापुरी, महावीर एनक्लेव, सागरपुर, जनकपुर, दुर्गापुरी, चाणक्या प्लेस, पालम इलाकों में बड़ी आबादी मुसलमानों की रहती है। जिन्हें काफी लंबे समय से मुर्दो को दफ़न करने में परेशानी हो रही थी जिसकी वजह थी, आसपास की डेढ़ लाख की आबादी पर बेहद छोटे महज़ 800 वर्गमीटर क़ब्रिस्तान का इस्तेमाल होना और इसके साथ लगे बड़े क़ब्रिस्तान पर कुछ दबंग लोगों का अवैध रूप से निजी प्रयोग! जिसमें वह किसी अन्य व्यक्ति को दफन नहीं होने देते थे, अपने पशु पालन व पौधों की नर्सरी के तौर पर खरीदफरोख्त के लिए इस्तेमाल करते थे। यदि कोई अन्य व्यक्ति अपने मुर्दो को दफ़नाने के लिए कोशिश भी करता, तो उसे रोकते व धमकाते थे कि ये हमारी पारिवारिक ज़मीन हैं यहां सिर्फ हमारा हक़ है।

हालांकि वो यह बात बखूबी जानते हैं कि क़ब्रिस्तान अहले इस्लाम होता है, किसी भी इलाके के मुर्दे को भी दफ़न करने से नहीं रोका जा सकता, लेकिन कुछ कुरीतियों के चलते मुसलमानों में आज भी इस तरह की भावनायें पाई जाती हैं।

जबकि 800 वर्गमीटर के जिस छोटे क़ब्रिस्तान में तमाम आसपास के इलाक़ो के मुर्दो को दफ़न किया जाता था उसकी प्रबंधन कमिटी को इस पूरे क़ब्रिस्तान के प्रबंधन की दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड से इजाज़त भी मिली हुई थी, लेकिन जब 2016 में इस छोटे क़ब्रिस्तान में जगह कम पड़ने लगी तो तमाम नेताओ से लेकर विभागों तक कमिटी के लोगों ने इस 4000 वर्गमीटर के साथ लगे क़ब्रिस्तान में दफ़नाने या कोई और क़ब्रिस्तान के लिए जमीन मुहय्या करने की गुहार लगाना शुरू किया, तो मालूम चला कि बड़ा क़ब्रिस्तान व्यक्तिगत न होकर सार्वजनिक है और पचासों साल से ग्रामसभा खसरा नम्बर 27/19 पर मौजूद क़ब्रिस्तान की देखभाल करती रही है, जिसे द्वारका में शामिल कर शहरीकरण के बाद वक़्फ़ बोर्ड को सौंप जाना था, मुस्लिम अवाम में बेदारी व तालीम की कुछ कमी और आसपास उस समय कम आबादी के चलते इसके लिए कोई कोशिश नहीं की गयी, और एक दबंग आदमी ने इसपर कुछ वक्त से अपने निजी स्वार्थ के लिए क़ब्ज़ा करना शुरू कर दिया। जब छोटे क़ब्रिस्तान में कई परत मिट्टी डालने के बावजूद जगह की कमी का हल नहीं निकला तो डीडीए से कुछ क़ब्रिस्तान की ज़मीन की मांग की गई। उन्होंने छोटे क़ब्रिस्तान वालों को जब बड़े क़ब्रिस्तान के बीच दीवार गिराकर मिलाने की कोशिश शुरू की तो बड़े क़ब्रिस्तान पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश करने वाले दबंगो ने तुरंत एक फर्जी सोसाइटी रजिस्टर कर छोटे क़ब्रिस्तान की देखभाल करने वाली क़ानूनी हक़दार कमिटी कब्रिस्तान वेलफेयर एसोसिएशन के साथ-साथ डीडीए पर भी ये झूंठा मुक़दमा कर दिया और दावा किया कि 300 सालों से इस 4.16 एकड़ के क़ब्रिस्तान पर उनके पूर्वज दफ़न करते आ रहे हैं। हालांकि डीडीए को जब ये पता चला कि ये क़ब्रिस्तान वक़्फ़ बोर्ड का है तो उसने कोई कार्यवाही नहीं की, और कोर्ट ने भी इस मुक़दमे में डीडीए को सम्मन करने से मना कर दिया।

छोटे क़ब्रिस्तान वालों को इस मुक़दमे के सिलसिले में जब मालूम चला तो उन्होंने हमसे संपर्क किया। जिसमें दिसम्बर 2021 में हमने अपना वकालतनामा दाखिल कर मुक़दमा लड़ना शुरू किया और तमाम महकमों से इस क़ब्रिस्तान की मिल्कियत और प्रबंधन के लिए जवाब मांगा, तब ये तमाम बाते खुलकर सामने आई। मुक़दमे की लड़ाई में जब बड़े क़ब्रिस्तान के वकील से हमने सवाल किए कि ये कैसे आपके पास आया या किसने आपको इस क़ब्रिस्तान का ज़िम्मेदार बनाया तो, उन्होंने अपनी पेटिशन में बदलाव करके नई पेटिशन फ़ाइल करने की कोर्ट से इजाज़त मांगी। जिसे कोर्ट ने क़ुबूल किया। हालांकि हमने उस वक़्त भी कोर्ट से कहा कि ये कुछ नहीं साबित कर पाएंगे और अब आएंगे भी नहीं, और ऐसा ही हुआ उनके वकील न तो कोर्ट में पेश हुए न ही नई पेटिशन दाखिल की, कोर्ट ने 3 तारीखों तक इंतज़ार किया और आख़िरी मौक़ा देते हुए पिछली तारीख़ पर केस डिसमिस करने की बात कहते हुए ये तारीख़ दी थी। इसपर पर वो कोई चीज़ पेश करने में नाकाम रहे और आख़िरकार कोर्ट ने हमारी कमिटी के हक़ में फ़ैसला सुनाते हुए मुक़दमे को ख़ारिज कर दिया।

अब उम्मीद है कि ये पूरा क़ब्रिस्तान जल्द ही कमिटी की देखरेख में आ जायेगा और मुर्दो को दफ़न के लिए खुलवाया जाएगा।

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Author: Khabarhaq

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