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भगवानदास मोरवाल को मेवात का मुंशी प्रेमचंद क्यों कहा जाता है, अब तक देश विदेश में कितने अवॉर्ड मिले देखे रिपोर्ट

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 भगवानदास मोरवाल को मेवात का मुंशी प्रेमचंद क्यों कहा जाता है, 

• भगवानदास मोरवाल बने हिंदी अकादमी, दिल्ली का सदस्य

• भगवानदास मोरवाल को देश विदेश में डेढ़ दर्जन से भी अधिक अवॉर्ड मिल चुके हैं 

• भगवानदास मोरवाल नूंह जिला के नगीना कस्बे के रहने वाले हैं 

 

—-

यूनुस अलवी, 

मेवात/हरियाणा

दिल्ली सरकार ने हिंदी अकादमी, दिल्ली की गवर्निंग बॉडी का पुनर्गठन किया है। कला, संस्कृति एवं भाषा मंत्री और अकादमी के अध्यक्ष श्री सौरभ भारद्वाज ने अकादमी के उपाध्यक्ष के रूप में जाने-माने कवि सुरेंद्र शर्मा को जहाँ अकादमी का उपाध्यक्ष मनोनीत किया है। जबकि देश के मशहूर कथाकार और मेवात के प्रेमचंद कहे जानेवाले भगवानदास मोरवाल को भी सदस्य के रूप में शामिल किया गया है।

मेवात जिले के कस्बा नगीना में 23 जनवरी, 1960 को जन्मे और प्रजापति समाज से संबंध रखनेवाले भगवानदास मोरवाल इससे पूर्व भी दो बार इसी अकादमी और एक बार हरियाणा साहित्य अकादमी के भी सदस्य रह चुके हैं। बता दें मेवात के इस कथाकार के अब तक 11 उपन्यास सहित आधा दर्जन कहानी संग्रह, दो स्मृति-कथाएँ ‘पकी जेठ का गुलमोहर’ व ‘यहाँ कौन है तेरा’ दो दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

यह कथाकार मेवात की अपनी मिट्टी से किस तरह मोहब्बत करता है, इसका इसी से पता चलता है कि उनके इन 11 उपन्यासों में 5 उपन्यास ‘काला पहाड़’, ‘बाबल तेरा देस में’ ‘हलाला’,‘ख़ानज़ादा’ और ‘काँस’ मेवात पर आधारित हैं। अपने पहले (1999) उपन्यास ‘काला पहाड़’ से चर्चा में आए इस कथाकार का, इसी साल 2024 में आया उपन्यास ‘काँस’ भी पुराने जिले गुड़गाँव के मेवात क्षेत्र के मेव समुदाय में लागू रिवाज़े आम पर बने अमानवीय जमींदारी कानून पर आधारित है। साल 2021 में आया इनका उपन्यास ‘खाँनज़ादा’ तो उर्दू में दिल्ली के अलावा 2023 में पाकिस्तान के लाहौर से भी प्रकाशित हो चुका। इसके अलावा इनके कई उपन्यासों का मराठी, कन्नड, मलयालम और अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद हो चुका। हिंदी साहित्य में इनके योगदान के मद्देनजर इन्हें इसी साल भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता के एक लाख रुपए के ‘कर्तृत्व समग्र सग्मान’ और दिल्ली विधानसभा द्वारा 2021 में ‘मुंशी प्रेमचंद सारस्वत सम्मान’ और 2010 में हरियाणा सरकार की हरियाणा साहित्य अकादमी के एक लाख रुपए के जनकवि मेहरसिंह सग्मान भी नवाजा गया है। इनके अलावा मोरवाल पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण द्वारा मद्रास के ‘राजाजी सम्मान’, ‘संतराम बीए राष्ट्रीय सम्मान’, भोपाल के ‘वनमाली कथा सम्मान’, उपन्यास ‘सुर बंजारन’ के लिए भोपाल के ‘स्पंदन कृति सम्मान’, मेवात के ‘श्रवण सहाय एवार्ड’ लंदन के ‘अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान’ उपन्यास ‘रेत के लिए’ ‘शब्द् साधक ज्यूरी सम्मान’, लखनऊ के कथाक्रम सग्मान’ हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार के साहित्यकार सम्मान और इसी अकादमी से दो बार ‘साहित्यिक कृति सम्मान’ से सम्मानित हो चुके हैं। मेवात के लिए इससे बड़ी गर्व की बात व्या हो सकती है कि आज उसके लेखक की पुस्तकें देश के कई विश्वविद्यालयों के बीए और एमए में तो पढ़ाई जाती ही हैं, बल्कि उनके लेखन पर देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में 70 से अधिक शोधों में से कुछ हो गए हैं और कुछ पर रिसर्च चल रही है।

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