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■  मेवातः मेवों ने नहीं छोड़े हिन्दू रीति-रिवाज ■ हिंदुओं की तरह, मेव अपने ही गोत्र में नहीं करते शादी-विवाह ■ रिवाजों के विरुद्ध जारी फतवों को नहीं मानते मेव  ■ जाट, गुर्जर आदि हिंदुओ के एक दर्जन गोत्र मेवों में मौजूद हैं

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■  मेवातः मेवों ने नहीं छोड़े हिन्दू रीति-रिवाज
■ हिंदुओं की तरह, मेव अपने ही गोत्र में नहीं करते शादी-विवाह
■ रिवाजों के विरुद्ध जारी फतवों को नहीं मानते मेव 
■ जाट, गुर्जर आदि हिंदुओ के एक दर्जन गोत्र मेवों में मौजूद हैं
■ मेव कृष्ण का वंशज राजपूत मानते हैं खुद को
यूनुस अलवी
नूंह/मेवात/हरियाणा
हिन्दू मुस्लिम भाईचारे के प्रतीक मेवात क्षेत्र में आज भी मेव समाज में कई हिन्दू रीति रिवाज प्रचलित हैं। यही बातें मेवात को आज तक सांप्रदायिकता के उन्माद से दूर रखे हुए हैं। इस्लाम धर्म को मानने वाले मेव समाज के लोग इन परम्पराओं को जीवित रखने के लिए मुस्लिम धार्मिक उलेमाओं की बात को मानने को तैयार नहीं हैं।
ये हैं मेव समाज के 52 गोत्र और 12 पाल
लगभग 60 लाख की आबादी वाला यह क्षेत्र हरियाणा के नूंह, गुड़गांव, फरीदाबाद, पलवल, राजस्थान के अलवर, भरतपुर व यूपी के मथुरा जिलों के तीन दर्जन से भी अधिक खंडों में फैला है।
 मुस्लिम मेवों के बारे में हिन्दू समाज के लोगों का मत है कि विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी बादशाहों के अत्याचारों से तंग आकर दिल्ली के समीप होने के कारण राजपूत बादशाहों ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था। हजारों वर्षों बाद भी मेव अपने आप को राजपूत, क्षत्रिय व कृष्ण के वंशज कहते हैं, यहां तक कि हिन्दुओं के 52 गोत्र व 12 पाल के रिश्ते मस्लिम मेव कौम में मौजूद हैं।
इस्लाम धर्म को मानने वाले मेव मुसलमानों एवं अन्य सऊदी अरब, ईरान, इराक देशों से भारत के उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र व कर्नाटक के मुसलमानों के रीति रिवाजों में भी जमीन आसमान का अन्तर है।
इस्लामी प्रचलन के अनुसार बुर्का पहनना जरूरी है, वहीं हिन्दू प्रचलन के अनुसार घूंघट निकालने की प्रथा है। मेव औरतें यहां बुर्का पहनने की बजाए घूंघट निकालती हैं। हिंदू समाज के कई परिधान 50/60 साल पहले तक अलवर, भरतपुर, गुड़गांव, फरीदाबाद के मुसलमानों में प्रचलित थे, ये दीगर बात है की अब ये आधुनिक दौर में समाप्त हो चुके हैं, लेकिन राजस्थान के कई इलाकों में बुर्जुग औरतों में ये परिधान आज भी प्रचलित है।
हिन्दुओं की भांति गोत्र बचाकर शादी विवाह करना आज भी यहां पूरी तरह प्रचलित है। यदि कोई व्यक्ति एक ही गोत्र में शादी कर दे तो उसे पंचायत द्वारा जात बाहर यानि उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है। जिस गोत्र में लड़के की शादी करते हैं उस गोत्र में लड़की की शादी भी नहीं कर सकते। ये सभी रिवाज हिन्दू और मेव समाज में मौजूद हैं और इस्लाम धर्म के अनुसार गोत्र पाल को बचाकर शादी करना बहुत बड़ा गुनाह है। ऐसे लोगों पर विदत का फतवा लगा दिया जाता है, लेकिन मेवात के मुसलमान इसे नहीं मानते हैं।
मेवात विकास सभा के पूर्व अध्यक्ष रमजान चौधरी, हमारा अधिकार मोर्चा के प्रदेश संरक्षक फर्जरुद्दीन बेसर का कहना है कि मेवात क्षेत्र की जीवन चर्या मुकम्मल तौर पर क्षत्रियाना है। मेव कौम में वे सारे गुण मौजूद है जो किसी क्षत्रिय राजपत कौम में मौजद होते हैं। उन्होंने इस बात का खंडन किया कि मेव कौम मे विदेशी आक्रमणकारियों के दबाव में धर्म बदला था।
 उन्होंने कहा यहां के मेव समाज ने एक साथ इस्लाम धर्म से प्रभावित होकर ही अपना धर्म बदला था। उनका कहना है कि हिन्दू रीति रिवाजों के मेव कौम में पाए जाने के कारण ही आज तक मेवात में हिन्दू मुस्लिम भाईचारा कायम है। जिससे सांप्रदायिकता की आग मेवात तक नहीं पहुंच पाती। उनका कहना है जो जो दंगा कभी 1947 में भी मेवात में नही भड़का, आज कुछ नासमझ दोनो पक्षों के युवाओं की बदौलत पहली बार नूंह में एक यात्रा में दंगा हुआ। जिसका कलंक सदा मेवात पर लगा रहेगा। उन्होंने कहा भले ही नूंह में दंगा हुआ लेकिन मेवात के किसी भी गांव में किसी हिंदू समाज के व्यक्ति के साथ तू,तू, मैं, मैं तक नही हुई। यही तो असली मेवात है।
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Author: Khabarhaq

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