-अनपढ़ हिमता ने मेवाती भाषा में पटेल से कहा था-
‘‘ओ सुण पटेल साब, हम वे मेव हां जो तेरा दादा शिवाजी है औरंगजेब की जेल में सू छुड़ाके लाया, हम हीनी रहेंगे तोहे जो करणो है करले‘‘फाईल फोटो–मरहूम हिम्मत खां उर्फ हिमता
यूनुस अलवी
पुन्हाना(नूंह), हरियाणा
15 अगस्त् 1947 को देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ। मगर जाते-जाते शातिर अंग्रेज देश को भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर धर्म-जाति में बांट गये। इसके साथ ही सारे देश में साम्प्रदायिक दंगे फूट पड़े और कत्लेआम शुरू हो गई।
ऐसे नाजुक हालात में भी मेवात अपेक्षाकृत शान्त था और मेवों ने अपनी मातृभूमि नहीं छोडऩे का निर्णय लेते हुऐ भारत में ही रहने का फैसला कर लिया था। मगर देश के साम्प्रदायिक लोगों को मेवाती मुसलमानों का यह फैसला पसंद नहीं। उन्होंने ने मेवातियों को जबरदस्ती पाकिस्तान धकेलने का फैसला कर लिया। फलस्वरूप पहले राजस्थान के भरतपुर रियासत और फिर अलवर रियासत के राजाओं की सेनाओं ने मेवाती मुस्लिमों का कत्ल-ए-आम शुरू कर दिया। जिसकी वजह से परेशान हाल दोनों रियासतों के लाखों मेवाती मुसलमान तत्कालीन पंजाब के जिला गुडग़ांव की मेवात में आ गये। मगर साम्प्रदायिक शक्तियां अब भी षड्यन्त्र कर रही थी। लिहाजा कोट-बहिन, नई-बिछौर और बीवां गावों की सीमाओं पर धाड़ (संप्रदायिक भीड) के हमले होने लगे। मेवात के लीडरों ने सरकार से इसकी शिकायत की तो पंजाब सरकार ने मुस्लिम मेवातियों की सुरक्षा के लिए सिख बटालियन भेज दी। सिख बटालियन ने सुरक्षा करने की बजाय खुद ही यहां के लोगों पर अत्याचार शुरू कर दिया जिसकी वजह से परिस्थितियां अत्यन्त चिन्ताजनक हो गई।
मेवात के इतिहास पर करीब दस किताब लिख चुके सिद्दीक़ अहमद मेव का कहना है कि ऐसे हालात में तत्कालीन मेव नेता चौधरी अब्दुल हई आदि ने पंडित पीसी जौशी की अध्यक्षता में सीपीआई के दिल्ली आफिस में मीटिंग की। मेवात की सारी स्थिति से अवगत होने पर पीसी जोशी ने इस मामले को तत्कालीन गूह मंत्री सरदार पटेल के संज्ञान में लाने का सुझाव दिया। मौलाना आजाद के जरिये सरदार पटेल से मिलने का समय लिया गया और पटेल ने मेवाती प्रतिनिधि मंडल को सुबह पांच बजे मिलने का समय दे दिया।
चौधरी अब्दुल हई के नेतृत्व में एक तीन सदस्य प्रतिनिधि मण्डल बनाया गया जिसमें चौधरी अब्दुल हई, राजस्थान के गांव शेखपुर अहीर से चौधरी हिम्मत खां उर्फ हिमता जो अनपढ़ व्यक्ति था लेकिन इलाके में एक रूतबा रखता था। चौधरी अब्दुल हई शिक्षित होने की वजह से उनको ही सरदार पटेल से बात करने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
इन लोगों ने फज्र (सूबेह) की नमाज कर्जऩ रोड वाली मस्जिद दिल्ली में पढ़ी और वहां से पैदल ही सरदार पटेल की कोठी पर पहुंचे तो उस समय पटेल साहब लॉन में घूम रहे थे। मेवातियों को देखते ही बोले, हां, बोलो क्या बात है ?
प्रतिनिधि मंडल की अगुवाई कर रहे अब्दुल हई आगे बढ़े और संक्षेप में पटेल साहब को मेवात की सारी घटना की जानकारी दी। उनकी पूरी बात सुन पटेल ने रूखा सा जवाब दिया और कहा पाकिस्तान चले जाओ–मिल तो गया तुम्हें पाकिस्तान। पटेल का यह जवाब सुन अब्दुल हई चुप हो गये। जब अब्दुल हई के पास कोई जवाब नहीं बना तो तभी अनपढ मेवाती चौधरी हिम्मत खां उर्फ हिमता बड़े साहस के साथ ठेट मेवाती भाषा में बोले, ओ सुण पटेल साब, हम वे मेव हां जो तेरा दादा शिवाजी है औरंगजेब की जेल में सू छुड़ाके लाया–या देश के खातर मुगल सू लड़ा और अंग्रेजन सू लड़ा, आज तू हमसू पाकिस्तान जान की कहरो हा– ठीक है, आज तो हमारी बखत बिगड़ रोय और आज हमने वे बी मार रहां है जो कदी हमारी टहल करेहा–पर एक बात सुण ले, हम मर जांगा, पर पाकिस्तान ना जा सां, जो तोहे करनों हैं वा है करले।
हिमता की कठोर आवाज में बात सुनकर सरदार पटेल ने उन्हें कड़ी नजर से देखा और अन्दर चला गया। हिमता और अब्दुल हई को पटेल, खिडक़ी से दिखाई दे रहा था कि अन्दर जाते ही पटेल साहब ने फोन उठाया और नम्बर डायल करने लगा। यह देखकर वे घबरा गऐ और हिमता से कहने लगे अरे मरवा दिया हिमता। तोसे कही न तू मत बोलियो–पटेल अब पुलिस बुला रो है, अब हमनने अन्दर देयगो। अल्लाह रहम करे। थोड़ी देर बाद उन सभी के लिए चाय आ गई। मगर ये लोग तो डरे हुए खड़े थे। चाय कैसे पीते। हिमता ने कहा अरे चौधरी हई, चाय तो पीले, जो होईगी देखी जायेगी। इन लोगों ने चाय खत्म ही की थी कि पटेल साहब बाहर आ गये और बोले, जाईये।
उसके बाद ये लोग वापिस जामा मस्जिद सीपीआई के आफिस पहुचे जहां जोशी को सारी बात बताई और अपनी-अपनी साईकिल से मेवात की ओर रवाना हो गये। ये लोग भोंडसी गांव पहुंचे थे कि सेना के ट्रक आते दिखाई दिये। शक हुआ तो अब्दुल हई ने एक ट्रक को रुकवा कर पूछा, कहां जा रहे हो ? उन्होने कहा पटेल साहब के आदेश हैं, मेवात जा रहे हैं। सिख बटालियन से चार्ज लेगे। अब हमारी मद्रास बटालियन मेवात की सुरक्षा करेगी।
इसी मद्रास बटालियन ने बीवां गांव की सीमा पर राजा बच्चू सिंह की फौज को बुरी तरह पराजित किया और उनकी तोपें छीन ली। तब जाकर मेवात में शान्ति स्थापित हो पाई। आखिरकार 19 दिसंबर 1947 को महात्मा गांधी ने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री सहित कई नेताओं के साथ मेवात के गांव घासेडा में आकर लाखों मेवातियों को पाकिस्तान जाने से रोका और उनको विकास और सुरक्षा का आश्वासन दिया। उसके बाद लाखों मेवाती पाकिस्तान जाने से रूक गये। हिमता की हिम्मत ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया जिसे मेवात कभी नहीं भुला पायेगा।
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