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समलैंगिक विवाह को विधि मान्यता देने की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के विरोध में सौंपा ज्ञापन 17 सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने सौंपा ज्ञापन

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समलैंगिक विवाह को विधि मान्यता देने की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के विरोध में सौंपा ज्ञापन

17 सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने सौंपा ज्ञापन

यूनुस अल्वी

नूंह/मेवात

नूंह। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह को विधि मान्यता देने का निर्णय लेने की तत्परता बताए जाने से समाज में विरोध का माहौल देखने को मिल रहा है। जिसके विरोध में मंगलवार को जिला मुख्यालय नूंह पर करीब डेढ दर्जन सामाजिक, धार्मिक, जातिगत संस्थाओं ने राष्ट्रपति के नाम अतिरिक्त उपायुक्त रेणू सोगन को ज्ञापन सौंपा। जिसमें मदरसा इस्लामिया अरबिया दरगाह हजरत शेख मूसा पल्ला, मेवात अध्ययन केंद्र नूंह, श्री चेतनदास गौ संवर्धन संस्थान संगेल, ग्राम पंचायत खोरी कला, ग्राम पंचायत खोरी खुर्द, पंजाबी सभा पिनगवां, विषिष्ट जन जागरण मंच इंडरी, अग्रवाल सभा मालब, आर्य समाज मंदिर मालब, श्री डिगम्बर जैन समाज पुनहाना, श्री मुक्ति धाम आश्रम एवं गौषाला पुनहाना, सेवा भारती पुनहाना, ग्राम पंचायत रंगाला, जन कल्याण सनातन सभा पुनहाना, ग्राम पंचायत उजीना, ग्राम पंचायत कुतुबगढ ने ज्ञापन सौंपते हुए इसे सभी धर्मों के खिलाफ बताया। सामाजिक संस्थाओं ने कहा कि भारत विभिन्न धर्मों, जातियों, उपजातियों का देष है। इसमें शताब्दियों से केवल जैविक पुरूष एवं जैविक महिला के माध्यम विवाह को मान्यता दी है। विवाह न केवल दो विषम लैंगिकों का मिलन है, बल्कि मानव जाति की उन्नति भी है। सभी धर्मों में केवल विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के विवाह का ही उल्लेख है। विवाह को दो अलग लैंगिकों के पवित्र मिलन के रूप् में मान्यता देेते हुए भारत का समाज विकसित हुआ है। पाष्चात्य देषों में लोकप्रिय दो पक्षों के मध्य अनुबंध या सहमति को मान्यता नहीं दी है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नालसा(2014) व नवतेज जौहर(2018) के मामलों में समलैंगिक एवं विपरीत लिंग के अधिकारों को पहले ही संरक्षित किया हुआ है। जिससे यह समुदाय पूरी तरह से उत्पीडित या असमान नहीं है। इसके विपरीत भारत की अन्य पिछडी जातियां आज भी जातिगत आधार पर शोषित एवं वंचित हो रही हैं और वे अपने अधिकारों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को अपने पक्ष में निर्णीत होने का इंतजार कर रही हैं। देष के नागरिकों की बुनियादी समस्याओं जैसे गरीबी उन्मूलन, निषुल्क षिक्षा का क्रियांन्वयन, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार, जनसंख्या नियंत्रण की समस्या आदि गंभीर समस्याओं के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न तो कोई तत्परता दिखाई गई है और न ही न्यायिक सक्रियता दिखाई है। भारत में विवाह का एक सभ्यतागत महत्व है और सक की कसौटी पर वैवाहिक संस्था खरी भी उतरी है। ऐसे में वैवाहिक संस्था को कमजोर करने के किसी भी प्रयास का समाज द्वारा मुखर विरोध किया जा रहा है। भारतीय सांस्कृतिक सभ्यता पर सदियों से निरंतर आघात हो रहे हैं फिर भी अनेक बाधाओं के बावजूद व बची हुई है। लेकिन अब स्वतंत्र भारत में इसे अपनी सांस्कृतिक जडों पर पष्चिमी विचारों, दर्षनों एवं प्रथाओं के अधिरोपण का सामना करना पड रहा है, जो इस राष्ट्र के लिए व्यवहारिक नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में हम इस महत्वर्पूण विषय पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिखाई जा रही आतुरता पर अपनी गहन पीडा व्यक्त करते हैं। इसलिए हम सभी आपसे निवेदन करते हैं कि आप उक्त विषय पर आवष्यक कदम उठाएं तथा समलैंगिक विवाह न्यायपालिका द्वारा वैध घोषित नहीं किया जाए। इस मौके पर सरपंच मुनेष फौजी, ओमप्रकाष सरपंच, ब्लाक समिति नूंह के वाइस चेयरमैन कौषल सिंह, सोनू सरपंच खोरी खुर्द, तेजपाल आर्य मालब, राजकुमार गर्ग, जगदीष भाटी, हरीओम पालीवाल सहित अनेक सामाजिक लोग उपस्थित रहे।

फोटोः अतिरिक्त उपायुक्त रेणू सोगन को राष्ट्रपति नाम ज्ञापन सौंपते सामाजिक लोग।

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