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अतीक-अशरफ मर्डर से कहीं अधिक गंभीर है पुलवामा मामला – आखिर सैनिकों की शहादत का आडिट क्यों नहीं होता?

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अतीक-अशरफ मर्डर से कहीं अधिक गंभीर है पुलवामा मामला
– आखिर सैनिकों की शहादत का आडिट क्यों नहीं होता?
– रक्षा सचिव और रक्षा मंत्री आतंकी हमलों के लिए क्यों नहीं लेते जिम्मेदारी?

जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने पुलवामा को लेकर चौंकाने वाला बयान दिया है। अतीक और अशरफ हत्याकांड ने इस मामले को दबा दिया। गोदी मीडिया तो यही चाहता था। लेकिन उन तमाम लोगों के लिए पुलवामा एक बड़ा मुद्दा है जिनके परिजन सेना या अर्द्धसैनिक बलों में काम कर रहे हैं। पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गये थे। पुलवामा में आरडीएक्स कहां से आया? आज तक नहीं पता चला। कई और भी राज दफन हैं। पुलवामा जैसी घटनाएं नेताओं को नहीं विचलित करती। इसके दो कारण हैं, पहला यह मान लिया जाता है कि सैनिक तो शहीद होने के लिए ही होता है और दूसरा सैनिकों की शहादत के लिए किसी नेता या ब्यूरोक्रेट की जिम्मेदारी नहीं होती।

जब मैं अमर उजाला और नवभारत टाइम्स के लिए गुड़गांव के मानसेर स्थित एनएसजी कवर करता था तो तभी से लगातार रिपोर्ट लिखता रहा हूं कि जम्मू-कश्मीर में शहीद होने वाले सैनिकों का आडिट होना चाहिए। मसलन उन्हें गोली कहां लगी? हेड इंज्युरी या नीक या चेस्ट पर गोली लगने से शहीद हुए या अधिक रक्तस्राव होने से। जेएंडके में 1980 से अब तक हम लगभग नौ हजार सैनिक खो चुके हैं। लेकिन नेताओं के लिए यह धारणा है कि सैनिक तो देश के लिए शहीद होने के लिए ही सेना में भर्ती होते हैं।

आर्मी और पैरामिलिट्री के लिए जो बुलेट प्रुफ जैकेट दी जाती हैं, उसकी क्वालिटी क्या है? जैमर किस तरह के हैं। स्नाइपर डिटेक्टर आर्गनाइजर हैं या नहीं। उनकी क्वालिटी क्या है? आदि-आदि बहुत से सवाल उठाता रहा हूं। यह सवाल भी उठाता रहा हूं कि पुलवामा जैसे हमलों और मुठभेड़ में शहादत होने पर रक्षा विभाग के अफसरों और रक्षा मंत्री को भी जिम्मेदारी लेने का प्रावधान होना चाहिए। उन्हें भी दंडित किया जाना चाहिए, लेकिन नेता और नौकरशाह दोनों सेफ खेलते हैं। नेता देशभक्ति और शहादत के नाम पर वोट बटोर लेते हैं और नौकरशाह नेताओं की आड़ लेकर बच जाते हैं। जबकि इस मामले में रॉ, एलआईयू और मिलिट्री इंटेलीजेंस की जिम्मेदारी भी फिक्स होनी चाहिए।

विडम्बना है कि इस देश में नेताओं के लिए मिनट भर में चॉपर या चार्टर्ड फ्लाइट का इंतजाम हो जाता है लेकिन सैनिकों को मीलों की दूरी तय करने के लिए शक्तिमान ट्रक में बैठने के लिए भी तख्त दिया जाता है। हद है। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के पुलवामा के खुलासे के बाद दुख हो रहा है कि यदि वाकई ये जवान एयरक्राफ्ट से जाते तो संभवतः पुलवामा में 40 जवानों को शहादत नहीं देनी पड़ती।

लेखक

गुणानंद जखमोला

वरिष्ट पत्रकार

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Author: Khabarhaq

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