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राजा हसन खां मेवाती के शहीदी दिवस 17 मार्च पर विशेष

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(राजा हसन खां मेवाती के शहीदी दिवस 17 मार्च पर विशेष)

 

जुबां देते हैं जिसको भी निभा देते हैं मेवाती।

जो कहते हैं वही करके दिखा देते हैं मेवाती।              

ये साबित हो चुका है वतन पर जां लड़ा देते हैं मेवाती।

बड़ों के हुक्म पर गर्दन कटा देते हैं मेवाती।।

 

 

यूनुस अलवी

मेवात,

राजा हसन खां मेवाती तत्कालीन मेवात रियासत के सबसे मशहूर व मारूफ राजा गुजरे हैं। राजा हसन खां मेवाती का जन्म 1485 ईस्वी में राजस्थान के गांव भाकडा रियासत मेवात में पैदा हुऐ और 17 मार्च 1527 को राजा हसन खां उस समय शहीद हो गये थे जब वह कान्वां के मैदान में राणा सांगा के साथ मिलकर बाबर से युध कर रहे थे। उनकी शहादत के 497 साल बाद भी मेवात की आवाज में उनकी बहादुरी और देशभक्ति के लिये याद कर रही है।

राजा हसन खां मेवाती सोलहवीं शताब्दी के महान देश भक्त राजा थे। अकबरनामा में उस समय के जिन चार योद्धाओं का वर्णन है उनमें से हसन खां मेवाती एक हैं। राजा हसन खां मेवाती को मेवात का राज्य अपने पूर्वजों से विरासत में मिला था जो लगभग पौने दो सौ साल से मेेवात पर राज कर रहे थे। बहादुर नहार द्वारा 1353 ईस्वी में स्थापित मेवात राज्य का वह सातवां शासक था। अलवर उनके राज्य की राजधानी हुआ करती थी। अलवर के उत्तर-पश्चिम अरावली पर्वत श्रंखला की एक चोटी पर हसन खां ने एक मजबूत किले का निर्माण कराया था। इस किले की बुलंदी तकरीबन एक हजार फीट है, इसकी लम्बाई तीन मील और चौडाई एक मील है। उनके किले मे 15 बडी और 52 छोटी बुर्जियां है। इस किले पर करीब तीन हजार पांच सौं कंगूरे हैं। यह बालाये किला के नाम से मशहूर है। वह एक बहादुर और वतनपरस्त हुकमरा थे।

राजा हसन खा, फिरोज तुगलक के दौर में जिन बहुत से राजपूत खनदानों ने इसलाम कबूल किया था उनमें सरहेटा राजस्थान के राजकुमार सामरपाल थे। सामरपाल की पांचवीं पीढी में सन् 1492 में हसनखां के पिता अलावल खां मेवात का राज बने थे। इसलिये हसन खां जादू गौत्र से ताल्लुक रखते हैं। हसन खां सन् 1505 में मेवात के राजा बनें। सन् 1526 ईसवीं में जब मुगल बादशाह बाबर ने हिंदुस्तान पर हमला किया तो इब्राहीम लोदी हसन खां मेवाती व दिगर राजाओं ने मिलकर पानीपत के मुकाम पर बाबर से मुकाबला हुआ। इस लड़ाई में राजा हसन खां के पिता अलावल खां शहीद ही नहीं हुऐ बल्कि हसन खां और लोधी की हार हुई और इस लड़ाई के बाद लोधी खानदान का सूर्य अस्त हो गया।

पानीपत की विजय के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरा पर तो अपना अधिकार जरूर कर लिया लेकिन भारत सम्राट बनने के लिसे उसे अभी कई कठिन संघर्ष से गुजना था। महाराणा संग्राम सिंह (मेवाड़) और हसन खां (मेवात) के नेतृत्व में मिलकर मेवाती बाबर के लिये कडी चुनौती के रूप में सामने खडे थे। बाबर ने हसन खां मेवाती को अपने साथ मिलाने के लिये कई तरीके से प्रयास किये इनमें उन्हें इस्लाम का वास्ता दिया गया। एक लड़ाई में बंधक बनाये गये राजा हसन खा के पुत्र को बिना शर्त छोडा गया लेकिन राजा हसन खां की देश भक्ति के सामने न तो धर्म का वास्ता काम आया और न ही अपने खून की फिकर। बाबर ने अपना आखरी हथियार धर्म का वास्ता देकर चलाया उसने राजा को पैगाम भेजा की हम मुसलमान हैं और भाई-भाई है इसलिये तुम राणा सांगा का साथ छोड़कर हमारे साथ आ जाओ तुम्हें पूरा मान सम्मान दिया जाऐगा। मगर राजा हसन खां ने बाबर के इस पत्र का देश भक्ति के शब्दों में इस तरह जवाब दिया कि यह सच है कि हम दोनो मुसलमान हैं इस नाते हम मुस्लिम भाई हैं लेकिन आप ने मेरे वतन पर हमला किया है तुम एक हमलावर हो जबकि राणा सांगा मेरा हम वतनी खून के रिश्ते का भाई है।

सिपहसालार के हाथों का खंजर कांप जाता है।

 

हमारा नाम सुनता है तो लश्कर कांप जाता है।।

मेरी खामौशी को बुजदिली का नाम मत देना।

क्योंकि? अगर हम बोलते हैं तो सिकंदर कॉप जाता है।।

जब राजा हसन खां ने बाबर के पत्र का जवाब कठोर शबदो में दिया तो बाबर आग बबूला हो गया। बाबर ने अपने क्रोध और असफलता की झुंझलाहट में हसन खां मेवाती को अहसान फरामोश, विधर्मी और धोखाबाज तक कहा और इस सारे फसाद की जड राजा हसन खां को ही बता दिया। मेवातियों को सबक सिखाने के लिये बाबर ने अपने सिपहसालार झगझग को आदेश दिया कि राजा हसन खां और मेवातियों को इसका सबक कठोरता से सिखाया जाये। उसके बाद झंगझंग ने मेवातियों पर कहर बरपाना शुरू कर दिया। मेवात के सैकड़ों गावों में आग लगा दी और पूरी तरह तबाह और बर्बाद कर दिया। मगर मेवातियो ने हिम्मत नहीं हारी और बाबर के खिलाफ युद्ध करने की ठानकर कमर कस ली।

15 मार्च 1527 को राजा हसन खां ने राणा सांगा के साथ मिलकर कान्वाह के मैदान में बाबर की सेना आमने सामने हो गये। दोनों तरफ से भयंकर युद्ध हुआ। जब दोनो तरफ से युद्ध हो रहा था तो अचानक एक तीर राणा सांगा के सिर पर आ लगा और वह हाथी के ओहदे से नीचे गिर पडे उन्हें तुरंत मैदान से बाहर ले जाया गया। उसके बाद भारतीय सैना के पैर उखड़ने लगे तो सेनापति का झंडा खुद राजा हसन खां मेवाती ने संभाल लिया और बाबर सैना को ललकारते हुऐ उनपर जोरदार हमला बोल दिया। राजा हसन खां मेवाती के 12 हजार घुड़सवार सिपाही बाबर की सेना पर टूट पडे इसी दौरान एक तोप का गोला राजा हसन खां मेवाती के सीने पर आ लगा और इसके बाद आखरी मेवाती राजा शासक का हमेशा के लिये 17 मार्च 1527 को अंत हो गया। इसके बाद प्रथम मुगल बादशाह का हिंदुस्तान में सूर्योदय हो गया। शहीद राजा हसन खां के मृत शरीर को उसके पुत्र ताहिर खां, नजदीकी रिश्तेदार जमाल खान और फतेहजंग लेकर आये, उसके बाद राजा हसन खां के पार्थिव शरीर को अलवर शहर के उत्तर में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। यहां पर राजा हसन खां के नाम पर एक यादगार छतरी बनाई गई थी। लेकिन देश के सबसे बुरे दौर 1947 में कुछ उपद्रवियों ने इस महान स्वतंत्रता सेनानी राजा हसन खां की यादगार छतरी को भी नष्ट कर दिया था।

देश के इस महान सपूत राजा हसन खां की याद में जहां कांग्रेस सरकार ने नूंह के नहलड गांव में बने राजकीय मेडिकल कॉलेज का नाम राजा हसन खान के नाम पर रखा वहीं मौजूदा भाजपा सरकार ने 15 मार्च को वैकल्पिक छुट्टी घोषित कर 9 मार्च को राज्य स्तर पर उनका शहीदी दिवस मनाकर उनको याद किया है। अब मेवात के लोगों की मांग है कि शहीद राजा हसन खां के नाम पर मेवात में यूनिवर्सिटी कायम की जाए। जिससे यहां के बच्चे उच्च शिक्षा आसानी से हांसिल कर सकें।

ये साबित हो चुका है कि जां लडा देते हैं मेवाती।

बड़ों के हुक्म पर गर्दन कटा देते हैं मेवाती।।

जुबां देते हैं जिसको भी निभा देते हैं मेवाती।

जो कहते हैं वही करके दिखा देते हैं मेवाती।।

 

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