रमजान माह के रोजे शुरू, रोजे की अहमियत क्या है?
• रोजा पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर इंसान को अपनी इच्छाओं पर काबू करना सिखाता है।
यूनुस अलवी
नूंह (मेवात)
इस्लाम धर्म में रमजान माह की खास अहमियत है। इसी महीने में पवित्र कुरान शरीफ आसमान से उतारी गई थी। रोजा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक हैं। पूरी दुनिया के मुसलमान इस महीने का बडी बेसब्री से इंतजार करते हैं। रोजा जहां आपसी भाई चारे का प्रतीक है वहीं पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर इंसान अपनी इच्छाओं पर काबू पाता है। रोजा गरीबों, यतीमों, जरूरतमंदों के दुख दर्द व भूख प्यास का आभास कराता है। रोजा की हालत में इंसान झूठ, चोरी, बलात्कार, चुगली, धोखेबाजी और अत्याचार जैसी सामाजिक बुराइयों से बचाता है।
इस्लाम के जानकार और मुफ्ती जाहिद हुसैन का कहना है कि रमजान का महीना सब्र व स्किन का महीना है, इस महीने में अल्लाह की खास रहमते बरसती हैं। रमजान माह का एहतराम करने वाले लोगों के अल्लाह पिछले सभी गुनाह मुआफ कर देता है। इस महीने में की गई इबादत या अच्छे कामों का बदला सत्तर गुणा मिलता है।
अल्लाह ने कुरान शरीफ में कई जगह रोजा रखने को जरूरी करार दिया है। अल्लाह ताला कुरान पाक के दूसरे पारे की सूरह बकर की आयत नंबर 183 में अपने बंदों को हुक्म देता है कि ए ईमान वालो तुम पर रोजे फर्ज किये गए हैं ताकि तुम परहेज़गार बनों। इसके अलावा हदीस की किताबें तिर्मीजी, बुखारी शरीफ, मुस्लिम, इबने माजा, मिस्कात तथा अबू दाऊद शरीफ में भी हजारों जगह बताया गया है कि रोजा बुराईयों से दूर रखता है, गलत व बुरे कामों से दूर रखता है, यहां तक की किसी का बुरा चाहने, जलन रखने से भी रोकता है। रोजा किसी का हक मारने, अमानत में खयानत करने से परहेज सिखाता है। रोजा बुरी बातों को सुनने, देखने, बोलने और छूने तक से दूर रखता है। रोजा बेशर्मी और बेहयाई से बचाता है। रोजा से इंसान की सोच बदलती है। रोजा बुरे व गंदे साहित्य पढने व फिल्मों देखने से भी बचाता है यानि रोजा इंसान को बुराइयां छोड़ने का हुक्म करता है तथा भलाई करने की राह दिखाता है। रोजा गरीबों, मोहताजों के दुख दर्दों को महसूस करता है। रमजान माह में मालदार लोग अपने माल की जकात देते हैं, फितरा अदा करते हैं और गरीब मोहताजों की मदद करते हैं।
मुफ्ती जाहिद हुसैन का कहना है कि रोजा हर बालिग मर्द, औरत पर रखना फर्ज है अगर कोई नहीं रहता तो वह गुनाहगार होगा। यदि इंसान अल्लाह के निर्देशों के अनुसार रोजा रखता है तो समाज में फैली अश्लीलता, बेशर्मी और बेहयाई जैसी बुराइयों पर पाबंदी आसानी से लगाई जा सकती है। रोजे चांद देखकर शुरू होता है आज चांद देखने के बाद ही खत्म होते हैं। रोजे महीने में 29 या 30 रखे जाते हैं। रोजा रखने वाले सुबह सादिक से पहले सेहरी करते हैं और शाम सूरज छुप जाने पर रोजा खोलते हैं। दुनिया भर के मुसलमान रोजा आने से पहले इसकी एक महीने पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते है। रमजान माह में अधिक्तर लोग कुरान शरीफ, नमाज पढ़ने में अपना वक्त गुजारते हैं क्योंकि इस महीने में सवाब यानि पुष्य अधिक मिलता है।
No Comment.