-देश की आजादी में मेवात के बहादुरों की कुर्बानी को भुलाया नहीं जा सकता।
-देश की पहली क्रांति में करीब 10 हजार ने दी थी कुर्बानी
-मुगल-अंग्रेजों ने मेवातियों पर जमकर जुल्म ढाए, पर देश के साथ कभी गद्दारी नहीं की।
फोटो-महू गांव में 1857 के शहीदों की याद में बनी मीनार
यूनुस अलवी
मेवात/हरियाणा
देश की आजादी में हजारों मेवाती नौजवान दिवाने अपनी जान की परवाह किये बगैर देश पर मर मिटे। आज सरकार ही नहीं बल्कि खुद अपनों ने ही इन सपूतों को भुला दिया है। मेवात की 36 बिरादरी के इन बहादुरों ने मुगल हों या फिर अंग्रेज किसी से भी देश की आन बान शान कि खातिर कोई समझौता नहीं किया। देश के वफादार रहने की वजह से मुगल और अंग्रेजों ने मेवातियों पर जमकर जुल्म ढाये, लेकिन मेवातियों ने देश के साथ कभी गद्दारी नहीं की। देश की पहली जंग-ए-आजादी कि लड़ाई में मेवात के करीब 10 हजार से अधिक बहादुर शहीद हो गये थे। लेकिन आज चंद लोगों को छोड कर उनका नाम भी कहीं नजर नहीं आता है।
1857 की जंग-ए-आजादी की पहली लड़ाई में मेवात के लोगों पर कितना जुल्म हुआ इसकी एक बानगी मेवात के इतिहास पर करीब 10 किताबें लिख चुके सद्दीक अहमद मेव की किताबों में 1857 में फांसी पर अंग्रेजों द्वारा लटकाये गये बहादुरों की कुछ जानकारी गुड़गांव गजेटियर में कुछ इस तरह दर्ज है, 8 नवंबर 1857 को घासेड़ा में 157, 19 नवंबर को रूपडाका में 425, पहली जनवरी 1858 को होडल गढ़ी में किशन सिंह और किशन लाल जाठ सहित 85, दो जनवरी को हसनपुर में चांद खां, रहीम खां, 6 जनवरी को सहसोला में फिरोज खान मेव सहित 12, बडका में खुशी खां मेव सहित 30, नूंह में 18, ताऊडू में 19, जनवरी 8 को महू तिगांव में बदरूदीन सहित 73 बहादुरों को 1858 में शहीद कर दिये गये थे।
इसी तरह 9 फरवरी 1858 में अडबर, नंगली के धन सिंह मेव सहित 52 लोगों को पेड़ों पर लटकाकर फांसी दे दी गई थी। फरवरी 13 को गांव कोडल, गहलब और अहरवा में 85 को, 16 फरवरी को गांव तुसैनी के मलूका नंबरदार सहित उसके परिवार को 11 सदस्य और 22 फरवरी को आकेडा के हस्ती सहित 3 लोगों को शहीद कर दिया गया।
मार्च 1858 में अंग्रेजों ने मेवात के गांव घाघस, कंसाली, सेल, नगीना, पुन्हाना, फिरोजपुर झिरका, मांडीखेड़ा, बल्लभगढ़ में जमकर कहर बरपाया इसमें 24 मार्च को पुन्हाना के घीरी मेव सहित 283 और 29 मार्च को गांव घाघस कंसाली में गरीबा मेव सहित 61, सेल गांव में हननु सहित 5, फिरोजपुर झिरका में इजराइल, केवल खां सहित 24, मांडीखेड़ा, नगीना में उदय सिंह, सावंत सहित 91 बल्लभगढ़ में 35 सहित सैकड़ों को शहीद कर दिया गया।
कुछ गद्दारों ने दिल्ली में सूचना भिजवाई कि हजारों मेवाती हथियारों के साथ गांव पिनगवां, महूं, बाजीदपुर और सोहना में मौजूद हैं। अंग्रेजों ने मेवातियों के संभलने से पहले ही इन गांवों पर भारी तोपखाने के साथ हमला बोल दिया। 27 नवंबर 1858 को कस्बा पिनगवां में 27 और महू के सदरूदीन सहित आसपास के 170 को शहीद कर दिया गया। दिसंबर सात को बाजीदपुर के आसपास के 161 और सोहना के 34 लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
मेवात के इतिहास पर करीब 10 किताबें लिख चुके सद्दीक अहमद मेव का कहना है कि देश की आजादी में जितनी कुर्बानी मेवातियों ने दी उतनी आज तक किसी भी कौम ने नहीं दी है। मेवात में दस हजार से अधिक योद्धा देश की पहली क्रांति में शहीद हुऐ थे। अंग्रेजों की इस दमनकारी योजना का कहर पूरे 13 महिने तक चला इस दौरान अफसरान सावर्ज, डूमंड, हडसन, कैप्टन रामसे, किली फोर्ड, होर्सेस, लेफ्टिनेंट रांगटन, अंग्रेज जालिम हाकिमों ने भारी फौज, गोला बारूद और तोपखाने के साथ मेवात के लोगों पर वो जुल्म ढाया जिसे मेवात के लोग आज तक भी नहीं भूल सकें हैं। इसी का नतीजा है कि आज मेवात के मेेव समाज के लोग देश के उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश के अलावा करीब 15 राज्यों में तकरीबन चार करोड़ की आबादी में बसे है।
मेवात के शहीद बहादुरों की खोज कर समाज के बीच लाने वाली मेवात की प्रथम संस्था अखिल भारतीय शहीदाने सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरफुद्दीन मेवाती का कहना है कि उन्होने बडी मेहनत के साथ शहीदों की कुछ जानकारी हासिल की है। अभी भी करीब दस हजार शहीदों को जिन्हें अंग्रेजों ने उजाड दिया या उन्हें मार डाला उनका कोई पता निशान नहीं मिल सका है। सरफुद्दीन मेवाती का कहना है कि सरकार को चाहिए की 1857 के हजारों गुमशुदा शहीदों को निकाला जाये और सभी शहीदों की याद में सभी गांवों में शहीदी मिनार बनाई जायें और मेवात के स्कूलों और सड़कों का नामकरण उन शहीदों के नाम से किया जाये, जिससे आने वाली नस्लें उन बहादुरों से प्रेरणा ले सकें। उनका कहना है कि सरकार ने मेवात के नूंह, महूं, नगीना, फिरोजपुर झिरका और रूपडाका आदि गांवों में कुछ मीनारें तो बनाई हैं लेकिन वे खंडहर होती जा रही है।
Author: Khabarhaq
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