इस्लामिक मुल्क होना, इस्लाम नहीं है बल्कि ईमान का होना इस्लाम है-मौलाना साद साहब
-देश में अमन चैन भाईचारा कायम रखने की दुआ के साथ समाप्त हुआ तीन दिवसीय तब्लीगी जलसा
-इसलाम की बातें सीखने के लिए 2500 तब्लीग जमात के करीब 40 हजार सदस्य देष के अन्य हिस्सों में भेजे
-कागजात पूरे होने पर 125 जमातों के करीब 1500 सदस्यों को जल्द विदेषों में भेजा जायेगा
-जलसा के आखरी दिन लोगों का उमड़ा जनसैलाब, करीब दो किलोमीटर की परीधी में लोग हुए जमां
लाखांे की संख्या में पहुंचे लोगों को सम्बोधित करते हुऐ हजरत साद ने कहा कि मुझे मेवातियों से शिकायत है, मेवातियों ने अपनी औरतों को पर्दा करना नही सीखाया। उन्होने कहा औरतों को पर्दा करना और घरों में इस्लाम सिखाइये। उन्होंने कहा जो इंसान हलाल रोजी कमाता हो, और वो मालदार बनने की नीयत करे, कल कयामत के दिन अल्लाह पाक उनसे नाराज होंगे। इस्लामिक मुल्क होना, इस्लाम नहीं है बल्कि ईमान का होना इस्लाम है।
तब्लीग जमातों को रवाना करते दी नसीहत
भारत के अलग-अलग राज्यों में 40 दिन के लिए एक हजार, चार महिना के लिए 1500 जमातों के करीब 40 हजार लोगों को इस्लाम सीखने के लिए रवाना करते वक्त मौलाना मुहम्मद साद ने उन्हें कई नसीहत की। जिनमें मुख्य रूप से उन्होंने कहा ये जमाती हजारों लोगों की भलाई के लिए मुल्क के अलग-अलग कोने में जाएंगे, जो जमात के उसूलों को ध्यान में रखने। जब गांव, बस्तियों में जाएंगे तो अपनी नजरों को नीचे रखें, लोगों को भलाई की तरफ बुलाएंगे। तालीम का ध्यान रखें।
मौलाना साद ने कहा इस्लाम जानना इस्लाम नहीं है बल्कि अमल करना इस्लाम है। तकदीर पर ईमान लाना जरूरी है। ईमान केवल दिल में रखने की चीज नही है बल्कि जाहिर करने का है। मुसलमान की पहचान नबी मुहम्मद के हुलिया से होती है। अगर मुसलमान जकात देने वाला बन जाये तो दुनिया से गरीबी खत्म हो जाएगी। अगर हर आलिम, आलिम बन जाये तो दुनिया से जहालत खत्म हो जाएगी।
उन्होने कहा अगर सच्चे मुसमलान बनना चहाते हैं तो पैगंबर के सहाबाओं वाला काम करना होगा।
-देश में अमन चैन भाईचारा कायम रखने की दुआ के साथ समाप्त हुआ तीन दिवसीय तब्लीगी जलसा
-इसलाम की बातें सीखने के लिए 2500 तब्लीग जमात के करीब 40 हजार सदस्य देष के अन्य हिस्सों में भेजे
-कागजात पूरे होने पर 125 जमातों के करीब 1500 सदस्यों को जल्द विदेषों में भेजा जायेगा
-जलसा के आखरी दिन लोगों का उमड़ा जनसैलाब, करीब दो किलोमीटर की परीधी में लोग हुए जमां
यूनुस अलवी
नूंह/हरियाणा
देश में अमन चैन भाईचारा कायम रखने की दुआ के साथ सोमवार को तीन दिवसीय तब्लीगी जलसा समाप्त हो गया। तब्लीगी जमात के अंतर्राट्रीय अमीर (अध्यक्ष) मौलाना मुहम्मद साद साहेब के आहवान पर मेवात इलाके से इसलाम की बातें सीखने के लिए 2500 तब्लीग जमात के करीब 40 हजार सदस्यों को देष के अन्य हिस्सों में भेजा गया। वहीं कागजात पूरे होने पर 125 जमातों के करीब 1500 सदस्यों को विदेषों में जल्द भेजा जायेगा। जलसा के आखरी दिन लोगों का जनसैलाब उमड़ पडा। करीब दो किलोमीटर की परिधि में लोग हजरत मुहम्मद साद के विचार सुनने और दुआ में शामिल होने के लिए हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेष से लाखों लोग जमा हुए। वहीं तीन लाख से अधिक लोगों ने हजरत साद के हाथ पर बैत कर उनके अनुयायी बनने का प्रण लिया।
लाखांे की संख्या में पहुंचे लोगों को सम्बोधित करते हुऐ हजरत साद ने कहा कि मुझे मेवातियों से शिकायत है, मेवातियों ने अपनी औरतों को पर्दा करना नही सीखाया। उन्होने कहा औरतों को पर्दा करना और घरों में इस्लाम सिखाइये। उन्होंने कहा जो इंसान हलाल रोजी कमाता हो, और वो मालदार बनने की नीयत करे, कल कयामत के दिन अल्लाह पाक उनसे नाराज होंगे। इस्लामिक मुल्क होना, इस्लाम नहीं है बल्कि ईमान का होना इस्लाम है।
तब्लीग जमातों को रवाना करते दी नसीहत
भारत के अलग-अलग राज्यों में 40 दिन के लिए एक हजार, चार महिना के लिए 1500 जमातों के करीब 40 हजार लोगों को इस्लाम सीखने के लिए रवाना करते वक्त मौलाना मुहम्मद साद ने उन्हें कई नसीहत की। जिनमें मुख्य रूप से उन्होंने कहा ये जमाती हजारों लोगों की भलाई के लिए मुल्क के अलग-अलग कोने में जाएंगे, जो जमात के उसूलों को ध्यान में रखने। जब गांव, बस्तियों में जाएंगे तो अपनी नजरों को नीचे रखें, लोगों को भलाई की तरफ बुलाएंगे। तालीम का ध्यान रखें।
मौलाना साद ने कहा इस्लाम जानना इस्लाम नहीं है बल्कि अमल करना इस्लाम है। तकदीर पर ईमान लाना जरूरी है। ईमान केवल दिल में रखने की चीज नही है बल्कि जाहिर करने का है। मुसलमान की पहचान नबी मुहम्मद के हुलिया से होती है। अगर मुसलमान जकात देने वाला बन जाये तो दुनिया से गरीबी खत्म हो जाएगी। अगर हर आलिम, आलिम बन जाये तो दुनिया से जहालत खत्म हो जाएगी।
अभी तक इस्लाम किताब में हैं, इसे जिंदगी में लाओ। किताब का अमल इस्लाम नही है बल्कि जिंदगी को इस्लाम के तरीके से गुजारना इस्लाम है। मेरी कॉम, मेरा दींन, मेरी गौत, मेरा गाँव, मेरा मोहल्ला का नारा देना इकराम नही है बल्कि जो तुम्हे सताये उसके साथ इज्जत से पेश आने का नाम इस्लाम है। सताने वालों पर एहसान करो चूंकि हमारे नबी मुहम्मद साहब भी सताने वालो पर एहसान किया करते थे।
जिस नबी की बात पर हम अल्लाह, जन्नत, दोजख, पुल सिरात, मैराज व दींन पर यकीन व ईमान रखते तो उस नबी की सुन्नतों पर अमल क्यों नहीं करते? हमेषा हक का साथ दो और झूठ कभी मत बोलो। इस्लाम कबूल करने के लिए किसी को मजबूर नहीं करता और न ही इस्लाम तलवार से फैला है।
उन्होने कहा अगर सच्चे मुसमलान बनना चहाते हैं तो पैगंबर के सहाबाओं वाला काम करना होगा।
Author: Khabarhaq
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