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नशे से बचें मेवाती युवा, पढ़ाई और खेलों पर लगाएं ऊर्जा: डा. वसीम अकरम 

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नशे से बचें मेवाती युवा, पढ़ाई और खेलों पर लगाएं ऊर्जा: डा. वसीम अकरम 

 

यूनुस अलवी, 

मेवात, 

नशे के बढ़ते प्रकोप और मेवाती युवाओं के नशे के चुंगल में फसने के मामलों में बढ़ती संख्या चिंता का विषय बनता जा रहा है। मेवात इंजीनियरिंग कॉलेज नूंह में सहायक प्रोफेसर डॉ वसीम अकरम ने युवाओं से आह्वान करते हुए नशे के खिलाफ अभियान में सहयोग देने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि मेवाती युवा बेहद प्रतिभाशाली हैं वो शिक्षा और खेल के क्षेत्र में अच्छा कर रहे हैं लेकिन नशे की ओर कुछ युवाओं का लगातार रुझान बढ़ना चिंतनीय है। इस समस्या के समाधान के लिए सभी लोगों को साथ आकर सहयोग की दरकार है।

 

डॉक्टर वसीम अकरम ने कहा कि भारत में युवाओं की जनसंख्या सब से अधिक है, जिस कारण युवाओं का देश कहा जाता है। चिंताजनक सवाल यह है कि क्या आज का युवा हमारे देश का आने वाला कल है। देश का युवा नशे की ओर तेजी से बढ़ रहा है। कॉलेजों के साथ साथ स्कूल के छात्रों का नशे में लिप्त होना और भी खतरनाक है। वैसे तो कानून अनुसार 18 साल से कम उम्र के युवा शराब या अन्य किसी नशे का सेवन नहीं कर सकते है। लेकिन आज 12 साल से 18 साल के बच्चों में ही नशा फैशन के रूप में प्रचलित है। जिसे वह करते तो कूल बनने के लिए है लेकिन फिर गिरफ्त में कैद हो जाते हैं।

 

डॉक्टर वसीम अकरम का कहना है कि कई रिपोर्ट मौजूद हैं जो बताती हैं कि अधिकांश युवा 21 साल से पहले नशे का सेवन करता है और इसका आदि हो जाता है। आधी युवा आबादी 18 साल या इससे कम उम्र के बच्चे अलग अलग नशा करते पाए गए है। खासकर 12 से 16 साल के बच्चे सिगरेट, स्मैक, कॉरेक्स जैसे नशे के आदि होते जा रहे है। यह आंकड़ा 2019 की रिपोर्ट का है। 2023 में यह आंकड़ा कम नहीं हुआ है बल्कि बढ़ा ही है।

 

प्रोफेसर वसीम अकरम का मानना है कि नशे के दुष्प्रभाव के रूप में देश को बढ़ता हुआ अपराध मिलता है। जहा नशे में धुत युवा चोरी, लूट या अन्य अपराध का शिकार हो जाते है। वह अपने स्वास्थ के साथ तो खिलवाड़ करते ही करते है साथ ही अपना और अपने परिवार के भविष्य को भी दांव पर लगा देते है। कभी कभी नशे की लत उनके दिमाग को इतना भ्रष्ट कर देती है की वह दिमागी बीमारी या डिप्रेशन का शिकार हो जाते है।

 

डॉक्टर वसीम अकरम ने कहा कि समाज में नशे की लत अधिक होने का कारण जागरूकता का अभाव भी है। काफी जगह तो पूरा परिवार छोटे बड़े हुक्का पीते नजर आते हैं, कई अभिभावक अपने बच्चों के साथ बैठ कर शराब पीते हैं। वही एक कारण है गलत संगति। किशोर उम्र में हर बच्चों का समूह होता है। अब वह समूह कैसा है यह जानने की जिम्मेदारी घरवालों की होनी चाहिए। वहीं नशे के पदार्थों का आसानी से मिल जाना भी एक बड़ा कारण है। अनेक आंकड़े है जो दर्शाते है की स्कूल स्तर से ही बच्चों को सिगरेट,तंबाखू जैसे नशे की लत लग जाती है।

 

 

डॉक्टर वसीम अकरम ने फिल्मों, फिल्म सितारों, नाटकों और रील लाइफ की दुनिया को भी युवाओं में नशे के बढ़ते प्रभाव के लिए जिम्मेदार मानते हुए कहा कि युवाओं को रील नहीं रीयल लाइफ से प्रभावित होना चाहिए।

घरवालों के व्यवहार में लापरवाही या घर में किसी का नशे का सेवन करना भी कारण हो सकता है। अगर घर में कोई नशे का सेवन करता है तो इसका प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। या घरवाले जब बच्चों पर ध्यान नहीं देते तो बच्चे नशे के रास्ते को चुन लेते है।

 

हैरानी की बात है कि शहर के साथ साथ गांव में भी शराब ठेके आम हो रहे है। शहर से ज्यादा गांव के बच्चे, गांव का युवा नशे में डूबा हुआ है। उन्हें आसानी से शराब, तंबाखू , कोरेक्स, गांजा आदि चीजे मिल जाते है और किसी चीज की सरलता से उपलब्धता भी उसके उपभोग में बढ़ावा देती है।

 

डॉक्टर वसीम अकरम ने कहा कि अभिभावकों को चाहिए कि वो बच्चों की संगति पर रखे नजर ,देखे की कही आपका बच्चा गलत संगत में तो नहीं है।बच्चों के व्यव्हार में अगर परिवर्तन आ रहा है तो उसे नजरंदाज ना करे , एक दोस्त की तरह उसकी परेशानी जाने और उससे बात करें।उनसे उनका रोल मॉडल जाने और देखे कही उनका रोल मॉडल कोई गलत व्यक्ति तो नहीं। उन्हें सही रोल मॉडल बनाने की सीख दे। कही न कही पहले रोल मॉडल बच्चों के मां बाप होते है तो ध्यान रखे की आप ऐसी कोई भी चीज ना करे जिसका बच्चों पर असर गलत पड़े,धर्म के बारे में बातें करे और अच्छी किताबें पढऩे दे।

 

प्रोफेसर वसीम अकरम ने कहा कि सरकारों को अधिक सख्त कानून बनाने होंगे इसके साथ साथ शिक्षा नीति में

कोई नियम शामिल करना होगा जिसमे बच्चों के लिए यह गाइडलाइन हो की अगर वह नशा करते है तो उसका क्या परिणाम हो सकता है। इसके अलावा स्कूल, कॉलेज, ग्राम पंचायतों में नशा मुक्ति के कैंपस लगाए जाएं जिसमे बच्चों और युवाओं को नशा ना करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

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