• कस्टमरी लॉ मेवात की मुस्लिम बेटियों को पिता की संपत्ति से महरूम रख रहा है
• इस्लाम धर्म में पिता की जायदाद में बेटियों का हक है, पर उसे पिता और भाई देते नही।
• मेवात की बेटियों को मुस्लिम पर्सनल ला का भी फायदा नहीं मिल रहा है
• कस्टमरी लॉ के चलते मुस्लिम बेटियों को इंसाफ के लिए सालों अदालतों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं
मोहम्मद यूनुस अलवी
नूंह/मेवात हरियाणा
ब्रिटिश राज के गुड़गांव जिले में मेव समाज की बेटियों के लिए तब बनाया गया कस्टमरी लॉ (रिवाज-ए-आम कानून) अब बेटियों के ही अधिकार में अड़चन बन रहा है। इस कानून की वजह से बेटियां अपने वालिद की चल-अचल संपत्ति से महरूम हो रही हैं। इतना ही नहीं विधवाओ को भी इस कानून के कारण भारी परेषानी के साथ-साथ सालों अदालतों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। यह कानून बेटियों को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयास में भी अड़चन बना हुआ है। समय के साथ बदल रहे समाज के लोगों ने वालिद की चल-अचल संपत्ति में हिस्सेदारी से बेटियों को रोकने वाले इस कानून में बदलाव की मांग की है। साथ ही इस्लाम धर्म के आलिमों ने बेटियों को हक दिलाने के लिए कस्टमरी लॉ (रिवाज ए कानून) को निरस्त करने और मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू कराने की मांग की है।
देश के पांच जिलों को छोड़ और कहीं लागू नहीं है ये कानून
मेव समाज देश भर के करीब 85 जिलों में बसा हुआ है, जितनी आबादी करीब दो करोड़ है लेकिन यह कानून हरियाणा के जिला गुड़गांव, फरीदाबाद, मेवात, पलवल व रेवाड़ी को छोड़कर देष के किसी जिला में लागू नहीं है। क्योंकि यह कानून ब्रिटिश सरकार ने पुराने गुड़गांव जिले पर लागू किया गया था। अब गुडगांव से कई और जिले बन चुके है।आपको बता दें कि हरियाणा के गुड़गांव जिले से अलग होकर बने मेवात, रेवाड़ी, फरीदाबाद व पलवल जिलों में रह रहे मेव समाज की बेटियों को इस कानून के तहत माता-पिता की चल अचल संपति में कोई अधिकार नहीं है। कानून के मुताबिक किसी बहन का भाई नहीं है तो उनके माता-पिता की मौत के बाद उनकी सारी संपत्ति नजदीकी परिवार वालों के नाम चली जाती है। लड़की के लिए उस संपत्ति की दावेदारी हमेशा के लिए खत्म हो जाती है। लड़की कानूनी लड़ाई लड़ना भी चाहे तो रिवाज-ए-आम कानून उनके हक में अचड़न बन जाता है। कुछ ऐसे दंपत्ती हैं, जिनका पुत्र नहीं है। वो अपने नाती को गोद ले दत्तक पुत्र बनाने के बाद वर्षो कानूनी लडाई के बाद अपनी पुश्तैनी संपत्ति को परिवार वालों के पास जाने से बचाने में तो कामयाब हो जाते हैं लेकिन उनकी बेटियां तो फिर भी वंचित रह जाती हैं। मेवात इलाके में कई ऐसे मामले है जो करीब 40-50 साल से चह रहे है लेकिन उनका निपटारा तक नहीं हो सका है।
चार दशक से अपने हक के लिए लड़ रहे हैं मोहम्मद मुबारिक
रिवाज-ए-कानून की पेचिदीयों के चलते पुन्हाना खंड के गांव जमालगढ़ के मोहम्मद मुबारिक पिछले चार दषक से भी अधिक समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। मोहम्मद मुबारिक का कहना है कि हमारे परिवार की कमलबी पत्नी भब्बल के कोई औलाद नहीं थी। भब्बल का करीब 1965 में इंतकाल हो गया था। कमलबी ने उसके पिता अब्दुल हमीद को 1983 में गोद ले लिया था। उसके बाद से ही परिवार के दूसरे सदस्यों ने गोदनामें को रद्द करने के लिए अदालत में केस दायर कर दिया। उनका कहना है कि कैस को लडते लडते पिता अब्दुल हमीद की 2016 में मृत्यु हो गई थी। उसके बाद वह इस कैस को अदालतों में लड़ रहा है।
मोहम्मद मुबारिक का कहना है कि गोदनामे को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी जायज माना है लेकिन अभी तक उनको आधी जमीन का कब्जा नहीं मिला है। मोहम्मद मुबारिक का कहना है कि कमलबी की आधी जमीन पर जबरदस्ती परिवार के अन्य लोगों ने कब्जा कर रखा है। अब उसका कब्जा दिलाने का मामला पुन्हाना की अदालत में चल रहा है। अदालत के चक्कर काटते हुए उन्हें और उसके पिता को 40 साल से अधिक का समय हो गया है।
तीन दशक से हक के लिए लड़ रहे हैं आसिफ अली
गांव चंदेनी नूंह निवासी आसिफ अली चंदेनी ने बताया कि इस प्रथा के खिलाफ वह पिछले तीन दशक से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। आसिफ बताते हैं कि उसकी षादी नूंह खंड के गांव दिहाना निवासी जहूर खां की छोटी बेटी के साथ 1977 में हुई थी। उसके ससुर के तीन लडकियां है और कोई लडका नहीं है। उसकी षादी से पहले ही उसक़े ससुर का इंतकाल हो गया था। ससुर के इंतकाल के बाद से ही ससुर जहूर खान की सातवीं पुस्त (पीडी) के लोगों ने उसकी सास को जमीन को लेकर तंग करने लगे। आखिर कार उसकी सास असगरी ने उसके बेटे प्रवेज को 1992 में गोद ले लिया। उनका कहना है कि गोद तो ले लिया लेकिन कस्टमरी लॉ की आड लेकर ससुर जहूर खां के दूर के परिवार के लोग गोदनामा को अदालत में चुनौती दे दी। आसिफ का कहना है कि 1996 में सेशन कोर्ट ने गोदनामे का फैसला हमारे की हक में कर दिया। अब ये मामला हाई कोर्ट में लंबित है। आसिफ का कहना है कि उसकी सास का मई 2019 में इंतकाल हो गया। आखरी समय तक वे अपनी सास की सेवा करते रहे। आसिफ का कहना है कि प्रदेश में मेव समाज की बेटियों के लिए लड़का-लड़की एक समान करने के लिए सरकार को ध्यान देना चाहिए। उन्होंने मांग करते हुए कहा सरकार इस कानून को समाप्त करें और मेव बेटियों को उनके वालिद की चल अचल संपत्ति में बराबर का हक दें।
क्या कहते हैं इस कानून के जानकार एडवोकेट
फिरोजपुर झिरका बार के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ एडवोकेट मुमताज हुसैन और महेश कुमार एडवोकेट लाहआबास का कहना है कि यह कानून ब्रिटिश सरकार के समय में बनाया गया था। आज बेटियों को आगे लाने व समाज में बराबर का दर्जा देने के लिए कस्टमरी लॉ यानी रिवाज-ए-आम कानून में परिवर्तन की आवश्यकता है। बेटियों को अपने मां-बाप की चल-अचल संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए।
—
कस्टमरी लॉ में मुस्लिम लड़कियों को पैतृक संपत्ति से हिस्सा नहीं मिलता -उलेमा ने मुस्लिम बेटियों को हक दिलाने की उठाई मांग
़कस्टमरी लॉ एक ऐसा कानून है जिसके जरिए मेवाती लड़कियों को उनकी पैतृक संपत्ति में हिस्से से दूर रखता है. इसके विपरीत इस्लाम में लड़कियों को पैतृक संपत्तियों में हिस्सा देने का आदेश है. मगर कस्टमरी लॉ के चलते मेवात की हजारों लड़कियां अपनी खानदानी संपत्ति से वंचित है। हरियाणा के मेवात इलाके में कस्टमरी लॉ को निरस्त कर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होना चाहिए। मेवात के मुफ्ती जाहिद हुसैन सहित अन्य उलेमाओं ने कस्टमरी लॉ को शरीयत के खिलाफ बताया है। उनका कहना है कि इस्लाम बेटियों को उनके पैतृक संपत्ति में हिस्सा देता है, जबकि कस्टमरी लॉ मुस्लिम महिलाओं और बेटियों को पैतृक जायदाद से वंचित करता है। कस्टमरी लॉ से बेटियों का हक छीना जा रहा है. यह निरस्त होना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस्लाम धर्म में बेटे को पैतृक जमीन से दोगुना और बेटी को एक गुणा हिस्सा देने का प्रावधान है. जितनी बेटी और बेटे होंगे उनके हिसाब से पैतृक संपत्ति में बटवारे का इस्लाम में प्रावधान है। उन्होंने कस्टमरी लॉ को इस्लाम धर्म के खिलाफ कानून बनाया है।
*क्या है कस्टमरी लॉ*
कस्टमरी लॉ यानी रिवाज ए कानून इसे अंग्रेजों के समय बनाया गया था, लेकिन आजादी के बाद भी इसे जारी रखा गया. हरियाणा में कस्टमरी लॉ पंजाब ऐक्ट के तहत बना हुआ है. कस्टमरी लॉ के जानकारों का कहना है कि अगर किसी आदमी के बेटा न हो और बेटियां हैं उसकी जायदाद में से बेटी को हिस्सा जाने की बजाए लड़कियों के पिता के खून के रिश्ते में जमीन अपने आप चली जाती है। पति के मरने के बाद महिला उस जमीन से अपना गुजर बसर तो कर सकती है, लेकिन वह जमीन को बेच नहीं सकती. केवल किसी बच्चे के गोद लेने से ही जमीन रूक सकती है। बच्चे को गोद लेने से महिला अपने पति की जमीन को पति के परिवार वालों के पास जाने से तो रोक लेती है लेकिन इससे उसकी बेटियों को कोई फायदा नहीं होता। इससे उसकी सभी बेटियां पिता की जमीन के हक से वंचित रह जाती हैं।
No Comment.