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*मेवाती भाषा में महाभारत ‘पांडुओं का कड़ा’ नामक किताब का हुआ विमोचन* *एसपी नूंह ने पुलिस विभाग की तरफ से किताब को छपवाया* *पांडुओं का कड़ा’ नामक किताब का लेखक मुस्लिम कमालुद्दीन*

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• मेवाती भाषा में महाभारत ‘पांडुओं का कड़ा’ नामक किताब का डीसी ने किया विमोचन

• एसपी नूंह ने पुलिस विभाग की तरफ से किताब को छपवाया

• पांडुओं का कड़ा’ नामक किताब का लेखक मुस्लिम कमालुद्दीन

• दस साल की कड़ी मेहनत के बाद कमालुद्दीन ने किताब को लिखा
• एसपी नूंह ने पुलिस विभाग की तरफ से ‘पांडुओं का कड़ा’ किताब को छपवाया
• मेवात के बुद्धिजीवी लोगो और पुलिस व प्रशाशन के अधिकारियों ने एसपी नूंह और लेखक की जमकर की तारीफ

फोटो डीसी, एसपी नूंह, एसपी जेल, एएसपी नूंह, मेडिकल कॉलेज नूंह के डायरेक्टर किताब के विमोचन के दौरान

यूनुस अलवी,
मेवात/हरियाणा

संसार के प्राचीनतम महाकाव्यों में से एक महाभारत को मेवाती भाषा में पांडूओ के कड़ा के नाम से एक किताब की शक्ल में छापा गया है। महाभारत को पहली बार मेवाती भाषा में पांडुओं का कड़ा के नाम से छपी। इस किताब को मेवात पुलिस विभाग द्वारा छापा है। पंडुओं और मेवातियो का खासा लगाव रहा है। अज्ञात वास का समय पांडुओ ने मेवात के बीच स्थित काला पहाड़ यानी अरावली पहाड़ में गुजारा था। उस दौरान पंडुओ कालीन मंदिर आदि मेवात में काफी निशानिया मोजूद हैं। ये किताब मेवाती डूहों यानी दोहों में लिखी गई हैं। जिसमे एक हजार से अधिक दोहे हैं। सोमवार को नूंह के शहीद हसन खान मेवाती मेडिकल कॉलेज स्थित ऑडिटोरियम हाल में ज़िला उपायुक्त धीरेंद्र खड़गता ने एसपी नरेंद्र बिरारनिया सहित अन्य अधिकारियों की मोजूदगी में “पांडूओं का कड़ा” नाम की किताब का विमोचन किया और उपस्थित हजारों लोगों को किताब की प्रतियां वितरित की गई। वही किताब के लेखक एसएस मास्टर कमालुद्दीन तेड को प्रशासन की तरफ से सम्मानित भी किया गया। पांडुन के कड़ा किताब में भीम का कड़ा, किचक घाण, जामूद मल्ह का अंत, अर्जुन का कड़ा, अभिमन्यु का कड़ा, बबराबान का कड़ा और कुरुक्षेत्र का जंग मेवाती डूहों यानी दोहों में तफसील से जिक्र किया गया है। इस किताब की हरियाणा के डीजीपी, रेवाड़ी साउथ रेंज आईजी, डीसी नूंह, एसपी नूंह ने भी जमकर प्रशंशा की है।


17वीं शताब्दी के मशहुर मेवाती शायर सादउल्ला खाँ मेव द्वारा मेवाती बोली में कहे डुहा (दोहा) अपने आप में एक नायब उदाहरण हैं। ‘पण्डून का कडा’ पुस्तक देश की गंगा-जमनी तहजीब को बढाने का एक सार्थक प्रयास है। ‘पण्डून का कडा’ किताब में महाभारत की घटनाओं का वर्णन डुहान अर्थात दोहो के रूप में किया गया हैं। सबसे पहले महाभारत को मेवाती डूहों में सदल्लाह ने लिखा था। सादउल्ला खाँ का जन्म 1607 ई0 में नूंह जिला के गांव आकेडा में हुआ था। सादउल्ला खाँ के अधूरे कार्य को उनके रिश्तेदार खौरी गांव निवासी शायर नबीं खाँ नें पूरा किया था। इसके अतिरिक्त गांव सूडाका निवासी श्री खक्के ने भी महाभारत की अनेक घटनाओं को डुहाओं और बिरेहडा की शक्ल में वर्णित किया है। सादल्लाह द्वारा कागज के अलग अलग पन्नो पर लिखी गई महाभारत को कभी किताब की शक्ल में नही लाया जा सका। भारत पाकिस्तान बटवारे के दौरान सादल्लाह के खानदान के लोग उस लिए हुए कागजों को गांव के ही एक कुएं में डाल कर चले गए थे। बाद में सादल्लह द्वारा लिखी गई महाभारत तो खत्म हो गई लेकिन मेवात के हजारों लोगो की जबान पर आज भी वो मोजूद हैं।


पुलिस विभाग द्वारा छपवाए गए ‘पण्डून का कडा’ एक बहुत ही प्रेरणादायक पुस्तक हैं। इसके पढने से पाठकों को ना केवल महाभारत के बारे में ज्ञान प्राप्त होगा बल्कि सत्य की असत्य पर, पुण्य की पाप पर, ईमानदारी की बेईमानी पर, अच्छाई की बुराई पर, धर्म की अधर्म पर जीत का प्रेरणादायक संदेश प्राप्त होगा। साथ ही पाठकों के दिलो में बहादुरी के जज्बात भी उत्पन्न होंगें।
पाण्डुओ द्वारा वनवास काल के दौरान अधिकतर समय मेवात इलाके में बिताये जाने की वजह से उनकी यादें पांच हजार वर्ष बीत जाने के बाद भी मेवात में मेवाती बिरहैडा यानी मेवाती दोहों में मौजूद है। इन मेवाती बिरहैडों के माध्यम से शायर शादल्ला और खक्के सहित कई शायरों ने अपने-अपने तरीके से पाण्डुओ की गाथायें संक्षिप्त रूप में गाई लेकिन दुर्भाग्यवश वे सारे मेवाती बिरहैडे मेवाती लोगो की जवान पर तो मौजूद है लेकिन किसी किताब की शक्ल में मौजूद नही थे। पाण्डुओ का कडा मौखिक रूप से लोगो की जुबानो पर मौजूद है, इसको अधिकतर मिरासी, जोगी आदि समाज के लोग खुशी के मौके पर गाते हैं। कहीं ये विलुप्त ना हो जाये इसी भाव को लेकर नूंह के एसपी नरेंद्र बिजारनिया ने लेखक कमालुद्दीन के सहयोग से इसे एक पुस्तक के रूप में एकत्रित करने का प्रयास किया है।


हरियाणा पुलिस के महानिदेशक
शत्रुजीत कपूर, आईपीएस ने अपने संदेश में कहा कि ‘पण्डून का कडा’ पुस्तक प्राचीन भारतीय महाकाव्य महाभारत पर आधारित है। इस रचना में 17वीं शताब्दी के मशहूर मेवाती कवि व रचयिता श्री सादउल्ला खाँ आकेडवी द्वारा महाभारत पर मेवाती बोली में कहे गये डुहाऔ (दोहों) का वर्णन हैं। श्री सादउल्ला खाँ द्वारा कहे गये ‘पण्डुन का कडा’ डुहाओ की पुस्तक प्राचीन भारतीय संस्कृति का परिचायक होने के साथ-साथ इस बात का प्रमाण भी है कि मेवात क्षेत्र में ऐतिहासिक काव्य रचनायें हुई हैं, जिनको संजोये रखना आवश्यक है।

मैं शत्रुजीत कपूर, भारतीय पुलिस सेवा, पुलिस महानिदेशक हरियाणा ‘पण्डुन का कडा’ पुस्तक के संकलन एंव प्रकाशन के लिए जिला पुलिस नूंह को बधाई देता हूँ कि उनके अथक एवं कुशल प्रयासो से मेवाती बोली में महाभारत पर आधारित ‘पण्डून का कडा’ आमजन के सम्मुख आ पाईं निश्चित रूप से यह पुस्तक पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।

दक्षिण मण्डल, रेवाडी के पुलिस महानिरीक्षक, राजेन्द्र सिंह आईपीएस ने अपने संदेश में कहा कि ‘पण्डून का कडा’ पुस्तक महाभारत के नायक अरजन (अर्जुन), पेटला (भीम), भीकम (भीष्म पितामह), कोन्ता (कुन्ती), जरजोध (दुर्योधन), गंधारी सहित अनेक नायको की घटनाओं का मेवाती बोली में डुहाओं (दोहों) के रूप में एक शानदार संकलन है। जिनके रचयिता मेवात के मशहूर शायर श्री सादल्ला खाँ आकेडवी हैं। साहित्यकारों का मानना है कि श्री सादल्ला खाँ ने स्वयं इन डुहाओं को लिखा था परन्तु वह कृति आज तक प्राप्त नहीं हो सकी है। ‘पण्डून का कडा’ किताब अपने आप में मिली-जुली संस्कृति का सबूत होने के साथ-साथ इस बात का प्रमाण भी है कि भारतीय समाज हमेंशा से एक-दूसरे लोगों के धर्मो का सम्मान करता रहा है तथा एक-दूसरे धर्म के त्यौहारों एवं समारोहों में भाग लेता रहा हैं। पण्डून का कडा पुस्तक भारतीय लोगो विशेषकर मेवातियों में प्राचीन संस्कृति को जागृत करने का कार्य करेगी। मैं जिला पुलिस नूहं को इस पुस्तक के संकलन करने एंव प्रकाशित करवाने पर शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ।

नूंह जिला उपायुक्त धीरेंद्र खड़गता ने अपने संदेश में कहा कि महाभारत के काव्य ग्रन्थ पर आधारित ‘पण्डून का कडा मेवाती बोली में वर्णित एक शानदार काव्य ग्रन्थ हैं। जिसमें 17वीं शताब्दी के मशहुर मेवाती कवि श्री सादल्ला खाँ ‘मेव’ ने महाभारत की प्रमुख घटनाओ का वर्णन डुहाओं (दोहों) के माध्यम से किया हैं।
मेवात क्षेत्र में इन डुहाओं को सगाई, शादी, छूचक तथा अन्य समारोहों के अवसर पर जोगी व मीरासी समुदाय के गायक एंव संगीत के कलाकारों द्वारा वर्तमान समय में भी गाया जाता हैं। स्थानीय लोगो से वार्तालाप करने के पश्चात मुझे जानकारी मिली की मेव जाति के अनेक गोत्रों देडवाल, रटावत, बिलावत, बालोत, बाघोडियां, तंवर (मंगरिया-सिरोहिया) आदि के लोग अपने आप को तूमरवंशी अर्थात पांडवो का वशंज मानते हैं। मैं ‘पण्डून के कडा’ पुस्तक के डुहाओं को इक्कठा करने तथा इनको एक पुस्तक की शक्ल देकर छपवाने के लिए जिला पुलिस नूंह को साधुवाद देता हूँ और आशा करता हूं कि यह पुस्तक क्षेत्र के नागरिको को अपने अतीत के गौरव को जानने एवं इतिहास का अनुभव कराने में सहायक सिद्ध होगी, और इससे आपसी मेल जोल, भाईचारा व साम्प्रदायिक सौहार्द बढेगा जो क्षेत्र के विकास में मील का पत्थर साबित होगा।

नूंह पुलिस कप्तान नरेंद्र बिजारनिया ने अपने संदेश में कहा कि मेवात क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर अपने आप में अनूठी हैं। यहां के लोगों में आपसी तालमेल, भाईचारा एवं सहयोग की भावना बेमिसाल है। भारत के बंटवारे तथा अन्य कई अवसरों पर हुई छुट-पुट घटनाओं को नजरअंदाज कर दिया जाए तो मेवात क्षेत्र वास्तव में भारत में अनेकता की एकता को सत्यापित करता हैं।

‘पण्डून का कडा’ किताब का मंजर-ए-आम पर आना यहां भाईचारे, सामाजिक एकता एवं साम्प्रदायिक सौहार्द को बढावा देगा। पुलिस विभाग नूँह द्वारा पिनगवाँ खण्ड के तेड गांव निवासी मास्टर कमालुदीन, गांव लाहाबास के यूनुस अलवी पत्रकार और उनके रीडर बलबीर सिंह सब इंस्पेक्टर के सहयोग से इस पुस्तक का संकलन कर प्रकाशित करवाया गया है ताकि महाभारत का संदेश डुहान (दोहों) के माध्यम से आमजन तक पहुँच सके।


पंडुओं का कड़ा किताब के लेखक एवम एसएस मास्टर कमालुद्दीन का कहना है कि महाभारत एक बहुत बडा ग्रन्थ है जोकि दुनियां का सबसे बडा महाकाव्य है, जिसे भारत की अलग-अलग भाषाओं में लिखा गया है। महाभारत का मेवात से खासा लगाव रहा है क्योंकि पाण्डुओ की राजधानी इन्द्रप्रस्थ जिसे आज दिल्ली कहते हैं जो मेवात से लगभग सत्तर किलोमीटर दूरी पर है। जब पाण्डवो को तेरह साल का वनवास दिया गया था तो उन्होने अपना अधिकतर समय मेवात और राजस्थान में पडने वाले काला पहाड यानी अरावली की पर्वत श्रखंलाओ और बैराठ नगर जयपुर तक के ऐरिया में अपना समय व्यतीत किया था क्योंकि पाण्डुओ ने अपना अधिकतर समय मेवात और राजस्थान के कुछ हिस्सो में बिताया जिसकी निशानियां काला पहाड और इसके इर्दगिर्द व जयपुर तक के ईलाके में आज भी मौजूद है। मसलन नूहँ में नंदलेश्वर मन्दिर, फिरोजपुर झिरका में झिर मन्दिर जहां महाराज युधिष्टर ने वनवास के दौरान शिवलिंग की स्थापना की थी। वहीं बैराठ नगर में तालवृक्ष, बाणगंगा, भीम बेटका और कुछ खण्डर आज भी मौजूद है।

पाण्डुओ द्वारा वनवास काल के दौरान अधिकतर समय मेवात इलाके में बिताये जाने की वजह से उनकी यादें पांच हजार वर्ष बीत जाने के बाद भी मेवात में मेवाती बिरहैडा यानी मेवाती दोहों में मौजूद है। इन मेवाती बिरहैडों के माध्यम से शायर शादल्ला और खक्के सहित कई शायरों ने अपने-अपने तरीके से पाण्डुओ की गाथायें संक्षिप्त रूप में गाई लेकिन दुर्भाग्यवश वे सारे मेवाती बिरहैडे मेवाती लोगो की जवान पर तो मौजूद है लेकिन किसी किताब की शक्ल में मौजूद नही थे। पाण्डुओ का कडा मौखिक रूप से लोगो की जुबानो पर मौजूद है, कहीं ये विलुप्त ना हो जाये इसी भाव को लेकर मैनें इसे एक पुस्तक के रूप में एकत्रित करने का प्रयास किया है। महाभारत के मेवाती में पाण्डुओ का कडा जिनमें भीम का कडा, अर्जन का कडा, अभिमन्यु का कडा, बब्बरा बाण और कुरुक्षेत्र का जंग के नाम से आज भी मेवाती समारोह, शादियों, चौपालो में बडे जोश के साथ सुना जाता है। ये दिगर बात है इन पण्डुओ के कडे को ज्यादातर मिरासी या जोगी समाज के लोग संक्षिप्त और अशुद्ध और अव्यवस्थित तरीके से गाते हैं। मैनें देखा कि जो ये कडे गाये जाते है कुछ अधुरे और अशुद्ध है।
इसी वजह से मैनें करीब दस साल पहले पूरी महाभारत को मेवाती भाषा में बिरहैडो के साथ लिखे जाने का फैसला लिया।

मैनें पाण्डुओ के कडा को लिखने से पहले जहां मेवात के सभी शायरों की बिरहैडा, दोहो को सुना और उनको अपनी डायरी में लिखा, वहीं मैनें वेदव्यास रचित महाभारत को पढा फिर इसे एक मेवाती बिरहैडो यानि दोहो के माध्यम से शुद्ध महाभारत के रूप में संगठित किया है फिर भी अगर किसी को लगता है कि मैने इसमें या कुछ छोड दिया हो या कोई त्रुटि हो तो मुझे अवगत कराये अगले संस्करण में उनको ठीक कर दिया जायेगा। वेद व्यास रचित महाभारत व मेवाती महाभारत में काफी अन्तर देखने को मिलता हैं। यह अन्तर कैसे हुआ यह आज भी विचारनीय विषय है। जैसे चक्रव्युह की रचना को मेवाती महाभारत को चकाबोई का किला कहा गया है और लाक्षागृह को मेवाती भाषा में लाखा मन्दर कहा गया है। जिसके अन्दर पाण्डुओ के साथ कुन्ती को दिखाया गया है। जबकि मेवाती महाभारत में पण्डुओ के साथ द्रोपदी को दिखाया गया है। इसी प्रकार महाभारत के पात्रो के नाम में भी अन्तर है। जैसे युधिष्टिर को डुहिटल, अर्जुन को अरजन, भीम को बल्लु या पेटला, नकुल को नुकल, श्री कृष्ण को किशन या कन्हैया, द्रोपदी को सिलण्दर, दुर्योधन को जरजोध, कर्ण को विक्रम आदि आदि नामो से पुकारा गया है। ये शादल्ला, खक्के वगैरा अन्य मेवाती महाभारत के कवियो ने भी ऐसे ही विरहडो व दोहो में कहा है।

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