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आखिर ये जी 20 ग्रुप क्या है, ये क्यों बना, इसमें कौन-कौन से देश हैं और इस ग्रुप की इतनी अहमियत क्यों है?

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आपने इन दिनों दिल्ली में जगह-जगह जी20 के बड़े-बड़े बैनर देखे होंगे.

 

नौ और 10 सितंबर को दिल्ली में जी20 का शिखर सम्मेलन हो रहा है. इसके लिए सरकार और पुलिस दोनों ने कमर कस रखी है.

 

जी20 की इस बैठक के दौरान राजधानी दिल्ली में कई बड़ी-बड़ी शख्सियतें मौजूद रहेंगी. तो आइए जानते हैं जी20 की सारी अहम बातें.

 

ये ग्रुप क्या है, क्यों बना, इसमें कौन-कौन से देश हैं और सबसे ज़रूरी सवाल, इस ग्रुप की इतनी अहमियत क्यों है?

 

जी-20, अपने नाम से ही साफ़ है कि यह 20 देशों का एक समूह है. साल 1999 में जब एशिया में आर्थिक संकट आया था, तब तमाम देशों के वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों ने मिलकर एक फोरम बनाने की सोची, जहाँ पर ग्लोबल इकनॉमिक और फाइनैंशियल मुद्दों पर चर्चा की जा सके।

कुछ साल बाद 2007 में पूरी दुनिया पर आर्थिक मंदी का साया मंडरा रहा था. ऐसे में जी20 के लेवल को और ऊपर उठाया गया. इसे वित्त मंत्रियों के लेवल से ऊपर उठाकर हेड ऑफ़ स्टेट के लेवल का बना दिया गया. यानी इस बैठक में अब तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष हिस्सा लेंगे.

इस तरह से जी20 की पहली बैठक साल 2008 में अमेरिका के वॉशिंगटन में हुई. अब तक इसकी कुल 17 बैठकें हो चुकी हैं. भारत इसकी 18वीं बैठक की मेज़बानी करने जा रहा है.

 

वैसे तो इस ग्रुप का फोकस अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करना रहा है, लेकिन वक़्त के साथ इसका दायरा बढ़ता रहा.

 

इसमें टिकाऊ विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और भ्रष्टाचार विरोधीजैसे मुद्दे भी जुड़ते चले गए।

इस ग्रुप की ताक़त इसमें शामिल देशों के नाम जानने से ही पता लग जाती है.

 

जी20 ग्रुप में 19 देश- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ़्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किए, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका शामिल हैं.

 

इसके साथ ही इस ग्रुप का 20वां सदस्य है यूरोपियन यूनियन. यानी यूरोप के देशों का मज़बूत समूह.

 

इसके अलावा हर साल अध्यक्ष देश, कुछ देशों और संगठनों को मेहमान के तौर पर भी आमंत्रित करता है. जैसे इस बार भारत ने बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशिस, नीदरलैंड्स, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और यूएई को बुलाया है.

जी20 की ताक़त का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसके सदस्‍य देशों के पास दुनिया की 85 फ़ीसदी जीडीपी, 75 फ़ीसदी ग्लोबल ट्रेड, दुनिया की 2/3 आबादी है. ऐसे में इस सम्‍मेलन में लिया गया फ़ैसला दुनिया की इकोनॉमी पर बड़ा असर डाल सकता है।

 

दरअसल, जिस भी देश को जी20 की अध्यक्षता मिलती है, वह उस साल जी20 की बैठकें आयोजित करवाता है. वह बैठक का एजेंडा पेश करता है.

 

इसके अलावा जी20 दो समानांतर ट्रैक पर काम करता है. एक होता है, फाइनेंस ट्रैक, जिसमें सभी देशों के वित्त मंत्री और सेंट्रल बैंक के गवर्नर मिलकर काम करते हैं.

 

दूसरा होता है शेरपा ट्रैक, जिसमें हर देश का एक शेरपा लीड होता है. शेरपा असल में उन्हें कहा जाता है जो पहाड़ों में किसी भी मिशन को आसान करने का काम करते हैं जिसकी मीटिंग ज़िला नुह के आईटीसी ग्रांड भारत, तावडू में हुई थी।

 

जी 20 के शेरपा लीड भी अपने-अपने देश के प्रमुख का काम आसान करने का ज़िम्मा उठाते हैं. सभी सदस्य देशों के शेरपा, बैठकों के ज़रिए अलग-अलग मुद्दों पर आपसी सहमति बनाने की कोशिश करते हैं।

 

ये तो हम सभी को पता है कि इस बार भारत जी20 की अध्यक्षता कर रहा है. लेकिन ये अध्यक्षता मिलती कैसे है.

 

दरअसल, जी20 के अध्‍यक्ष का फ़ैसला ट्रोइका यानी एक तिकड़ी से तय होता है. इसमें पिछले, वर्तमान और भविष्य के अध्यक्ष देश शामिल होते हैं, इसे ही ट्रोइका कहते हैं.

 

जैसे इस बार ट्रोइका में इंडोनेशिया जो पिछली बार अध्यक्ष था, भारत जो अभी वर्तमान में अध्यक्ष है और ब्राजील जो अगला अध्यक्ष होगा, ये तीनों देश शामिल हैं।

 

आख़िर में सबसे ज़रूरी सवाल की इस जी20 की बैठक से हमें और आपको क्या फ़ायदा हो सकता है.

देखिए यह तो हम समझ गए कि यह कितना मज़बूत ग्रुप है. लेकिन इस सम्‍मेलन के दौरान लिए गए फ़ैसलों को मानने की कोई क़ानूनी बाध्‍यता नहीं होती. यह आर्थिक रूप से ताक़तवर देशों का एक ग्रुप है. इसलिए यहां लिए गए फ़ैसलों से इंटरनेशनल ट्रेड काफ़ी हद तक प्रभावित हो सकता है.

 

बैठक के अंत में जी20 देशों के साझा बयान पर आम सहमति भी बनाई जाती है, जिसकी ज़िम्मेदारी आमतौर पर अध्यक्ष देश के ऊपर ही होती है. भारत भी इसकी पुरज़ोर कोशिश कर रहा है कि वह बैठक के दौरान जी20 के एक साझा बयान पर आम सहमति बना सके।

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Author: Khabarhaq

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