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मेवात के इतिहास की बड़ी खबर, मेवाती मुस्लिमों को महाभारत से है खास लगाव, मेवाती भाषा की शायरी में गाई जाती है पूरी महाभारत

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मेवात के इतिहास की बड़ी खबर,

मेवाती मुस्लिमों को महाभारत से है खास लगाव, बच्चा बच्चा जनता हे कौरव और पंडुओ के किस्से।
-मुस्लिम बहुल्य इलाका मेवात सांझा संस्कृति का मिसाल है
-मेवाती भाषा में गाई जाती है पूरी महाभारत
-मेवात का बच्चा बच्चा वाकिफ है महाभारत से
-गांव की चौपाल और बंगलों में बेठकर रात भर बडे षोक से सुनते है, महाभारत के किस्से
-मेवात के 30 फीसदी से अधिक लोगों को जुबानी याद है महाभारत के दोहे
-पांडुओं से जुडी कई निशानियां मौजूद हैं मेवात में

फोटो–शायर सदल्ला द्वारा दोहों में लिखी महाभारत के बारे में जानकारी देते उनके परिवार के सदस्य हाजी जैद आकेड़ा
फोटो-हाजी ताहिर मेवात के शायरों पर किताब लिखने वाले

फोटो महाभारत मेंवाती भाषा में ऑडियो और वीडियो में मौजूद है

यूनुस अलवी
नूंह (मेवात) हरियाणा

मुस्लिम बहुल्य इलाका मेवात हिंदु-मुस्लिम सांझा संस्कृति की एक मिसाल है। मेवात एक क्षेत्र है जिसमें हरियाणा प्रदेष के जिला पलवल, फरीदाबाद, गुरूग्राम, नूंह, राजस्थान के अलवर, भरतपुर, उत्तर प्रदेष के मथुरा, गाजीयाबाद और दिल्ली के कई जिले षामिल है। भारत के 10 राज्यों के करीब 100 जिलों में मेवाती मेव समाज के लोग आबाद हैं। जिनकी करीब दो करोड की आबादी है। इतना ही नहीं मेव समाज के करीब दो करोड आबादी के लोग देष बटवारें के समय पाकिस्तान चले गये जो लाहोर, सरगोदा, पत्तूकी, कोटराधा किषन, मुल्तान, नवाब षाह, करांची सहित जिलों में आबाद हैं। मेवात समाज के लोग अपने आप को सूयबंषी और चंद्रबंषी कहते है। मेव मुस्लिम समाज के लोग भी हिंदु समाज की तरह गौत्रपालों में बंटे हुए है। जिनमें 52 गौत्र और 12 पाल षामिल हैं। इनमें करीब 30 गौत्र ऐसे हैं जो हिंदु-मुस्लिमों में मिलते है। मेव समाज के लोग करीब एक हजार साल पहले ठाकुर, गूजर, जाठ, ब्रहामण, राजपूत, क्षत्रियों सहित अन्य हिंदु समाज की जातियों से धर्मपरिवर्तन कर मुस्लिम बने थे। सदियों बाद भी मुस्लिम होने के बावजूद मेवों में हिंदु समाज के दर्जन भर रिति रिवाज आज भी मौजूद हैं। इतना ही नहीं हरियाणा के मेवात में होने वाली रामलीलायें मुस्लिमों के बगैर अधूरी हैं क्योंकि रामलीलाआंें में साज बजाने के अलावा दर्षक और कलाकार मुस्लिम समाज के भी उनमें षामिल होते हैं।


मेवाती भाषा के 50 से भी अधिक मषहूर षायर हुएं हैं, जिनमें सादल्लाह, भीकजी, ऐवजखां, मियांजी रूजदार, खक्के, सूरत, हंषा, उमराव, अब्दुल रहीम, खेराती, जोमखां, राजू खां, सूमेर खां, सुलतान खां, पीरखां, फूलखां, अहमद खां, कमरूद्दीन, चांदखां, गुलतार, इसमाईल, हाजी मोहम्मद इसराईल, जीत खां, छज्जू, खानवे, अय्यूब, उमर खां, चंद्रखां, अलीजान, फौजी उसमान खां, षहजोबाई, सन्नूं खां, दादा अमीरा, हकीम जी बैणी, मेहता, सुलतान, हाजी मेहताब, हमीद सरपंच, मिंयाजी गुलाम, अब्दुल हमीद, नबीखां, खेराती, सरूपा, खुबीखां, मम्मनखां, षमषुद्दीन षामिल है। इतना ही नहीं देष बटवारे के समय करीब 50-60 मेवाती षायर पाकिस्तान चले गए। उन्होने भी मेवाती भाषा में जहां काफी किताबें व षायरी लिखी हैं वहीं उन्होने भी महाभाारत को अपने दोहों में लिखा है। भारत और पास्तिान में हुए मेवाती षायरों में सादल्ला आकेड़ा ही सबसे मषहूर हैं जिन्होनें पूरी महाभारत का अपनी षायरी में जिक्र किया है।

भारत और पाकिस्तान में बसे मेव समाज के मुस्लिम महाभारत के हर किस्सा से बच्चा-बच्चा वाकिफ है। मेवाती भाषा के दोहों में पूरी महाभारत बोली जाती है। आज भी मेवात के युवा बुजुर्गो से दोहे के रूप में महाभारत को गांव की चौपाल और बंगलों में बैठकर रात भर बडे षोक से सुनते है। इतना ही नहीं मेवात के 30 फीसदी से अधिक मुस्लिम लोगों को महाभारत के दोहे जुबानी याद है। यानि ये कहना गलत नहीं होगा की पांडुओं की पैदाईष से लेकर महाभारत तक का पूरा किस्सा मेवाती मुस्लिमों को कंठक याद हैं।
इस महाभारत की रचियेता मेवात के पहले और महान मषहूर षायर सादल्ला आकेड़ा को जाता है। जिन्होने करीब 293 साल पहले पूरी महाभारत को दोहों की कडियों में पुरे कर लिख दिया था। ये दिगर बात है कि आज सादल्ला के द्वारा लिखी गई महाभारत मौजूद नहीं हैं। बताया जाता है कि देष के बटवारे के समय उनके परिजन जब पाकिस्तान जा रहे थे तब उनकी सारी किताबों को गांव के एक कुएं में फैंक दिया था।

शादल्ला ने जब महाभारत पूरी की तो तब उन्होने अपनी शायरी में इस बात का जिक्र कर दिया की पंाडुओं और कौरव करीब पांच हजार साल पहले पैदा हुए थे। सादल्ला ने अपनी शायरी में पैदाईष का जिक्र इस तरह किया।
—-
बीते चार हज़ार पे छ सौ और छत्तीस!
जानू पंडू कब हुआ इनकी जगत करें प्रतीत!!
सतराह सौ सतासिया बरस गया है बीत!
जानू पंडू आज हां जिनकी जगत करें प्रतीत!!

सरांष-मैं जानता हूं कि 4636 साल बीत गये में जब पूंडू पैदा हुए। फिर उन्होने लिखा 1787 सम्मत (1730ईसीं) साल बीत गये अब पता नहीं पंडु कहां है। यानि सादल्ला ने जब अपनी महाभारत की षायरी सन 1930 में पूरी की थी तब ये षेर लिखा था। इससे जाहिर है कि 2023 में कौरव-पंडुओं को पैदा हुआ 4899 साल हो गये है।

कोंता के बलवंड जोड़िया पाँचों भारी,
तम में छटो है बबराबाण जगत में है साख तिहारी।
हम केरु बल 101 कहावे,
हममे जोधा नाये कहो कैसे बर पावें।वही भी करे जरजोध होये जो तेरा भी मन में,
हीं तो एक बरस बैराठ काट दिया बारह बन में।
हमने धनस धर दी ने बाण, गुपत की ना मर्दानों,
देखी कर में चूड़ी पहन हीज का भी किया बाना।
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कौरव और पंडुओ को
मेवाती भाषा में इन नामों से पुकारते हे

1 दुर्याेधन को जरजोध
2  अर्जुन को अर्जन
3 भीम को पेटला भीम
4 नकुल को नुकल
5 सहदेव को सहदेव
6 द्रोपदी को द्रोपदी
7 युधिशटर को डूहिटल
8 भीष्म पितामाह को भीकम
9 विराट को बेराट
10 अर्जुन के लडके से बबराबान कहते हे।
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आकेड़ा के सादल्ला षायर की 21वीं पीढ़ी में पैदा हुए हाजी जैद आकेड़ा ने बताया कि मेवली के जागीरदार राव माहला ने अपनी बेटी आखो की षादी राजस्थान के लालपुरी निवासी मजलस उर्फ माझल के साथ बिहाई थी। करीब 1100 साल पहले जागीरदार राव माहला ने 12092 बीघा जमीन अपनी बेटी ‘‘आखो‘‘ को देकर गांव आकेड़ा बसाया था। राजु उर्फ यारू के दो लडका सादइलाही उर्फ सादल्ला और नाद इलाही उर्फ नादल्ला पैदा हुए। सादल्ला के एक लडकी पैदा हुई जो रीठट में बिहाई थी जबकि उसके भाई नादल्ला के कई लडके पैदा हुए। आज आकेड़ा में जो यारू का वंष है वह नादल्ला की ही औलाद है। बाद में साद इलाही उर्फ सादल्ला बहुत बडे षायर बने जिन्होने महाभारत को अपनी षायरी में लिखा। पंडुओ और कौरवों की पैदाईष से लेकर कुरूक्षेत्र की लड़ाई तक का जिक्र सादल्ला से अपनी षायरी में लिखा है। आज मेवात में जितने भी मिरासी और बुजुर्ग महाभारत को दोहे में कहते हैं वह सब सादल्ला की ही देन हैं।
हाजी जैद का कहना है कि सादल्ला के बाद उनके भतीजे नबीखां सहित एक दर्जन षायर पैदा हुए हैं। नबी खां ने ही अभिमन्यू के चक्रव्यू में फंसने की पूरी षायरी की है। आज भी मेवात के मिरासी पूरी महाभारत को ‘‘पंडुओं के कड़ा‘‘ नाम से जानते हैं। सादल्ला एक अल्लाह का वली यानि बुजुर्ग था। जिन्हें कुदरत की तरह से इलहाम (गैबी बात का पता चलना) होता था।

हाजी ताहिर हुसैन जैताका अपनी किताब ‘‘मेव कौम की तहजीब का आईना‘‘ के पहले भाग में सादल्ला द्वारा मेवाती भाषा में महाभारत के दोहों का जिक्र किया है।

हाजी जैद ने बताया कि 1700 के दषक में घासेडा गांव पर राव बहादुर का राज था। एक बार भरतरपुर के सूरजमल और घासेड़़ा के राव बहादुर के राज घराने दिल्ली में जमा थे। तभी राव बहादुर और सूरजमल की किसी बात पर खटपट हो गई थी। इसी बात को लेकर सूरजमल ने 3 अप्रैल 1955 को राव बहादुर पर घासेडा पर हमला कर दिया था। लेकिन हमला से पहले राव बहादुर ने अपने वेदार्थियों यानि नुजूमियों को बुलाकर पूछा था कि यह बतायें की वह सूरजमल के साथ युद्ध में हारेगा या जीतेगा। तब नुजूमियों ने कहा था कि सादल्ला को बुलावें क्योंकि सादल्ला 6 माह आगे पीछे की बात बता सकता है। तब सादल्ला का राव बहादुर ने अपने दरबार में बुलाकर पूछा था। राव बहादुर और सादल्ला के बीच हुई बातचीत का सादल्ला ने अपनी षायरी में इस तरह जिक्र किया है।

नोट-इस बातचीत के जिक्र को हमने हाजी ताहिर हुसैन जैताका कि किताब ‘‘मेव कौम की तहजीब का आईना‘‘ किताब के पहले भाग से लिया है।
राव बहादुर–
तेरी सुनी अवाई बहुत सी, पर आंखन देखो आज!
या गढ़ घासेड़ा गांव में, मेरो कितना दिन को राज!!
तब सादल्ला ने राव से कहा कि मैं सच कहूंगा तो आप नाराज हो जाएंगें।

सादल्ला का जवाब–
सादल्ला सांची कहें, कदियन बोला झूंठ!
छटे महिना तेरा या महल में, गादड बोलंगा झूंठ!!

राव का सवाल–
सुनके सादल्ला की बात, राव पे सुरखी छाई!
हीं मेरो बैठो वजीर उमराव, देहषत ने तेने खाई!!
हीं मेरो बैठो सभी कुटम परवार, सांवत हीं खडा हां भाई।
सादल्ला कुछ सोच ले, मन चित करले गौर!!
अपनी और बताई दे, जिंदगी तेरी कितनी और!!

सादल्ला का जवाब-
सादल्ला यूं कहे, मरे ना बिना अवादे!
वाय मार सके ना कोय, जिंदो जाय अल्लाह राखे!!
कहा तेरो करे वजीर उमराव, कहा तेरा करां सिपाईफ!
कहा तेरो करे कुटम परिवार, करा कहा सांवत भाई!!
मोह देहषत आवे नाय है, मोलू है वा मालिक की ओेट!
6 महिना तक बादषाह मोय, अपनी रा दीखे है मौत!!

इस तरह राव और सादल्ला में काफी बेहस भी हुई आखिर में राजा राव ने सादल्ला को जहर दिया, तोप का गोला मारा लेकिन चला नहीं, वेहषी हाथी के सामने डाला लेकिन हाथी ने मारा नहीं इसका भी जिक्र सादल्ला ने अपनी षायरी में किया है।

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Author: Khabarhaq

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