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जंगल कम क्या हुए इंसान ही नहीं पक्षी भी सिमटने लगे,

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जंगल कम क्या हुए इंसान ही नहीं पक्षी भी सिमटने लगे,

 

पक्षियों की विभिन्न प्रकार की प्रजातियां पिंजरे में होकर रह गई कैद।

मोर व कोयल की प्रजातियां भी पिछले कुछ वर्षों में हुई कम।

 

नसीम खान

तावडू

शहर में गांव से धीरे-धीरे पक्षियों की चहचहाट खत्म होती जा रही है। बीते कुछ वर्षों में पक्षियों की विभिन्न प्रकार की प्रजातियां खत्म हो चुकी है। जहां एक और देश दुनिया में लोगों की आबादी बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर देश और दुनिया में पक्षियों की विभिन्न प्रकार की प्रजातियों में कमी आई है। वहीं राष्ट्रीय पक्षी कहे जाने वाला मोर भी बहुत कम ही दिखाई देते हैं। कुछ समय पहले मोर की आवाज खूब आसानी से सुनी जाती थी लेकिन अब मोर की आवाज सुनने के लिए हमारे कान बेताब हैं। तो वही मीठे बोल बोलने वाली कोयल की भी आवाज नहीं सुनाई देती।

गौरतलब है कि जंगल कम क्या हुए इंसान ही नहीं पक्षी भी सिमटने लगे। आधुनिकता की चकाचौंध में हम बंद कमरों में सिमट कर रह गए। लेकिन पेड़ पौधों के संरक्षण को भूल गए। हरियाली मनुष्य ही नहीं बल्कि पशु पक्षियों को भी जीने की राह सिखाती है। लेकिन बढ़ती आबादी और शहरीकरण के विस्तार से पेड़ों की संख्या लगातार कम हो रही है। इससे गौरेया व तोता जैसे पक्षियों के जीवन पर संकट मंडराने लगा है।

पक्षियों की जातियां कम होने का कारण पर्यावरण प्रदूषण

सुबह कभी पक्षियों की चहचाहट से सुरू होती थी। लेकिन अब धीरे-धीरे गौरेया जैसी प्रजाती लुप्त होने की कगार पर है। इसका बड़ा कारण ये है कि अब न पेड़ बचे हैं और न ही उनका कीटों से होने वाला भोजन। दुषित होती वातावरण की आबोहवा, प्रदुषित भोजन व गायब होते कीटों से पक्षियों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। पक्षियों की कमी तो सबने महसूस की होगी, लेकिन उनको बचाने बहुत कम लोग ही आगे आए हैं।

वही पक्षी प्रेमियों का क्या कहना है।

पक्षी प्रेमियों का कहना है कि घटते जंगलों से पक्षियों का जीवन अस्त-व्यस्त होने लगा है। इससे उनकी संख्या में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। पेड़ों की घटती संख्या से पक्षियों को घरोंदे बनाने के लिए जगह तक नसीब नहीं हो पा रही है। इसके चलते पक्षी अपने घोंसले कहीं बिजली के खंबो पर उलझे तारों में बना रहे हैं, तो कहीं रोड़ लाइटों पर।

शहरीकरण से सिमट रहा जीवन 

 

अब बाग बगीचे उजाड़़कर बहुमंजिले अपार्टमेंट बनाए जा रहे हैं, तो कहीं खेतोंं में कॉलोनियां बसाई जा रही है। इससे पेड़ो की लगातार कटाई हो रही है। इससे जलवायु परिवर्तन का असर पक्षियों पर साफ दिख रहा है। पक्षी प्रेमियों का कहना है कि समय रहते गौरेया व तोता जैसे जीवों पर ध्यान नहीं दिया गया तो उनका जीवन इतिहास के पन्नों में

सिमट कर रह जाएगा।

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