–होली विशेष
-मेवात में ढोल नगाडों की ताल पर रातभर होली के रसिये और चौपाइयों का मजा अब नहीं रहा
-धार्मिक कट्टरपंथियों के चलते लोग मस्ती के त्योहारों से दूर होने लगे हैं।
-पहली जैसी होली का अब लुत्फ कहां रहा है
– मेवात क्षेत्र ब्रिज के 84 कोस की परिधि में आता है,
– 1980 तक मेवात के अधिकतर मुस्लिम समाज के लोग हिंदुओं के साथ मिलकर होली खेलते थे
यूनुस अलवी
नूंह/मेवात,
जमाना बदलता गया, इंसान एक दूसरे से दूर होता गया। ये सब हुड़दंगियों और कुछ कट्टर धार्मिक लोगों की वजह से हुआ है। वर्ना एक जमाना ऐसा था जब मेवात के मुसलमान और हिंदू मिलकर ढोल नगाड़े की ताल पर रात भर होली के रसिया और चौपाइयों का मजा लेते थे। पिनगवां कस्बा की होली तो मानों मुसलमानों के बगैर अधूरी थी।
इस्लाम धर्म में होली खेलना भले ही बहुत बडा गुनाह हो लेकिन मेवात के मुसलमानों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता था। मेवात क्षेत्र के पुन्हाना-पिनगवां ब्रिज का इलाका होने की वजह से यहां के हजारों मुसलमान सदियों से होली खेलते आ रहे थे। यहां करीब 30-40 सालों से दोनों समाजों के बीज धार्मिक लोगों ने ऐसा जहर घोल कर रख दिया कि अब होली तो मनाते हैं लेकिन जमकर इसका लुत्फ नहीं उठा पाते हैं। वैसे मेवात में हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे के धर्मों को मिलकर मनाते हैं पर वो मजा नहीं जो करीब 30-40 साल पहले होता था।
वैसे यहां के हिंदू-मुस्लिम का आपसी भाईचारा इतना मजबूत है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का झगडा भी नहीं तोड पाया और ने ही 1947 का देश का बटवारा। यहां के हिंदू-मुसलमान एक दूसरे के त्योहारों को मिलकर मनाते हैं, लेकिन अब पहले की तरह होली के हुडदंग में मजा लेने की बजाए दूरी बनाकर रखते हैं। ये सब धार्मिक कट्टरपंथियों के चलते लोग ऐसे त्योहारों से दूर होने लगे हैं।
मेवात जिला भले ही मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हो लेकिन यहां का आपसी भाई चारा सदियों पुराना है। यहां के मेव समाज के लोग अपने आप को सूर्यवंशी और चंद्रवंशी मानते हैं। हिंदू समाज की तरह आज भी मेवात के मेव समाज के लोग गौत्र बनाकर शादी करते हैं। मेव समाज के अधिकतर गोत्र हिंदू समाज से मिलते है। जैसे डागर, बडगुजर, सहरावत गोत्र मुस्लिमों और हिंदुओं मंे मौजूद है। इसी गौत्रपाल का असर है कि यहां के मुसलमानों ने अंग्रेजों, मुगलों को कभी अपना नहीं माना बल्कि हिंदुस्तान के हिंदू राजाओं के साथ मिलकर उनके खिलाफ जंग लडी।
भले ही कुछ दूरियां रही है फिर भी आज कई मिसाने जिंदा है। मसलन मेवात में जहां फिरोजपुर झिरका रामलीला कमेठी के संरक्षक के तौर पर पूर्व डिप्टी स्पीकर आजाद मोहम्मद कई वर्षो से विराजमान हैं वहीं मुस्लिम समाज के लोग होली मिलन और हिंदू समाज के लोग ईद मिलन समारोह कर मेवात की संस्कृति को अभी भी संजोए हुए हैं। रामलीलाओं में आज भी साज बजाने की जिम्मेदारी 90 फीसदी मुस्लिम समाज के लोग निभाते है।
नूंह जिला के पुन्हाना और पिनगवां कस्बा बृज के 84 कोस में पड़ता है, इस इलाके की मेवाती भाषा में बृज की मधुर वाणी की मिठास झलकती है। आज कट्टरपंथियों की वजह से होली का त्योंहार सिमट कर रह गया है। होली पर आजकल ठंडाई की जगह शराब हावी होती जा रही है जिसकी वजह से लोगों ने इससे दूरी बनानी शुरू कर दी है।
मेवात के गांव लाहाबास निवासी आमीन खान बताते है कि उनके दादा हाजी रसूला होली के बड़े शौकीन थे। पिनगवां में होली की चौपाइयां उनके बगैर नही होती थी। लेकिन 1970 मंे हज करने के बाद उन्होंने भी होली खेलने से दूरी बना ली थी। पहले होली के रंग गिरने पर कोई एतराज नहीं करता था। अब झगड़ा तक हो जाते हैं। आज कुछ कट्टरपंथियों और होली पर ठंडाई की जगह शराब हावी होने की वजह से लोगों ने इसे दूरी बनानी शुरू कर दिया है।
कस्बा पिनगवां निवासी 75 वर्षीय संतराम पटेल का कहना है कि मेवात क्षेत्र ब्रिज के 84 कोस की परिधि में आता है, जिसकी वजह से यहां के सभी धर्मों के लोगों पर बृज रंग चढ जाता है और होली के रंग में रंग जाते हैं। उन्होने बताया कि 1980 तक मेवात के अधिकतर मुस्लिम समाज के लोग हिंदुओं के साथ मिलकर होली खेलते थे। कस्बा पिनगवां में एक महिना तक होली की चौपाई गाई जाती थी। लाहाबास गांव के हाजी रसूला और उनकी टीम जब तक पिनगवां नहीं आती तो चौपाई शुरू नहीं होती थी। रात भर चौपाई और रसियों का दौर चलता रहता था। उनका कहना है कि अब चौपाई और रसियों की ताल कहीं नजर नहीं आती है। शराब की जगह ठंडाई परोसी जाती थी। उन्होंने माना कि कुछ हुड़दंगियों की वजह से इस त्योहार की लोकप्रियता मेवात में केवल हिन्दू समाज तक ही सिमट कर रह गई है। लोग गुलाल की जगह कीचड़ से भी होली खेलते हैं जिसकी वजह से लोग इससे दूरी बनाने लगे है। उन्होने कहा पहले जैसी होली का अब लुत्फ कहां रहा है बस होली एक रस्म अदायगी भर रह गई है।
नूंह/मेवात,
जमाना बदलता गया, इंसान एक दूसरे से दूर होता गया। ये सब हुड़दंगियों और कुछ कट्टर धार्मिक लोगों की वजह से हुआ है। वर्ना एक जमाना ऐसा था जब मेवात के मुसलमान और हिंदू मिलकर ढोल नगाड़े की ताल पर रात भर होली के रसिया और चौपाइयों का मजा लेते थे। पिनगवां कस्बा की होली तो मानों मुसलमानों के बगैर अधूरी थी।
इस्लाम धर्म में होली खेलना भले ही बहुत बडा गुनाह हो लेकिन मेवात के मुसलमानों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता था। मेवात क्षेत्र के पुन्हाना-पिनगवां ब्रिज का इलाका होने की वजह से यहां के हजारों मुसलमान सदियों से होली खेलते आ रहे थे। यहां करीब 30-40 सालों से दोनों समाजों के बीज धार्मिक लोगों ने ऐसा जहर घोल कर रख दिया कि अब होली तो मनाते हैं लेकिन जमकर इसका लुत्फ नहीं उठा पाते हैं। वैसे मेवात में हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे के धर्मों को मिलकर मनाते हैं पर वो मजा नहीं जो करीब 30-40 साल पहले होता था।
वैसे यहां के हिंदू-मुस्लिम का आपसी भाईचारा इतना मजबूत है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का झगडा भी नहीं तोड पाया और ने ही 1947 का देश का बटवारा। यहां के हिंदू-मुसलमान एक दूसरे के त्योहारों को मिलकर मनाते हैं, लेकिन अब पहले की तरह होली के हुडदंग में मजा लेने की बजाए दूरी बनाकर रखते हैं। ये सब धार्मिक कट्टरपंथियों के चलते लोग ऐसे त्योहारों से दूर होने लगे हैं।
मेवात जिला भले ही मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हो लेकिन यहां का आपसी भाई चारा सदियों पुराना है। यहां के मेव समाज के लोग अपने आप को सूर्यवंशी और चंद्रवंशी मानते हैं। हिंदू समाज की तरह आज भी मेवात के मेव समाज के लोग गौत्र बनाकर शादी करते हैं। मेव समाज के अधिकतर गोत्र हिंदू समाज से मिलते है। जैसे डागर, बडगुजर, सहरावत गोत्र मुस्लिमों और हिंदुओं मंे मौजूद है। इसी गौत्रपाल का असर है कि यहां के मुसलमानों ने अंग्रेजों, मुगलों को कभी अपना नहीं माना बल्कि हिंदुस्तान के हिंदू राजाओं के साथ मिलकर उनके खिलाफ जंग लडी।
भले ही कुछ दूरियां रही है फिर भी आज कई मिसाने जिंदा है। मसलन मेवात में जहां फिरोजपुर झिरका रामलीला कमेठी के संरक्षक के तौर पर पूर्व डिप्टी स्पीकर आजाद मोहम्मद कई वर्षो से विराजमान हैं वहीं मुस्लिम समाज के लोग होली मिलन और हिंदू समाज के लोग ईद मिलन समारोह कर मेवात की संस्कृति को अभी भी संजोए हुए हैं। रामलीलाओं में आज भी साज बजाने की जिम्मेदारी 90 फीसदी मुस्लिम समाज के लोग निभाते है।
नूंह जिला के पुन्हाना और पिनगवां कस्बा बृज के 84 कोस में पड़ता है, इस इलाके की मेवाती भाषा में बृज की मधुर वाणी की मिठास झलकती है। आज कट्टरपंथियों की वजह से होली का त्योंहार सिमट कर रह गया है। होली पर आजकल ठंडाई की जगह शराब हावी होती जा रही है जिसकी वजह से लोगों ने इससे दूरी बनानी शुरू कर दी है।
मेवात के गांव लाहाबास निवासी आमीन खान बताते है कि उनके दादा हाजी रसूला होली के बड़े शौकीन थे। पिनगवां में होली की चौपाइयां उनके बगैर नही होती थी। लेकिन 1970 मंे हज करने के बाद उन्होंने भी होली खेलने से दूरी बना ली थी। पहले होली के रंग गिरने पर कोई एतराज नहीं करता था। अब झगड़ा तक हो जाते हैं। आज कुछ कट्टरपंथियों और होली पर ठंडाई की जगह शराब हावी होने की वजह से लोगों ने इसे दूरी बनानी शुरू कर दिया है।
कस्बा पिनगवां निवासी 75 वर्षीय संतराम पटेल का कहना है कि मेवात क्षेत्र ब्रिज के 84 कोस की परिधि में आता है, जिसकी वजह से यहां के सभी धर्मों के लोगों पर बृज रंग चढ जाता है और होली के रंग में रंग जाते हैं। उन्होने बताया कि 1980 तक मेवात के अधिकतर मुस्लिम समाज के लोग हिंदुओं के साथ मिलकर होली खेलते थे। कस्बा पिनगवां में एक महिना तक होली की चौपाई गाई जाती थी। लाहाबास गांव के हाजी रसूला और उनकी टीम जब तक पिनगवां नहीं आती तो चौपाई शुरू नहीं होती थी। रात भर चौपाई और रसियों का दौर चलता रहता था। उनका कहना है कि अब चौपाई और रसियों की ताल कहीं नजर नहीं आती है। शराब की जगह ठंडाई परोसी जाती थी। उन्होंने माना कि कुछ हुड़दंगियों की वजह से इस त्योहार की लोकप्रियता मेवात में केवल हिन्दू समाज तक ही सिमट कर रह गई है। लोग गुलाल की जगह कीचड़ से भी होली खेलते हैं जिसकी वजह से लोग इससे दूरी बनाने लगे है। उन्होने कहा पहले जैसी होली का अब लुत्फ कहां रहा है बस होली एक रस्म अदायगी भर रह गई है।
फोटो-मेवात के कस्बा पिनगवां में होली खेलते लोग
Author: Khabarhaq
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