आज मोहर्रम पर विशेष
-हुड़दंगियों के चलते मेवात में मोहर्रम पर ताजियों की संख्या सिमट कर रह गई।
-40 साल पहले जहां 30 गावों में निकलते थे अब केवल एक गांव तक सिमट गये हैं
-आज बिछौर गांव में निकाले जायेगें ताजिया
फाईल फोटो-गांव बिछौर में गत वर्ष निकाले गये ताजिये
यूनुस अलवी
नूंह/हरियाणा
इसलाम धर्म में मोहर्रम गमों का महिना कहलाता है। मोहर्रम की तारीख को इस्लाम धर्म के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हसन और उनकी परिवार व साथियों सहित 72 लोगों को शहादत कर दिया गया था। उनकी शहादत की याद में हर साल देश भर में ताजिये निकाले जाते हैं। ताजियों के अवसर पर निकलने वाले मेलो की संख्या न के बराबर रह गई है। जिसका इलाके के लोग मेलों में होने वाले हुडदंगों को दोष देते हैं। मेला देखने आने वाली महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और शराब पीकर युवाओं का हुडदंग करना अब मुख्य कारण बन गया है।
गांव बिछोर में ताजिया बनाते कारीगर
नूंह जिला में निकाले जाने वाले ताजिये और मेले अब समाप्ति की ओर पहुंच गये हैं। आज से करीब 30 साल पहले ताजिये मेवात के करीब 30 गावों और कस्बों में निकाले जाते थे जो अब पुन्हाना के गांव बिछोर तक ही सिमट कर रह गये हैं। हुड़दंगियों के कारण बिछौर गांव में भी कई बार ताजिये निकाले नहीं जा सके हैं।
आज से करीब 40 साल पहले ये ताजिये मेवात इलाके के नूंह, पुन्हाना, फिरोजपुर झिरका, पिनगवां, नगीना, साकरस, बिछोर, नई, बीसरू टांई, जयसिंगपुर और शाह चौखा सहित करीब 40 गांवो में निकाले जाते थे। इस मौके पर आसपास के गांवो के बच्चे, युवा, बुजुर्ग, महिलायें और मेहमान ताजिया देखने बडे शौक से आते थे। इस मौके पर लोगों द्वारा तलवारबाजी, पटटेबाजी आदि हुनर के अपने जलवा दिखाते थे। इमाम हुसैन की शहादत के मौके पर गमगीन गाने जिसे मरसिया कहते हैं गाते थे। उधर महिलायें इमाम हुसैन की शहादत के गम में अपनी छाती पीटकर हबदा देती थी। लेकिन कुछ धार्मिक लोगों द्वारा इसे इसलाम के खिलाफ बताने और कुछ हुडदंगियों द्वारा मेले में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने, मलिाओं के जेवरों की छीना झपटी, दुकानदारों से लूटपाट करने जैसी बाते समाने आने लगी जिसकी वजह से लोगो ने इन मेलो में आना जाना कम कर दिया आखिरकार मोहर्रम के अवसर पर निकलने वाले ताजियों की संख्या पूरे मेवात में गांव बिछौर तक सिमट कर रह गई है।
कई वर्ष पहले गांव बिछोर में ताजिया निकालते हुए ग्रामीण
जमीयत उलेमा हिंद के हरियाणा एंव पंजाब प्रांत के पूर्व अध्यक्ष मोलाना याहय करीमी का कहना है कि इलसाम धर्म में ऐसे मेले निकालने नाजायज हैं। इनका सवाब मिलने की बजाये गुनाह होता है। इसलाम धर्म में गम के माहोल में छाती पीटना या उनके लिये मरसिया पढना सब हराम हैं। उन्होने बताया कि मोहर्रम का महीना गम का महिना है। इस महिने में गरीब, यतीम, बेसहारा लोगों को खाना खिलाना, शरबत पिलाना और लोगों की मदद करनी चाहिये न की इमाम हुसैन और इमाम हसन का ताजिया बनाकर मेलो निकाले।
ष्षरीफ अहमद, इलयास खा बुजुर्गाे का कहना है कि आज से करीब तीस-चालीस साल पहले मेवात के सैंकडों गावों में ताजिये निकाले जाते थे और 30 से अधिक गावों में मेलो का आयोजन होता था लेकिन मेले में आने वाली महिलाओं से युवा वर्ग छेड-छाड करने लगे जिसकी वजह से अकसर गावों के लोगो का आपस मे झगडा हो जाता था। या फिर बदमाश किस्म के लोग लडकियों से उनका जेवर छीनकर भग जाते थे। कई दुकानदारों से बदमाश उनका सामान और पैसे लूट कर भाग जाते थे और मेलों में पुलिस का कोई खास इंतजमा ने होने की वजह से बदमाशों के होंसले बुलंद होते थे। इसी वजह से जिन गावों में ये ताजिये निकाले जाते थे उन्होने ताजिये निकाले ही बंद कर दिये।
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