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मेवात में विदातुल जुमा (अलविदा) की नमाज लाखों लोगों ने हर्षोल्लास से अदा की

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मेवात में विदातुल जुमा (अलविदा) की नमाज लाखों लोगों ने हर्षोल्लास से अदा की

 

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Nuh/Mewat 

ईद से एक दिन पहले शुक्रवार को रमजान माह के आखिरी जुमा यानि विदातुल जुमा की नमाज नूंह जिला के कस्बा पुन्हाना, पिनगवां, फिरोजपुर झिरका, नगीना और नूंह कस्बों के अलावा बड़े गांवों के मदरसा और जामा मस्जिदों में लाखों लोगों ने नमाज अदा की। जब नमाजियों को मस्जिदों में जगह नहीं मिली तो उन्होने मस्जिद के साथ लगती जगोंह को ही इबादतगह बना लिया। रमजान माह का आखरी जुमा और अखरी रोजा होने के कारण नमाजियों की एकायक संख्यां बढ़ गई।

नूंह जिला मुस्लिम बहुल होने की वजह से रमजान माह में नमाजियों की संख्या अन्य दिनों की अपेक्षा बढ़ जाती और आखरी जुमा होने की वजह से अल विदा जुमा में नमाजियों की संख्या और बढ जाती है। जुमे के दिन ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में आकर नमाज अदा करते हैं। शुक्रवार को रमजान माह का 29 वां रोजा था। आखिरी जुमा होने की वजह से इस दिन बच्चे बूढ़े और नौजवान सहित अधिकतर रोजा रखते हैं। मस्जिदें नमाजियों की वजह से छोटी पड जाती है। कई जगह तो लोगों को मजबूर होकर सड़कों पर नमाज अदा करनी पड़ती है।

मौलाना जमील अहमद और मौलाना याहया करीमी ने बताया कि रमजान माह में अल्लाह एक रूपये खर्च करने और एक नेकी करने पर 70 गुण सवाब देता है। इसलिए लोग इसी माह में जकात अदा करते है। उनका कहना है कि जिस मर्द औरत पर साड़े बावन तौला चंादी या साड़े सात तौला सोना या फिर इनके बराबर पैसे हैं तो उसे ढ़ाई फीसदी राषी गरीबों को जकात के तौर पर अदा की जाती है।

उनका कहना है कि जकामत के अलावा परिवार के प्रति व्यक्ति के हिसाब से करीब पौने दो किलों गेंहू या उसकी कीमत ईद मनाने से पहले पहले गरीब, यतीम, बेहसरा लोगों को फितरा के तौर पर अदा करना जरूरी है। जिससे गरीब लोग भी अपनी ईद खुशी से मना सकें।

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