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रमजान माह रहमत, मगफिरत और जहन्नम की खलासी के तीन अशरा में बांटा गया है -तीनों अशरों की अपनी- अपनी अहमियत है

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रमजान माह रहमत, मगफिरत और जहन्नम की खलासी के तीन अशरा में बांटा गया है
-तीनों अशरों की अपनी- अपनी अहमियत है
-सबसे ज्यादा आखिरी  अशरा  में लोग इबादत करते हैं
फोटो मौलाना शेर मोहम्मद अमीनी

यूनुस अलवी
मेवात/हरियाणा
रमजान माह पूरा इबादत का महिना है लेकिन इसको तीन  अशरा  यानी भागों में बांटा गया है। जिससे लोग अच्छे तरीके से इबादत कर सकें।
जमीयत उलेमा हिंद के नॉर्थ जोन के अध्यक्ष मौलाना याहया करीमी ने बताया कि इन दिनों रमजान का पाक महीना चल रहा है। ये महीना हर मुसलमान के लिए बेहद खास माना गया है, रमजान के दौरान 29 या 30 दिनों के रोजे रखे जाते हैं। इन तीस दिनों को तीन भाग यानी तीन अशरों में बांटा हुआ है। हर अशरे का अलग महत्व है। अशरा अरबी का शब्द है, जिसका मतलब 10 होता है। उन्होने बताया कि रमजान माह का पहला  अशरा  यानी एक से 10 रमजान तक रहमत का, दूसरा  अशरा   11 से 20 तक मगफिरत यानी माफी का और तीसरा अशरा 21 से 30 रोजे तक जहन्नम की खलासी का है।

पहला अशरा
रमजान महीने के पहले दस दिनों को रहमत का असरा कहा जाता है। इन 10 दिनों में मुसलमान नेक काम, जरूरतमंदों की मदद करते है, उन्हें दान देते है, लोगों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करते है, अपने उन बाशिंदों पर अल्लाह अपनी रहमत बरसाते हैं।

दूसरा अशरा
दूसरे अशरे को मगफिरत यानी माफी का अशरा कहा जाता है. ये अशरा 11वें रोजे से 20वें रोजे तक चलता है। माना जाता है कि इसमें अल्लाह की इबादत करके अगर मुस्लिम सच्चे मन से अपने गुनाहों की माफी मांगे, तो अल्लाह उसके गुनाहों को माफ कर देते हैं। इस दौरान ऐसा कोई काम भूलकर भी नहीं करना चाहिए जो अल्लाह को नाराज करे.

तीसरा अशरा
तीसरे अशरे को बेहद खास माना गया है। ये जहन्नम यानी नर्क की आग से खुद को बचाने के लिए है। तीसरा अशरा 21वें दिन से चांद नजर आने तक चलता है। रमजान के आखिरी अशरे में कई मुस्लिम मर्द और औरतें एतकाफ में बैठते हैं। माना जाता है कि एतकाफ में बैठने वाले लोगों पर अल्लाह की विशेष रहमत होती है। एतकाफ के दौरान 10 दिनों तक एक ही स्थान पर बैठते हैं, वहीं सोते हैं, खाते हैं और नमाज करते हैं. मुस्लिम पुरुष मस्जिद के कोने में 10 दिनों तक एक जगह बैठकर अल्लाह की इबादत करते हैं, जबकि महिलाएं घर के किसी कमरे में पर्दा लगाकर एतकाफ में बैठती हैं। इस दौरान वे जहन्नम से बचने के लिए अल्लाह से दुआ और तौबा करते हैं.

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Author: Khabarhaq

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