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मेवात का मेव मुस्लिम, अपने आपको क्यों, सूर्य और चंद्रवाशी कहते हैं। मेवों की कितनी पाल और गोत्र हैं, जो हिंदुओ से मिलती हैं। देखे मेवों की पूरी हिंस्टी

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• मेवात का मेव मुस्लिम, अपने आपको क्यों, सूर्य और चंद्रवाशी कहते हैं।

• मेवों की कितनी पाल और गोत्र हैं, जो हिंदुओ से मिलती हैं।

 

यूनुस अल्वी
मेवात/हरियाणा

मेव मुस्लिम देश के आठ राज्यों के करीब 100 जिलों में आबाद हैं, जिनकी आबादी करीब चार करोड़ है. देश में सबसे अधिक मुस्लिम मेव आबादी का क्षेत्र मेवात है, जो वहीं सबसे अधिक करीब 7p लाख की आबादी हरियाणा के गुरूग्राम, पलवल, नूंह जिलों के अलावा राजस्थान के अलवर, भरतपुर व उत्तर प्रदेश के मथुरा जिला में एक साथ आबाद है.

देश के मुस्लिमों और मेवात के मेव मुस्लिमों की शादी, ब्याह आदि की रस्मों में जमीन आसमान का फर्क है. ये दीगर बात है कि मेवात इलाका तबलीग जमात के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है.

मेवात के मुस्लिमों के रीति-रीवाज और गोत्र पाल यहां के हिंदुओं से मिलने और गोत्र छोड़कर शादी करने का चलन केवल मेवात के मेव मुस्लिम समाज में ही मौजूद है. हिंदुओं की तरह मेवाती मेव मुसलमान खुद को फख्र के साथ सूर्यवंशी और चंद्रवंशी कहते हैं.

मेवात एक खोज सहित मेवात के इतिहास पर करीब 10 किताबें लिख चुके सद्दीक मेव बताते है कि हिंदू और मेव समाज की कुल 52 पाल है, जिनमे से 40 पाल हिंदुओ की और 12 पाल 13वां पल्लाकड़ा के कुल 52 गोत्र मेवों में आते हैं. उन्होंने बताया कि तोमर/तंवर, जादू गोत्र सूर्यवंशी, दंगहल व सींगल चंद्रवंशी व चौहान, राठौड़, कुशवाहा, बड़गूजर सहित कुल 6 वंश हैं.

जादू यानी सूर्यवंश की छिरकलौत पाल के पौने 95 गांव, डेमरौत पाल के 757 गांव, दूलौत पाल के 360 गांव, पूगलौत पाल के 84 व नाई पाल के 210 गांव हैं. तंवर/तोमर वंश की

बालौत पाल के 260 गांव, लंडावत पाल के 210 गांव, देडवाल पाल के 252 गांव, रटावत पाल के 125 गांव हैं.

मेवों के गोत्र

मेवाती मेव मुस्लिमों के गोत्र और पाल

चंद्रवंश यानी कुशवाहा वंश की पाल दंहगल के 360 गांव और बडगूजर वंश की पाल सींगल के 92 गांव है. इसी तरह अन्य चौहान वंश की पाल पाहट (पल्लाकड़ा) के 210 गांव, राठौर वंश की पाल कलीसा के 224 गांव सहित सभी गोत्र व पालों के 3239 गांव हैं.

उन्होंने बताया कि सूर्यवंश (तोमर/तंवर) में मगरिया, सिरौहिया, बलियाना, नांगलौत, कटारिया, सूकेडिया, गौंछिया, बोडिया, जमनिया, बिलावत, मजलावत, बाकडावत, कांगर, बीगौत, मारग, मांडर, तंवर, सौगन और काहौत सहित कुल 19 गोत्र हैं. वहीं सूर्यवंश के ही जादू वंश के गौरवाल, मेवाल, बड़नाई, बघतिया, भोसलिया, सिंगालिया, मछालिया, खरकटिया, भाबला, जौंवार, लम्खेरा, बेसर, बटलावत, महक, जटलावत, नाहरवाड़, खानजादू, मारझंगाल, गूमल, खेलदार, कंवालिया, छौंकर, चौरसिया, चौहान और भान सहित कुल 28 गोत्र है.

बड़गुजर वंश से लोका गोत्र हैं, चालुक्य गोत्र, पंवार गोत्र, सगडावत गोत्र, गौरवाल गोत्र सहित कुल 52 गोत्र हैं.

उन्होने बताया कि दंहगल पाल का निकाल आमेर-जयपुर से है जो सूर्यवंशी हैं. इनकी चौधर ग्वालदा, रायसीना, घासेडा, चाहालका, रेहना, धुलावट, बडका, सारा में है. कलीसा पाल सूर्यवंशी हैं जिसका निकाल मेवाड़ से है और इनकी चौधर दादर में है. सींगल पाल भी सूर्यवंशी हैं जिसका निकाल आमेर-जयपुर से है जिनकी चौधर चांदौली और इस्माईलपुर में है. छिरकलौत पाल चंदवंशी है जिसका निकाल तहनगढ़-ब्याना से हैं जिनकी चौधर बिछौर, लुहिंगाकलां, कोट, सिरौली, उटावड़, रूपड़ाका, मालूका, सीतल खेड़ा गांवो में है.

डैमरोत पाल चंद्रवशी हैं जिसका निकाल तहनगढ़-ब्याना से हैं जिनकी चौधर कझौता, घाटा, बीसरू और घाटा गांव में है. पूंगलौत पाल चंद्रवंशी हैं, जिसका निकाल तहनगढ़-ब्याना से हैं, जिनकी चौधर देसूला, मवा, बहाला गांवों में है. दूलौत पाल चंद्र वंशी हैं जिसका निकाल तहनगढ़-ब्याना से हैं, जिसकी चौधर मिलकरपुर, बुर्जा, लाडमाका सीकरी खेड़ा में हैं.

नाई पाल चंद्रवंशी हैं जिसका निकाल अलवर से हैं जिसकी चौधर नीकंच, कारौली, रायबका, धनेड़ा में है. बालौत पाल चंद्रवंशी है जिसका निकाल अलवर से है और इनकी चौधर अकाता, सेमला खुर्द, गोबिंदगढ़ में है. रटावत पाल चंद्रवंशी है जिसका निकाल अलवर से है जिनकी चौधर सहौडी में है, लंडावत बाघौड़िया पाल चंद्रवंशी है जिनका निकाल भी अलवर से और इनकी चौधर मूसाखेड़ा में है. देड़वाल पाल चंद्रवंशी है इनका निकाल अलवर से है और चौधर मेवली में है. तेहरवां पल्लाकड़ा पाहट पाल का निकाल मेवाड़ से है और ये सूर्यवंशी हैं जिनकी चौधर मेव खेड़ा में है.

इसके अलावा कुछ मेव गौतों की चौधराहटें इस तरह है. कंवालियां की केशवाड़ा, बडगूजर की सिंगार, गौरवाल की नगीना, बलियानिया की नौगांव, धौज, सिरोहिया की फतेहपुर, खानजादू

इन मेवाती मुस्लिमों में आज भी प्रचलित हैं, हिंदू रीति-रिवाज प्रचलित हैं. दिल्ली के समीप होने के कारण राजपूत बादशाहो ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था, हजारों वर्षों बाद भी वे अपने आप को राजपूत, छत्रिय, कृष्ण व राम के वंशज कहते हैं. यही बातें मेवात को आज तक सांप्रदायिकता के उन्माद से दूर रखे हुए हैं.

मेवात को बदनाम करने और यहां की छवि को खराब करने के लिए अक्सर कोशिशें की जाती रही है लेकिन मेवात में हिंदु-मुस्लिमों के आपसी भाईचारा का तानाबाना इसे मजबूत बनाए हुए है.

इस्लाम धर्म को मानने वाले मेव समाज के लोग इन परंपराओं को जीवित रखने के लिए मुस्लिम धार्मिक उलेमाओं की बात को मानने को भी तैयार नहीं है. लगभग 40 लाख की आबादी वाला यह क्षेत्र हरियाणा के गुड़गांव, फरीदाबाद, पलवल, नूंह, राजस्थान के अलवर, भरतपुर व उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के तीन दर्जन से अधिक खंडों में फैला है. मुस्लिमों के बारे में हिंदू समाज के लोगों का मत है कि विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी बादशाहों के अत्याचारों से तंग आकर दिल्ली के समीप होने के कारण राजपूत बादशाहो ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था, हजारों वर्षों बाद भी वे अपने आप को राजपूत, छत्रिय, कृष्ण व राम के वंशज कहते हैं. यहां तक कि हिंदुओं के 52 गोत्र-पाल के रिश्ते मुस्लिम मेव कौम में मौजूद हैं.

इस्लाम धर्म को मानने वाले में मुसलमान एवं अन्य सऊदी अरब, ईरान, इराक, देशों से भारत के उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक के मुसलमानों की रीति रिवाजों और मेवात के मुस्लिमों में जमीन आसमान का अंतर है.

इस्लामी प्रचलन के अनुसार बुर्का पहनना जरूरी है, वहीं हिंदू समाज के अनुसार घूंघट निकालने की प्रथा है, मेव औरतें बुर्का पहनने की बजाय घूंघट निकालती हैं, करीब 50 साल पहले कुछ इलाकों में परिधानों में चोली, घागरे पहनने का चलन था, यह दीगर बात है कि गुडगांव, नूंह, फरीदाबाद, पलवल के मुसलमानों में यह परिधान समाप्त हो चुके हैं लेकिन राजस्थान में कई बुजुर्ग औरतों में यह परिधान आज भी मिल जाते है.

हिंदुओं की भांति गोत्र बचाकर शादी विवाह करना आज भी यहां पूरी तरह प्रचलित है, यदि कोई व्यक्ति एक ही गोत्र में शादी करे तो उसे पंचायत द्वारा जातबाहर यानी उसका हुक्का पानी बंद कर सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है. जिससे लड़की लेते हैं, उस गोत्र में लड़की की शादी नहीं कर सकते. ये सभी रिवाज हिंदू समाज में मौजूद है और इस्लाम धर्म के अनुसार गोत्र पाल को बचाकर शादी करना बहुत बड़ा गुनाह है, ऐसे लोगों पर विदत का फतवा लगा दिया जाता है. लेकिन मेवात के मुसलमान इसे नहीं मानते.

भले ही इस्लाम धर्म में भात, छूछक, बारात की बिदाई, खेत, सलाम, गाना-बजाना जैसी रस्में नहीं है लेकिन ये सभी रस्में हिंदुओं और मेवात के मुस्लिमों में आज भी मौजूद हैं। करीब 30 साल पहले तक तो अधिकतर लोग चाक पूजने के नाम पर कुम्हार के यहां से नए मिट्टी के बरतन घड़ा, मटका आदि लाते रहे। कुछ लोग तो इस रस्म को आज भी अदा करते हैं। ये दीगर बात है अब चाक नही पूजते बल्कि महिलाए गाना गाती हुई कुम्हार के घर तक जाती हैं और नए मिट्टी के बरतन लेकर आती हैं।

मेवात विकास सभा के पूर्व अध्यक्ष दीन मोहम्मद मामलीका, रमजान चौधरी एडवोकेट, राशिद एडवोजेट, उमर मोहम्मद पाड़ला का कहना है कि मेवात के लोगों में एक क्षत्रिय जीवन चरित्र के सारे गुण मौजूद हैं जो कि क्षत्रिय में मौजूद होते हैं. उन्होंने इस बात का खंडन किया कि विदेशी आक्रमणकारियों के दवाब में मेवों ने धर्म बदला था बल्कि यहां के समाज ने एक साथ इस्लाम धर्म से प्रभावित होकर ही अपना धर्म बदला था. उनका कहना है कि हिंदू रीति-रिवाजों के पाए जाने के कारण ही आज तक मेवात में हिंदू मुस्लिम भाईचारा कायम है जिससे सांप्रदायिकता कि आंच अब नूंह घटना को छोड़कर कभी नहीं पहुंच पाई।

84 कोस परिक्रमा में आता है मेवात का एक हिस्सा

कृष्णवंशी लोगों के लिए 84 कोस परिक्रमा का काफी महत्व है. यह परिक्रमा नूंह जिले के खंड पुन्हाना के गांव बिछौर, डाडका, नीमका आदि गांवों से गुजरती है. परिक्रमा के दौरान मुस्लिम समाज के लोग सभी श्रद्धालुओं को खाना, पानी आदि का पूरा ख्याल रखते हैं। इस बार भले ही नूंह में हिंसा हुई हो उसके बावजूद भी 84 कोस परिक्रमा 16 जुलाई से 16 अगस्त 2023 तक बिना किसी रोक टोक के चली।

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